जशपुर

जिले को प्राप्त विरासत में मिले धरोहरो को संरक्षित रखना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है — डॉ विजय रक्षित

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जशपुर -विश्व विरासत सप्ताह के उपलक्ष्य में जशपुर जिला मुख्यालय में स्थित जिला संग्रहालय में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था “धरोहर संरक्षण में हमारी भूमिका”। संगोष्ठी में उपस्थित छात्र-छात्राओं को सर्व प्रथम डॉ विनय कुमार तिवारी , विभागाध्यक्ष, मानव शास्त्र ने आज के कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य, कार्यक्रम की रुपरेखा के संबंध में एवं विषय के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ओपन चैलेंज ट्रॉफी फुटबॉल प्रतियोगिता के समापन समारोह में हुए शामिल, कोतबा में अपेक्स बैंक खोलने की घोषणा की,पीएचसी बागबहार का 30 बेड में घोषणा
उन्होंने प्रतिभागियों को विरासत और धरोहर शब्द क्या है तथा जशपुर जिले के संदर्भ मे विभिन्न धरोहरों की जानकारी दी। धरोहरों को बचाए रखने के लिए डॉ तिवारी ने प्रतिभागी छात्र-छात्राओं को अपने घर ,गांव, समाज और जिले में जहां-जहां विरासत के रूप में कुछ चीज उपलब्ध/प्राप्त हैं ,उसे मात्र अवलोकन ही नहीं करना है, वरन उसे संरक्षण एवं संवर्धन के भी प्रयास किए जाएं।

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वस्तुत आज के इस संगोष्ठी का विषय है वह जशपुर जिले के में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के विरासत में मिली विभिन्न विधाए चाहे वह प्राकृतिक रूप से ,सांस्कृतिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से जो विरासत के रूप में इस समाज को प्राप्त हुआ है ,उसका संरक्षण एवं संवर्धन करना बहुत आवश्यक है। उन्होंने अपने व्याख्यान में मनोरा के पास लेखाआरा तथा बगीचा के पास रेगोला में प्राप्त शैलचित्र एवं कैलास गुफा का भी उदाहरण देकर इस संगोष्ठी में उपस्थित छात्र-छात्राओं को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान ।

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दूसरे वक्ता के रूप में शासकीय बाला साहब देशपांडे महाविद्यालय ,कुनकुरी के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रामानुज प्रताप ने बताया कि हमें विरासत के रूप में चाहे वह सांस्कृतिक विरासत ,धार्मिक विरासत हो ,सांस्कृतिक विरासत हो, सामाजिक विरासत हो एवं ऐतिहासिक विरासत के रूप में जो प्राप्त हुए हैं ,वह इस समाज के लिए अमूल्य धरोहर हैं ।

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किसी भी रूप में प्राप्त विरासत को देखा जाए तो उसके पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक आधार है उन्होंने अमरकंटक तथा कैलाश गुफा का उदाहरण देकर प्रतिभागियों को यह समझाने का प्रयास किया कि यह जो परंपरागत रूप से हमारे समाज को विरासत के रूप में जो सामग्री मिली है, इसे बचाए रखना है ।इसके संवर्धन के एवं संरक्षण में प्रयास करना है। एवं इसे और अधिक उन्नत बनाने का प्रयास करना ।

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आज हम अपनी चीजों के महत्व को नहीं समझते हैं पर हमारी वस्तु ,हमारे ज्ञान और हमारी कौशल प्रतिभा को यूरोपीय देशों ने अपना कर एक अच्छा संदेश विश्व को दिया है । तब हम उसके महत्व को स्वीकार करते हैं।डॉ ध्रुव आज के इस कार्यक्रम में विशेष रूप से इतिहास एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के 10 सदस्यों के साथ लेकर यहां संग्रहालय में आयोजित में उपस्थित थे एवं अपने बहुमूल्य विचारों से प्रतिभागियों को लाभान्वित किया। तृतीय वक्ता के रूप में इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो गौतम सूर्यवंशी शासकीय राभरा एन ई एस स्नातकोत्तर महाविद्यालय जशपुर ने प्रतिभागियों को विशेष रूप से उन्होंने अपने वक्तव्य में इतिहास एवं विरासत के संबंध में जानकारी दी।

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उन्होंने बताया कि विभाग के चौथे सेमेस्टर के छात्र-छात्राओं को लघु शोध प्रबंध के रूप में ग्वालिन सरना, रामरेखा धाम, टांगीनाथ, कैलाश गुफा, नकटी रानी, धरधरी पर कार्य करके ऐतिहासिक विरासत को जानने का प्रयास किया है।उन्होंने यह बताया कि पूर्व प्राचार्य डॉ विजय रक्षित के मार्गदर्शन में इतिहास विभाग के छात्राओं ने अपने चतुर सेमेस्टर के शोध प्रबंध में जशपुर जिले के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन कर महत्वपूर्ण जानकारी संग्रहित की है ।अब समय है उन धरोहरो के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए या नष्ट होने से बचाने के लिए आम जनों को जागृत करने की आवश्यकता है ।इस कार्य को आज का युवावर्ग बखूबी निभा सकता है ।

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आज के संगोषठी के अंतिम वक्ता के रूप में एवं जिनके संयोजन से यह कार्यक्रम आयोजित हुआ डॉ विजय रक्षित पूर्व प्राचार्य ,विभागाध्यक्ष, जिला संगठक एवं इतिहासकार ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज जिस भवन में आप संग्रहालय देख रहे हैं ,यह भी एक धरोहर है इसका भी एक इतिहास है। इसका भी डिजाइन वैज्ञानिक है और यहां उपलब्ध है जनजातियों के सामग्री ,दैनिक जीवन में ,सामाजिक जीवन में और पारिवारिक तथा सांस्कृतिक जीवन में जिसे जनजातीय समुदाय अपनाते थे ।उसका प्रदर्शन संग्रहालय में किया गया ।

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उन्होंने प्रतिभागियों को एक छोटी सी जानकारी दी कि तुंबा के संबंध में आज से 80 वर्ष पूर्व जब सन्ना एवं पडरापाठ से लोग जशपुर आते थे, आवागमन के साधन के अभाव में पैदल आना पड़ता था। तब जनजाति समुदाय के लोग यात्रा के दौरान पानी के लिए तुंबा का उपयोग करते थे।
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जिसे आधुनिक समय में वाटर बोतल के नाम से जानते है। इसके डॉ विजय रक्षित ने जशपुर जिले के गांवों के नाम करण के संबंध में काफी रोचक जानकारी दी। उन्होंने प्रतिभागियों से यह भी कहा कि जो बच्चा जिस गांव का है ,वह गांव के बड़े बुजुर्गो से यह पता करें कि उनका गांव का नाम इसी नाम से क्यों पड़ा। इसके अलावा उन्होंने जशपुर जिला मुख्यालय के विभिन्न धरोहरों एवं विरासतों की जानकारी दी और उन्होंने यह भी बताया की आधुनिकता के इस दौर पर भी हम अपने गांव में उपलब्ध धरोहर और विरासत को बचा सकते हैं।

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आज के इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक, इतिहास विभाग के छात्र-छात्राएं, तथा शासकीय बालासाहेब देशपांडे महाविद्यालय कुनकुरी एवं शासकीय एमएलबी कन्या विद्यालय जशपुर के राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयसेवक ने भाग लिया ।आज का यह कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा ।सभी ने संगोष्ठी के साथ-साथ इस संग्रहालय में उपलब्ध विभिन्न सामग्रियों का अवलोकन किया।

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संग्रहालय में सभी प्रतिभागियों ने स्वच्छ भारत मिशनकेअन्तर्गत स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया। आज के कार्यक्रम में डॉ विजय रक्षित प्रभारी संग्रहालय, डॉ विनय कुमार तिवारी, प्राध्यापक मानव शास्त्र ,डॉ रामानुज प्रताप कुनकुरी ,श्रीमती गीता झा कार्यक्रम अधिकारी एमएलबी, साथ ही राम भजन राय एन ई एस महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक कु आइलिन, कुमारी अजीता,श्रीमती प्रिंसी एवं प्रो गौतम सूर्यवंशी , डॉ दीधेशवरी भगत, अनुग्रह एकका के अलावा राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक हेमराज सिंह ,रविंद्र यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

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कार्यक्रम के अंत में डॉ विनय कुमार तिवारी ने प्रतिभागियों को, शिक्षकों को एवं स्वयं सेवको को धन्यवाद देते हुए भविष्य में इसी प्रकार के कार्यक्रम विभिन्न स्थानों पर आयोजित करने का अनुरोध भी किया।

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