प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा उठाना पड़ रहा अन्नदाताओं को ,483 किसान धान को समर्थन मूल्य पर उपार्जन केन्द्र में बेच नहीं पा रहे
जिले में प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा अन्नदाताओं को उठाना पड़ रहा है. ग्राम अछोली के 483 किसान अपने खून-पसीने से उगाई गई धान को समर्थन मूल्य पर उपार्जन केन्द्र में नहीं बेच पा रहे हैं. वहीं सवाल अब ये खड़ा हो रहा है कि आखिर अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा किसानों को क्यों उठाना पड़ रहा है और इन जिम्मेदारों पर कार्रवाई कब होगी, जिनकी वजह से किसान दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं.
अधिकारियों की लापरवाही
दरअसल, ग्राम अछोली मे 5.39 हेक्टेयर में 483 किसानों ने धान का उत्पादन किया है. सभी किसानों का 26 हजार 900 क्विंटल धान समर्थन मूल्य पर शासन को खरीदना है. ग्राम अछोली के किसान वर्षों से अपने धान को उपार्जन केन्द्र भोरिंग में बेचते आ रहे हैं. वहीं गांव वालों ने बेलटुकरी में नया धान उपार्जन केन्द्र खोलने की मांग की थी. शासन ने इस साल ग्राम बेलटुकरी और अछोली के किसानों के लिए बेलटुकरी में नया धान उपार्जन केन्द्र खोल भी दिया. नियमानुसार बेलटुकरी में नया धान उपार्जन केन्द्र खुलते ही ग्राम अछोली के सैकड़ों किसानों का डाटा भोरिंग उपार्जन केन्द्र से नए उपार्जन केन्द्र बेलटुकरी स्थानांतरित कर देना था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण ग्राम अछोली के किसानों का डाटा आज तक बेलटुकरी उपार्जन केन्द्र में नहीं ट्रांसफर किया गया. जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है.
कब होगी खरीदी
वर्तमान स्थिति में अछोली के 483 किसान अपना धान न तो भोरिंग और न ही अछोली में बेच पा रहे हैं. भोरिंग उपार्जन केन्द्र के कर्मचारी ये कह कर धान नहीं खरीद रहे हैं कि, इनका डाटा बेलटुकरी उपार्जन केन्द्र में चला गया है. वहीं बेलटुकरी उपार्जन केन्द्र के कर्मचारी इसलिए धान नहीं खरीद रहे हैं कि, इन किसानों का डाटा ऑनलाइन उनके उपार्जन केन्द्र में नहीं दिखा रहा है. किसान एक नवंबर से धान बेचने के लिए दोनों उपार्जन केन्द्र और शासकीय कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं. वहीं इस मामले में कोई भी शासकीय कर्मचारी और अधिकारी ये बता पाने में सक्षम नहीं है कि आखिर इन किसानों की धान कब तक खरीदी जाएगी.
कागजों का दावा धरातल पर कब उतरेगा?
प्रशासन धान खरीदी शुरु होने से पहले और नया उपार्जन केन्द्र खोलने से पहले सभी तैयारी करने का दावा करती है और आला अधिकारी एक माह पहले से ही तैयारियों की समीक्षा बैठक करते रहते हैं. उसके बावजूद भी खरीदी शुरु होने के 20 से 23 दिन बाद भी किसान को धान बेचने में दिक्कत आना और किसानों का शासकीय कार्यालयों के चक्कर लगाना प्रशासनिक अमले के दावों की पोल खोलता नजर आ रहा है.