आरक्षण बवाल पर शायराना वॉर: पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का CM को जवाब- ‘…वो हमें लड़ने का तरीका क्या सिखाएगा’
छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक पर अब शायरना वॉर शुरू हो चुकी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कविता के जरिए राज्यपाल पर निशाना साधने के बाद अब डॉ. रमन सिंह ने जवाब दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कविता पोस्ट की है। इसमें लिखा है कि ‘वनवासी के हक में जो कभी लड़े नहीं, वो हमें लड़ने का तरीका क्या सिखाएगा’। वहीं दूसरी ओर सर्व आदिवासी समाज के एक धड़े ने राज्यपाल के आरक्षण बिल पर रूख का समर्थन कर दिया है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ में संशोधित आरक्षण विधेयक को लेकर विवाद गरमाता जा रहा है। एक ओर जहां कांग्रेस सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बन रही है। वहीं दूसरी ओर भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच जुबानी जंग भी जारी है। कांग्रेस बिल पर हस्ताक्षर नहीं होने के पीछे राज्यपाल और भाजपा पर दोष मढ़ रही है। वहीं भाजपा भी बैकफुट पर आ गई है और उसने भी प्रदर्शन कर राज्यपाल से बिल पर हस्ताक्षर की मांग कर दी। हालांकि पूर्व सीएम अब भी मुखर हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अपने ट्वीटर हैंडल पर चार लाइनें पोस्ट की है। इसमें उन्होंने कांग्रेस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधा है। साथ ही लिखा है कि, यह सरकार यदि आरक्षण हित में होती तो यह अधिकार छिनता ही नहीं। आज वनवासियों को गुमराह करने के लिए कितने भी झूठ बोलो लेकिन अब कोई भरोसा नहीं करेगा। इसके साथ चार लाइनें भी हैं, जिसे आप भी पढ़ें..
‘वनवासी के हक में जो कभी लड़े नहीं
वो हमें लड़ने का तरीका क्या सिखाएगा
प्रथम महिला का अपमान कर “दाऊ”
पिछड़ों को क्या अधिकार दिलाएगा।’
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार को अपने ट्वीटर हैंडल पर एक कविता पोस्ट की थी। इसकी शुरू की दो लाइनों में जहां उन्होंने बिना नाम लिए भाजपा पर निशाना साधा। वहीं अंतिम दो लाइनों में निवेदन भी किया है। यह निवेदन राज्यपाल को संबोधित है। इसमें लिखा था कि, ‘कायरों की तरह न तुम छिपकर वार करो, राज्यपाल पद की गरिमा मत तार-तार करो’। इसके बाद रमन सिंह ने इस पर जवाब दिया है।
सर्व आदिवासी समाज का राज्यपाल के रुख को समर्थन
सर्व आदिवासी समाज के सोहन गुट ने बुधवार को एक प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल अनुसूईया उइके से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने आरक्षण मुद्दे पर राज्यपाल के रुख का समर्थन किया है। समाज के कार्यकारी अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचने में देरी की। इसकी वजह से समाज को राहत नहीं मिल पाई। जो विधेयक लाया गया है उसमें आदिवासियों की 12 बढ़ी हुई जातियों की संख्या को शामिल नहीं किया गया है। वैसा होता तो आदिवासी समाज का अनुपात 40% तक पहुंच जाता।