आज से कार्तिक मास आरंभ,धार्मिक दृष्टि से जानिए इसका महत्व
इस साल कार्तिक माह 29 अक्तूबर, रविवार से शुरू हो रहा है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा पर 27 नवंबर को होगा। कार्तिक माह तप और व्रत का माह है। इस माह में भगवान की भक्ति और पूजा अर्चना करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। पुराणों के अनुसार इस मास में भगवान विष्णु नारायण रूप में जल में निवास करते हैं। इसलिए कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नियमित सूर्योदय से पहले नदी या तालाब में स्नान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करता है उसे अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। गीता के एक अध्याय का पाठ करने से मनुष्य घोर नरक से मुक्त हो जाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इस महीने में अन्न दान करने से पापों का सर्वथा नाश हो जाता है।
धार्मिक दृष्टि से इस महीने का महत्व
पुराणों के अनुसार इसी माह में कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था। कुमार कार्तिकेय के पराक्रम को सम्मान देने के लिए ही इस माह का नाम कार्तिक रखा गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार शंखासुर नामक असुर ब्रह्माजी से वेदों को चुराकर भाग रहा था। वेद उनके हाथों से छूटकर समुद्र में प्रवेश कर गए। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कहा कि मैं मछली का रूप धारण करके अभी वेदों को लाता हूं। उसी समय भगवान ने कहा कि अबसे कार्तिक के महीने में सभी वेदों के साथ मैं स्वयं जल में रहूंगा। इस महीने में नियमित स्नान पूजन करने वाले पर कुबेर भी कृपा करेंगे। जो धर्मात्मा व्यक्ति इस महीने में मेरी पूजा करेगा उसे यमलोक और स्वर्गलोक नहीं सीधा बैकुंठ की प्राप्ति होगी और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएगा।
कार्तिक मास के महात्म्य में बताया गया है कि एक गणिका थी। जवानी ढलने लगी तो उसे मृत्यु और उसके बाद की स्थिति का विचार परेशान करने लगा। एक दिन वह एक ऋषि के पास गई और अपनी मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने गणिका को कार्तिक स्नान का महात्म्य बताया। गणिका हर दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके तट पर दीप जलाकर भगवान विष्णु और सूर्यदेव की पूजा करने लगी। इस पुण्य के प्रभाव से बिना कष्ट शरीर से उसके प्राण निकल गए और दिव्य विमान में बैठकर बैकुंठ चली गई।
कार्तिक मास की महिमा का वर्णन करते हुए एक कथा देवी रुक्मिणी की भी है। पद्म पुराण के अनुसार पूर्वजन्म में रुक्मिणी गंगा तट पर रहने वाली एक विधवा ब्राह्मणी थीं। वह नियमित रूप से गंगा स्नान करके तुलसी की पूजा किया करती थीं और भगवान विष्णु का ध्यान करती थीं। कार्तिक मास की ठंड में एक दिन स्नान करके पूजा करने के क्रम में इनकी आत्मा को शरीर से मुक्ति मिल गई। इनकी आत्मा के पास पुण्य की इतनी पूंजी थी कि उन्हें देवी लक्ष्मी के समान स्थान प्राप्त हो गया। इसी पुण्य के प्रभाव से वह भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी बनीं।
कार्तिक महात्म्य का वर्णन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को बताया था कि वह पूर्वजन्म में भगवान विष्णु की पूजा किया करती थीं। जीवन भर कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करके वह तुलसी को दीप दीखाती थीं। इस पुण्य से सत्यभामा श्रीकृष्ण की पत्नी हुईं। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि कार्तिक का महीना सभी महीनों में मुझे अति प्रिय है। जो भी व्यक्ति इस महीने में अन्नदान, दीपदान करता है उस पर कुबेर महाराज भी कृपा करते हैं।