छठ पूजा की शुरुआत 28 अक्टूबर शुक्रवार से हो रही है। 29 अक्टूबर को खरना है। 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, उसके अगले दिन सुबह यानी 31 अक्टूबर को उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के दिन 28 अक्टूबर से शुरू हो जाएगी। छठ सूर्य उपासना और छठी माता की उपासना का पर्व है। हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। इस पूजा में छठी मईया के लिए व्रत किया जाता है। यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।
नहाय खाय से हो जाती है, छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा में पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष एक समय का भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं। इस दिन से घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, और लहसुन-प्याज़ बनाने की मनाही हो जाती है। नहाय-खाय वाले दिन व्रती महिलाएं लौकी की सब्ज़ी, चने की दाल, चावल और मूली खाती हैं।
दूसरे दिन रखते हैं, पूरे दिन का उपवास
छठ पूजा में दूसरे दिन को “खरना” के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं। खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण। खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बाँट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
संध्या अर्घ्य में करते है, सूर्य की उपासना
तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, जिसकी वजह से इसे “संध्या अर्ध्य“ कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं भोर में सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री-पानी पीती हैं। उसके बाद अगले दिन अंतिम अर्घ्य देने के बाद ही पानी पीना होता है। संध्या अर्घ्य के दिन विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं, और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है। इस साल 31 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य दिया जायेगा।
उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ संपन्न होती है छठ पूजा
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष छठी मईया और सूर्य देव से अपने संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति और उन पर अपनी कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करती हैं। इसके बाद व्रती घर के देवी-देवता की पूजा करते हैं, और फिर प्रसाद को खाकर व्रत का समापन करते हैं।