आपने किताबों में पुरातन काल के असुरों के बारे में जरूर पढ़ा होगा पर आप ये नहीं जानते कि असुर समाज के लोग आज भी जीवित हैं, लेकिन अब वे बदहाली का जीवन जी रहे हैं।
इस समय ज़ब देश भर में नवरात्रि मना रहें है लेकिन उसी समय देश के कुछ कोने में रह रहे एक खास जाति के लोग जो खुद को असुर मानते है, वो इस उत्सव में जश्न मनाने के जगह शोक मनाते है। इनका दावा है कि ये लोग महिषासुर के वंशज है और देवी दुर्गा ने उनके पूर्वज का वध किया था इसीलिए वो नवरात्रि में ख़ुशी मनाने की जगह शोक मनाते है। ये सभी लोग इस दौरान न तो नए कपडे पहनते है और न ही तस्वीरें खिंचवाते है।
कहाँ रहते है असुर जनजाति के लोग..
ये जनजाति आज भी भारत देश के कुछ इलाके में रहते है,छत्तीसगढ़ जशपुर के मनोरा विकासखण्ड के तीन गांवों में इतिहास के पन्नो में दर्ज असुर आज भी निवासरत हैं। छत्तीसगढ़ में मात्र ये जशपुर जिले के पहाड़ी इलाको में रहते हैं। देश में अन्य राज्य जिनमे पश्चिम बंगाल, झारखण्ड और बिहार के इलाकों में निवासरत है। पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले के माझेरबाड़ी चाय बागान इलाके में भी ये लोग रहते है।
पूर्वजों से सुनी लोकगाथा पे भरोसा…
ये लोग खुद को महिषासुर के वशंज मानते है और इन्हे अपने पूर्वजों से सुनी गाथा पर भरोसा करते है जो हज़ारों साल से सुनते हुए आ रहे है। इनकी गाथा हिन्दू पुराणों में जो बताया गया है उसके ठीक विपरीत है।
क्या कहते है असुर जनजाति के लोग अपनी लोकगाथा पर…
चाय बागान में रहने वाले रंजन असुर के अनुसार, जैसा महिषासुर के बारे में लोग बोलते है हकीकत में वैसा नहीं है। हमारे राजा महिषासुर स्वर्ग और पृथ्वी दोनों जगह सबसे ज़्यादा ताकतवर राजा थे। सभी देवताओं को लगता था कि अगर राजा महिषासुर ज़्यादा समय तक ज़िंदा रहे तो लोग देवता को भुल जायेंगे और उनकी पूजा करना बंद कर देंगे इसीलिए राजा का वध किया गया जबकि उस समय में उनके राज्य में महिलाओं को बहुत ज़्यादा सम्मान से देखा जाता था और ऐसे समय हमारे राजा किसी महिला से युद्ध कैसे करते इसीलिए लड़ाई करना तो दूर राजा महिषासुर हथियार भी नहीं उठा सकते थे।
राजा महिषासुर के वध के बाद देवताओं की पूजा बंद कर दी…
बागान में रहने वाले दहारु असुर के अनुसार हम नवरात्रि के षष्ठी से दशमी तक हम सभी मातम मनाते है। इस दौरान हम अपने सभी काम रात में ही निपटा लेते है। दिन में घर से बाहर भी नहीं जाते। न नए कपडे खरीदते है और न ही पहनते है।हमारे राजा महिषासुर के वध होने के बाद हमारे पूर्वजों ने देवताओं की पूजा बंद कर दी।
पहाड़ी कोरवा से कम है संख्या
जशपुर जिले में असुर समाज के गणेश कहते हैं कि पहाड़ी कोरवा, जिनकी संख्या असुरों से कई गुनी ज्यादा है। उनको विशेष संरक्षित जनजाति में शामिल कर उनके उत्थान के लिए शासन-प्रशासन काम कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में महज ढाई सौ की जनसंख्या वाले असुर समाज को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा तक नही मिल पाया है।विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा नही मिलने से असुर आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। असुर जनजाति की शिक्षित युवती सीता बेग का कहना है कि जिस तरह पहाड़ी कोरवाओं को नौकरियों में विशेष छूट मिलती है, उसी तरह इस समाज के पढ़े लिखे युवाओ को नौकरी में विशेष छूट मिलनी चाहिए, जिससे इनका आर्थिक विकास हो सके।
जनसंख्या कम है और अस्तित्व पर खतरा
असुर समाज के मनीराम कहते हैं कि महिषासुर के वंशज माने जाने वाले असुरों की जनसंख्या पूरे देश मे लगभग साढ़े सात हजार है। जबकि छत्तीसगढ़ में महज ढाई सौ की संख्या में ही ये बचे हैं। असुर समाज आज विलुप्त होने की कगार पर है। सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे असुर जशपुर की पहाडियों में बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं।
सरकारी खामियों का नतीजा
छत्तीसगढ़ में रहने वाले असुर समाज के गणेश राम कहते हैं, विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुके असुर जनजाति के लोगों को अभी तक विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा न मिलना कहीं ना नहीं सरकारी खामियों को उजागर करता है.,क्योंकि जिले में अन्य कई विशेष संरक्षित जनजातियों के संरक्षण के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है, लेकिन आज तक असुर जनजाति के संरक्षण के लिए कोई पहल नही की गई है।
स्त्रोत गूगल