जशपुर

*जशपुर में रियासत कालीन ऐतिहासिक दशहरा उत्सव हुआ संपन्न, धूमधाम व उत्साहपूर्वक मनाया गया दशहरा उत्सव,, मूसलाधार बारिश के बीच हुआ रावण दहन*

फैज़ान अशरफ़,जशपुर

मूसलाधार वर्षा के बीच बुधवार को सालों से चली आ रही परम्परा का पालन करते हुए विजय दशमी दशहरा का पर्व धूमधाम व उत्साहपूर्वक मनाया गया। आज जशपुर में मूसलाधार बारिश के बीच हुआ रावण दहन हुआ.

शोभा यात्रा के रणजीता स्टेडियम पहुंचने के बाद,रावण दहन होने से कुछ मिनट पहले ही अचानक मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। झमाझम वर्षा के बीच,रावण के विशाल पुतला का दहन किया गया।

बारिश के कारण मैदान में आतिशबाजी का आनंद उठाने के लिए पहुंचें हजारों लोगों को निराश होना पड़ा। पानी से बचने के लिए लोगों ने दर्शक दीर्घा का सहारा लिया। लेकिन,भीड़ अधिक होने के कारण,दीर्घा में जगह कम पड़ गया। कोरोना संकट से निजात मिलने के बाद,आयोजित हो रहे इस दशहरा महोत्सव में शामिल होने के लिए श्रद्वालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा था। जशपुर शहर और इसके आसपास के ग्रामीण अंचल से भारी संख्या में लोग,सुबह से ही शहर आने लगे थे। लंका दहन के लिए भगवान बालाजी के नेतृत्व में निकली शोभा यात्रा शहर के रणजीता स्टेडियम में निर्मित लंका पहुंचीं और रावण वध की सूचना के साथ ही लंका दहक उठी। लंका दहन के साथ ही 9 दिन से चली आ रही ऐतेहासिक दशहरा उत्सव संपन्न हो गया। इससे पहले राजपुरोहितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भगवान बालाजी को विशेष रथ में आरूढ़ कराया।रणभेरी की गगनचुंबी नाद और जयश्री राम और बालाजी भगवान के जयकारे के साथ शोभायात्रा रणजीता स्टेडियम पहुँची। शोभायात्रा में बालाजी मंदिर से शुरू होकर जय स्तम्भ चौक,सिटी कोतवाली होते हुए रणजीता स्टेडियम पहुँची। इस दौरान डोम वंसजो के ढोल नगाड़े की थाप की गूंज शहर भर में गूंजती रही। रणजीता स्टेडियम में भगवान बालाजी की विधिवत पूजा अर्चना की गई। आदिवासी अंचल होने के कारण जशपुर के रियासत कालीन दशहरा उत्सव में बैगाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


अंचल के दो सौ से अधिक बैगा,इस दशहरा उत्सव के दौरान ग्राम देवता की पूजा अर्चना के लिए जुटे थे। रणजीता स्टेडियम मैदान में भगवान बालाजी की विधिवत पूजा के बाद भगवान हनुमान का रूप धारण किए हुए व्यक्ति ने लंका दहन की अनुमति भगवान बालाजी से मांगी। अनुमति मिलने के बाद हनुमान जी पुनः लंका की ओर कुच किए और कुछ ही देर बाद वापस आकर रावण का एक सिर,भगवान बालाजी के चरणों मे अर्पित करते हुए,भगवान श्रीराम के लंका विजय की सूचना दी। इसके साथ ही लंका और रावण के पुतले का दहन कर दिया गया। लंका दहन और अपराजिता पूजा के बाद,दशहरा उत्सव के अंतिम चरण में भगवान बालाजी की महाआरती के बाद नीलकंठ का दर्शन शहरवासियों को कराया। रथ के उपर से उन्होनें नीलकंठ को उड़ाया। दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना जाता है।

इस पक्षी को भगवान शिव के रूप में दर्शन करने की परम्परा रही है। माना जाता है कि भगवान हनुमान ने लंकापति रावण को नीलकंठ रूप में भगवान शिव का दर्शन कराया था। इसके बाद ही उसे असुर योनी से मुक्ति मिल पाई थी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button