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छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग की “युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया” अब स्वयं एक प्रशासनिक तमाशा बन चुकी है। जो प्रक्रिया शिक्षकों की न्यायसंगत पदस्थापना के लिए शुरू हुई थी, अब वह अफसरों की व्यक्तिगत सुविधा और चहेतों के अटैचमेंट का ज़रिया बन गई है।

युक्तियुक्तकरण तक सीमित रही कमेटी, फिर मनमर्जी का शासन

शिक्षकों का कहना है कि युक्तियुक्तकरण के समय एक कमेटी बनी थी, पारदर्शिता की बात हुई थी, प्रक्रिया सार्वजनिक हुई थी, लेकिन जैसे ही वह दौर समाप्त हुआ, शिक्षा विभाग को मनमर्जी करने की खुली छूट मिल गई।अब कोई निगरानी नहीं, कोई उत्तरदायित्व नहीं। जिसे चाहा, जहाँ चाहा, अटैच कर दिया गया — और नियमों की बात करने वाले अधिकारी इन खेलों पर मौन साधे हुए हैं।

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बस्तर से दुर्ग तक, अफसरों की ‘पसंद’ ही अब नीति

बस्तर के जगदलपुर में शिक्षिका अंजूम मिर्ज़ा बेग का 8 जून को नवीन पुसपाल में पदस्थापन हुआ और 24 घंटे के भीतर उन्हें शहर के बीचोंबीच स्कूल में अटैच कर दिया गया।दुर्ग में भी एकल शिक्षकीय स्कूलों में तीन-तीन शिक्षकों को अटैच कर दिया गया, जबकि युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य ऐसे ही स्कूलों में नियमित पदस्थापन था।

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वरदहस्त प्राप्त शिक्षकों को संरक्षण, बाकी पर नियम का तड़का

शिक्षकों का आरोप है कि जब तक किसी शिक्षक को बड़े अधिकारी का वरदहस्त प्राप्त है, तब तक उसे कोई डर नहीं।नियमों की तलवार सिर्फ उन शिक्षकों पर गिरती है जो कमजोर या संगठन से दूर हैं।
कुछ अफसर चाटुकारों को दिल से लगाए घूमते हैं, जो अवसर मिलते ही “खेला” चालू कर देते हैं। कुछ जिलों का पता चल जा रहा कुछ जिलों में यह छिपा हुआ है, पर खेला चालू ही है, और अधिकारी मौन रहकर देख रहे है.

दिखावा पारदर्शिता का, सच दलाली का?

शिक्षकों के बीच यह धारणा तेजी से फैल रही है कि “पारदर्शिता” सिर्फ दिखावे की चीज़ है। जिन अधिकारियों ने युक्तियुक्तकरण में पक्षपात किया, वही अब अटैचमेंट के जरिए “अपने लोगों” को उपकृत कर रहे हैं।

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शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि हाईकोर्ट से आदेश लाने के बाद भी कुछ मामलों में स्थान परिवर्तन के लिए पैसे की मांग की गई है। शिक्षक संघ ने ऐसे मामलों में सबूत सहित शिकायत करने की अपील की है।

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शिक्षक संघो की चेतावनी – अब आर-पार की लड़ाई

प्रदेश शिक्षक संघ के नेताओं का कहना है कि अगर यह त्रुटिपूर्ण और अपारदर्शी प्रक्रिया वापस नहीं ली गई, तो प्रदेश के हर जिले में आंदोलन होगा। “यह अब केवल सेवा की नहीं, आत्मसम्मान की लड़ाई है।”

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युक्तियुक्तकरण एक नीति नहीं, अब पक्षपात का पर्याय बन चुकी है।जब नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, अफसरशाही बेलगाम होती है और शिक्षकों की अनसुनी होती है — तो यह सिर्फ तंत्र की विफलता नहीं, पूरे शिक्षा प्रणाली पर कलंक है।

अब जरूरी है कि शासन तत्काल हस्तक्षेप करे, अटैचमेंट आदेशों की समीक्षा हो, और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए — वरना यह “युक्तियुक्तकरण” नहीं, ‘अव्यवस्था का स्थायीकरण’ बन जाएगा।

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