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, इंदिरा के फोकस में आते ही उतरा असर,सियासी भंवर में उलझे दिग्गज वैज्ञानिकों की कहानी

वेब सीरीज ‘रॉकेट बॉयज’ का दूसरा सीजन देश में अंतरिक्ष और परमाणु अनुसंधान की कहानी को पिछले सीजन से आगे बढ़ाता है। दो वैज्ञानिक हैं। होमी जहांगीर भाभा का मानना है कि अगर भारत को ताकतवर देश की तरह आगे बढ़ना है तो उसे अपना परमाणु बम कार्यक्रम पूरी शक्ति से आगे बढ़ाना चाहिए। दूसरी तरफ विक्रम साराभाई हैं जो अंतरिक्ष में उपग्रह भेजकर देश के आम इंसान की तकदीर बदलना चाहते हैं। दोनों की अपनी अपनी पारिवारिक जिंदगी की अड़चनें हैं। अमेरिका की साजिशें भी हैं, दबाव भी और जासूसी भी और एक तरफ पाकिस्तान व दूसरी तरफ चीन से घिरे भारत को रूस में अपना मददगार नजर आने लगता है। कहानी में सी वी रमन भी हैं और ए पी जे अब्दुल कलाम भी। सीजन का उनवान 1974 का पोखरण परीक्षण है। कहानी की अंतर्धारा भारतीय राजनीति है जिसमें पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री न बन पाने की परतें भी उधेड़ी गई हैं।सोनी लिव पर प्रसारित हो रही वेब सीरीज पहले सीजन में एक खालिस वैज्ञानिक उपलब्धियों की कहानी कहते कहते दूसरे सीजन में आकर राजनीति की चाशनी में डुबकी लगाती दिखती है। सीरीज लिखने वालों ने वैज्ञानिकों के सामने आई मुसीबतों की आड़ में देश की राजनीति की वे बातें दर्शकों के सामने परोसने की कोशिश की है जिनके बारे में मौजूदा पीढ़ी तो छोड़िए शायद इसके पहले की पीढ़ी को भी ज्यादा कुछ पता नहीं है। देश के प्रधानमंत्री को भाई कहकर बुलाने वाले होमी जहांगीर भाभा का उनके निधन के बाद हो रही शोकसभा में इंदिरा गांधी को अलग ले जाकर उनके कार्यालय में भविष्य की राजनीति पर चर्चा करने का दृश्य इस सीरीज के असल मकसद से परदा उठा देता है। कहानी आगे पीछे जाते हुए वहां तक आती है जहां पोखरण का ऑपरेशन हैपी कृष्ण बदलकर स्माइलिंग बुद्ध हो जाता है। आठ घंटे की मियाद के साथ शुरू होने वाली सीरीज आठ एपीसोड तक धीरे धीरे आगे खिसकती है और तीसरे एपिसोड तक आते आते इसकी उष्मा भाप बनकर उड़ने लगती है।

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