18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिकमास, जानिए इसका महत्व और पौराणिक आधार
इस वर्ष 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास है। यह अधिक मास अधिक श्रावण मास है। अधिक मास बड़े पर्व के समान होता है इसलिए इस माह में धार्मिक कृत्य और अधिक मास महात्म्य ग्रंथ का पठन किया जाता है
अधिक मास का अर्थ
चंद्र मास, सूर्य एवं चंद्रमा इनकी एक बार युति होने के समय से अर्थात एक अमावस्या से पुनः ऐसी युति होने तक अर्थात अगले माह की अमावस्या तक का काल चंद्र मास होता है। त्योहार, उत्सव, व्रत, उपासना, हवन, शांति, विवाह आदि हिंदू धर्म शास्त्रों के सभी कार्य चंद्रमास के अनुसार अर्थात चंद्रमा की गति से निश्चित हैं। चंद्रमास के नाम उस माह में आने वाली पूर्णिमा के नक्षत्रों के अनुसार हैं। उदाहरणार्थ चैत्र माह की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र होता है।
सौर मास (सूर्य मास)
ऋतु, सौर माह के अनुसार, सूर्य की गति के अनुसार बने हुए हैं। सूर्य अश्विनी नक्षत्र से भ्रमण करते हुए फिर से उसी जगह आता है। उस कालावधि को सौर वर्ष कहा जाता है। चंद्र वर्ष एवं सौर वर्ष इनमें मेल होना चाहिए इसलिए अधिक माह का प्रयोजन है । चंद्र वर्ष 354 दिन एवं सौर वर्ष 365 दिन का होता है अर्थात इन दोनों वर्षों में 11 दिन का अंतर होता है यह अंतर भर जाए तथा चंद्र वर्ष एवं सौर वर्ष इनका मेल बैठे इसलिए लगभग 32 1/2 माह (साढे बत्तीस) के बाद एक अधिक माह मानते हैं अर्थात 27 से 35 माह के बाद एक अधिक माह आता है।
अधिक मास के अन्य नाम
अधिकमास को मलमास भी कहा जाता है। अधिक मास में मंगल कार्यों की अपेक्षा विशेष व्रत एवं पुण्य कारक कृतियां की जाती हैं। इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।
अधिक मास किस माह में आता है?
चैत्र से अश्विन इन 7 माह में से 1 माह अधिक मास के रूप में आता है। फाल्गुन माह भी अधिक मास के रूप में आता है। कार्तिक मार्गशीर्ष एवं पौष इन मासों को जोड़कर अधिक मास नहीं आता। इन 3 महीनों में से कोई भी एक माह क्षय हो सकता है, क्योंकि इन 3 महीनों में सूर्य की गति अधिक होने के कारण एक चंद्र मास में उसके दो संक्रमण हो सकते हैं। क्षय माह आता है तब 1 वर्ष में क्षय माह से पहले एक एवं बाद का एक ऐसे दो अधिक माह पास पास आते हैं। माघ माह अधिक मास या क्षय मास नहीं होता।
अधिकमास में व्रत और पुण्यदायक कृतियां करने के पीछे का शास्त्र
प्रत्येक माह में सूर्य 1-1 राशि में संक्रमण करता है परंतु अधिक मास में सूर्य किसी भी राशि में संक्रमण नहीं करता अर्थात अधिक मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती। इस कारण चंद्र एवं सूर्य इनकी गति में फर्क पड़ता है एवं वातावरण भी ग्रहण काल के समान परिवर्तित होता है। इस परिवर्तित होते अनिष्ट वातावरण का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर ना हो इसलिए इस माह में व्रत एवं पुण्य दायक कृतियां करनी चाहिए ऐसा शास्त्र कारों ने कहा है।
अधिकमास में किए जाने वाले व्रत और पुण्य कारक कृतियां
अधिकमाह में श्री पुरुषोत्तम प्रीत्यर्थ 1 माह उपोषण, आयाचित भोजन, (अकस्मात किसी के घर भोजन के लिए जाना ) नक्त भोजन, दिन में भोजन न कर, केवल रात्रि को ही एक बार भोजन करना अथवा एक भुक्त अर्थात दिन भर में एक ही बार भोजन करना। कमजोर व्यक्ति को इन चार प्रकारों में से किसी एक प्रकार का कम से कम 3 दिन अथवा एक दिन पालन करना चाहिए। प्रतिदिन एक ही समय भोजन करना चाहिए। भोजन करते समय बोलना नहीं चाहिए। उससे आत्म बल की वृद्धि होती है। मौन भोजन करने से पाप क्षालन,अर्थात पाप नष्ट होते हैं। तीर्थ क्षेत्रों में स्नान करना चाहिए। कम से कम एक दिन गंगा स्नान करने से सभी पाप कर्मों की निवृत्ति होती है। इस संपूर्ण माह में दान करना संभव ना हो, तो शुक्ल एवं कृष्ण द्वादशी, पूर्णिमा, कृष्ण अष्टमी, नवमी चतुर्दशी, अमावस्या इन तिथियों को एवं व्यतिपात, वैधृति इन योगों पर विशेष दान धर्म करना चाहिए, ऐसा शास्त्रों में बताया गया है। इस माह में प्रतिदिन श्री पुरुषोत्तम कृष्ण की पूजा एवं नाम जप करना चाहिए । अखंड अनुसंधान में रहने का प्रयत्न करना चाहिए। दीपदान करना चाहिए। भगवान के पास अखंड दीप जलाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है। तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। देव दर्शन करना चाहिए। तांबूल दान करना चाहिए 1 माह तांबूल दान करने से सौभाग्य प्राप्ति होती है। गौ पूजन करना चाहिए। गाय को गोग्रास (भोजन) देना चाहिए। अपूप अर्थात अनरसे का दान करना चाहिए।
अधिकमास में कौन से काम करने चाहिए
इस माह में नित्य एवं नैमित्तिक कर्म करने चाहिए। जो किए बिना नहीं रह सकते ऐसे कार्य करने चाहिए। अधिक माह में सतत नाम स्मरण करने से श्री पुरुषोत्तम कृष्ण प्रसन्न होते हैं। ज्वर शांति ,पर्जन्येष्टी आदि काम्य कर्म करने चाहिए। इस माह में भगवान की पुनःप्रतिष्ठा की जा सकती है। ग्रहण श्राद्ध, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन आदि संस्कार किए जा सकते हैं। मन्वादि एवं युग आदि संबंधी श्राद्ध कृत्य करने चाहिए। तीर्थ श्राद्ध, दर्श श्राद्ध, एवं नित्य श्राद्ध करना चाहिए। नारायण नागबली, त्रिपिंडी इस तरह के कर्म गंगा, गोदावरी, गया तीर्थ इन स्थानों पर किए जा सकते हैं।
अधिक मास में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
रोज के काम्य कर्मों के अतिरिक्त अन्य काम्य कर्मों का आरंभ एवं समाप्ति नहीं करनी चाहिए। महादान, अपूर्व देव दर्शन (अर्थात जहां पहले नहीं गए हैं) गृहारंभ ,वास्तुशांती संन्यास ग्रहण नूतन व्रत ग्रहण दीक्षा विवाह, उपनयन, चौल, देव प्रतिष्ठा आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
अधिक माह में जन्मदिन आने पर क्या करना चाहिए ?
किसी व्यक्ति का जन्म जिस माह में हुआ है वही माह अधिक मास होने पर उस व्यक्ति का जन्मदिन निज माह में करना चाहिए। उदाहरणार्थ वर्ष 2022 श्रावण माह में जिस बालक का जन्म हुआ है उसका जन्म दिवस इस वर्ष श्रावण अधिक मास में ना करके निज श्रावण माह में उस तिथि को करना चाहिए। इस वर्ष अधिक श्रावण माह में जिस बालक का जन्म होगा, उसका जन्म दिवस प्रतिवर्ष श्रावण माह में उस तिथि को मनाना चाहिए।
अधिक मास होने पर श्राद्ध कब करना चाहिए?
जिस माह में व्यक्ति का निधन हुआ है, उसका वर्ष श्राद्ध यदि अगले वर्ष अधिक मास आता है तो प्रथम वर्ष श्राद्ध अधिक माह में ही करना चाहिए । उदाहरणार्थ शक 1944 वर्ष 2022 श्रावण माह में जिस व्यक्ति का निधन हुआ होगा उस व्यक्ति का प्रथम वर्ष श्राद्ध शक 1945 अर्थात इस वर्ष अधिक श्रावण माह में उस तिथि को करना चाहिए। केवल इसी वर्ष ऐसा करना चाहिए क्योंकि वर्ष 2022 के श्रावण माह में निधन हो गया व्यक्ति का वर्ष श्राद्ध 12 मास इस वर्ष अधिक माह में पूर्ण होंगे। जिस समय अधिक मास नहीं होगा, तब वर्ष श्राद्ध उसी तिथि को करना चाहिए। शक 1944 के श्रावण माह में जिनकी मृत्यु हो गई है उनका प्रथम वर्ष श्राद्ध शक 1945 के अधिक श्रावण माह की उस तिथि को करना चाहिए। हर वर्ष के श्रावण माह के प्रति सांवत्सरिक श्राद्ध अर्थात वार्षिक श्राद्ध निज श्रावण माह में करना चाहिए परंतु पहले के अधिक श्रावण माह में जिनकी मृत्यु हुई है उनका प्रति सांवत्सरिक श्राद्ध इस वर्ष अधिक श्रावण माह में करना चाहिए। गत वर्ष (शक1944के) भाद्रपद,अश्विन इन माहों में जिनकी मृत्यु हुई है उनका प्रथम वर्ष श्राद्ध उस माह की उसी तिथि को करना चाहिए। इस वर्ष अधिक श्रावण अथवा निज श्रावण माह में मृत्यु होने पर उनका प्रथम वर्ष श्राद्ध अगले वर्ष श्रावण माह में उसी तिथि को करना चाहिए।-