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शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षक को नवाचार का नायक बनना होगा , AI के आधुनिक दौर में कैसी होगी शिक्षक की नई भूमिका?

राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह *प्रदेश के महान साहित्यकारों के नाम पर 3 शिक्षकों को स्मृति पुरस्कार* *52 राज्यपाल शिक्षक सम्मान से होंगे सम्मानित*

डेस्क CGNOW
प्रकृति के अपने दो ही मौलिक संसाधन है-समय और स्थान, जिन पर सवार होकर वह प्रगति का आख्यान आहुत करती है। पहचान का प्रतिबिम्ब बनाने में भी यही सामग्री काम आती है। हर दौर हर क्षेत्र की दिक्कतों और दिव्यताओं को अपने उपर उकेर कर अतीत होने को अभिशप्त है। परन्तु हर दौर पर समय की गहरी छाप छुट ही जाती है।

राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह *प्रदेश के महान साहित्यकारों के नाम पर 3 शिक्षकों को स्मृति पुरस्कार* *52 राज्यपाल शिक्षक सम्मान से होंगे सम्मानित*

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किसी भी समाज के इन महान नायकों में नाम दर्ज है शिक्षक का, जो अपने समय की चुनौतियों और अवसरों का आहवाहन करता है। समाज की हर नई पीढ़ी को भावी योद्वाओं की तरह तैयार करता है। जो रचते है उस समय पर अपनी शिनाख्त और उकेरते हैं उस जगह पर अपनी सभ्यता के संदेश। इसी दायित्व को धारण कर उतरता है एक शिक्षक समाज-निर्माण के रणक्षेत्र में।इस दृष्टि से नई सदी के नए अवसरों और चुनौतियों का चुनाव उन प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर करना होगा जो हमारी मानवता के भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने में संलग्न है। जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंश का जिन्न जिन्नात की शक्ल में जमता जा रहा है। सम्पूर्ण मानव जीवन पर टैक्नोलॉजी का शिकंजा कसता जा रहा है। उससे मानवीय मौलिकताएं मरणासन्न हो रही है।

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शिक्षा और शिक्षण के मूल्य
मानवीय मूल्यों का तिरोहन सब तरफ हम सबके सामने हैं। ऐसे में एक सजग समाज का निर्माण शिक्षा की प्राथमिकता कैसे बने? नई आधुनिकताएं जिन नई नैतिकताओं पर टिकेंगी उनका प्रवाह शिक्षा के जरिए समाज में कैसे सम्प्रेषित हो? यह दुरुह दायित्व शिक्षक के सिवा कौन निभा पाएगा। अब गंभीर सवाल यही उठता है कि यह नया शिक्षक कैसा हो? वह इस नई भूमिका का निर्वाह कैसे करे? शिक्षा की प्राथमिकताएं क्या हो और वह कौन-सा परिवेश है जिसमें शिक्षा बदल रही है? शिक्षा के बदलते परिवेश में नए शिक्षक की नई भूमिकाएं कौन सी है? 21वीं सदी में शिक्षक, शिक्षा और शिक्षण संस्थाएं सब के सब आमूल चूल बदलावों की तरफ बढ़ रहे है। प्राथमिकताओं का प्रण करना इतना सरल नहीं है।

गुरु गोबिन्द दोउ खड़े काके लागु पाये
बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दियो बताये!!

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समाज की अपनी जरूरतें है तो राजनीति के अपने अलग तकाजे हैं और बाजार तो खनन के ख्याल से बाहर कभी सोचता ही नहीं। ऐसे में सार्वभौमिकताओं को सहेजने वाली मानवता का दिग्दर्शन नई शैक्षिक संस्कृति में कैसे उभरे? यह उद्यम भरा दायित्व है। नए शिक्षक के कंधों पर आन पड़ा है। इस दृष्टि से विश्व एकीकरण और सामाजिक विखंड़न को रोकने का जो महत्वपूर्ण दायित्व शिक्षक की नई भूमिका से जुड़ चुका है। नई पीढ़ी के चरित्र और मानस निर्माण में अग्रणी भूमिका से जुड़ा है। इसके लिए शिक्षक को उच्च लक्ष्यों का वरण और निर्धारण स्वयं करना होगा। उसे नवाचार का नायक बनना होगा, क्योंकि बचपन में रोपे गए नैतिक मूल्य ही व्यक्तित्व निर्माण का आधार बनते हैं जिनका महत्व जीवन भर बना रहता है। यही एक शिक्षक का राष्टृीय दायित्व है और उसकी वैश्विक सामाजिक भूमिका भी।

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समाज में शिक्षक की भूमिका
एक अच्छे शिक्षक को अपनी इसी भूमिका में संतोषप्रद जीवन जीते हुए भावी पीढिय़ों का निर्माण करना होता है। शिक्षक राष्ट्र-निर्माता के दायित्वों और जिम्मेदारियों से भी आगे बढ़कर, जब अपने स्नेह और प्रेम के दायरों का विस्तार करता है तो समाज में उसके विराट व्यक्तित्व से जो आलोक फैलता है वह उसकी रचनाधर्मिता को आधार उपलब्ध कराता है। तभी एक शिक्षक अपनी सर्वांगिण शक्तियों के साथ नवाचारों का उद्यम कर पाता है। नए सिरे से समाज और राष्टृ को गढ़ने का काम करता है। नवावार के नायक के रूप में यही वह भूमिका है जो शिक्षक को राष्ट्र-प्रहरी के साथ राष्टृ-शिल्पी बनाती है और समाज में उसके प्रति अगाध आस्था के साथ श्रद्धा का विस्तार करती है।

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भारतीय इतिहास अनगिनत घटनाओं का साक्षी है जहां सफलताएं गुरु-शिष्य परम्परा के अनवरत प्रवाह से उपजती रही हैं। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों की एक ही कसौटी है वह है एक शिक्षक की नवाचारी दृष्टि। शिक्षा की चाहे कोई भी प्रणाली हो, विशेषकर स्कूली शिक्षा व्यवस्था तो एक व्यवहारिक और व्यावसायिक दृष्टि से सम्पन्न, सक्षम, प्रज्ञ और प्रेरित तथा नवोत्साह से भरे शिक्षक व उसके सक्रिय सहयोग एवं उसकी सुनियोजित-समुचित मौजूदगी के बिना फल-फूल ही नहीं सकती। केवल शिक्षक ही ऐसे सभ्य-सुशिक्षित मानवीय बोध वाले बीज मानव मस्तिष्क में अंकुरित कर पाता है जिससे ‘विविधता में एकता’ के बहुलता आधारित समावेशी समाज का निर्माण हो सकें।


एक सजग और सामाजिक दृष्टि से सम्पन्न शिक्षक की उपस्थिति से ही स्कूल सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक व धार्मिक सद्भाव तथा नए मूल्यों के निर्माण-केंद्र बन जाते हैं। आज शिक्षा में ऐसी पद्धति को अपनाने की प्रबल परवाह है जिसके नए और युवा शिक्षक अधिक अनुभवी एवं ज्ञानवान शिक्षकों के साथ गहन संवाद जारी रख सके। नए और पुराने के बीच सेतु स्थापित कर नेतृत्व कर सके। परम्परा को नवाचारों की चासनी में पकाकर नये स्वाद और संवाद के साथ नई पीढ़ी में सम्प्रेषित कर सके।

विश्व समाज की वर्तमान पीढ़ी इतिहास के ऐसे मोड़ पर है जिसके लिए भावी शिक्षक और शिक्षा दोनों का दायित्व बढ़ गया है। शिक्षा हर व्यक्ति के लिए आशा की एकमात्र किरण है। विशेष रूप से ऐसे समुदायों के लिए तो, जो घोर गरीबी, अभावों, अन्यायों और अनेक सामाजिक-आर्थिक उपेक्षाओं से उभरने के लिए लालायित हो। इस सामाजिक दायित्व को नवाचार और नेतृत्व की जीजिवीषा से भरा शिक्षक ही पूरा कर सकता है। वहीं नवाचारों के साथ गुणवत्ता को गाढ़ा बना सकता है। गुणवत्ता सतत, समान और स्थायी विशेषताओं की वाहक होती है।

व्यापक अर्थों में अच्छी गुणवत्ता अनिवार्यतः एक समान बनी रहती है। लेकिन इसके परिणाम समय की मांग के साथ बदलते रहते हैं। सामाजिक-आर्थिक दबावों व बाजार की आवश्यकताओं के परिणामस्वरुप ऐसा होता है। किसी भी समाज में शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया तभी तक प्रासंगिक बनी रहती है जब तक वह मानव व्यवहार और क्रियाशीलता के प्रत्येक क्षेत्र की आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खरी उतरती है।

दुनियाभर के अनुभवों से अब धीरे-धीरे यह साफ होने लगा है कि सारे तकनीकी परिवर्तनों के बावजूद भी ऑनलाइन-ऑफलाइन शिक्षण विधियों-प्रविधियों में प्रमुख भूमिका शिक्षक की ही है। शिक्षक ही वह केन्द्र है जिस पर पूरी शिक्षा व्यवस्था का दारोंमदार है। ऐसे शिक्षकों का कोई भविष्य नहीं होगा, जो नए ज्ञान और नए कौशल प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत् न हो। तकनीक की गति इतनी तीव्र है कि मानवीय क्रियाओं को सीधी चुनौती मिल रही है, इसीलिए इस बहस के बलवती होने की गुंजाइशें बढ़ी हुई है कि गूगल बड़ा या गुरु।

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कल के शिक्षक अपने विद्यार्थियों से तभी मान-सम्मान पा सकेंगे जब वे इस सच्चाई के प्रति सजग रहें कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल जीवनभर उनके लिए उपयोगी नहीं हो सकता। शिक्षकों को समयानुसार परिवर्तित विषयवस्तु के प्रति सचेत बन नवोन्मेषी रहना होगा।अपने अध्ययन-अध्यापन में नवीन तथ्यों और सूचनाओं का समावेशन निरन्तर करते रहना होगा। नए आविष्कारों, अनुसंधानों और नवाचारों को प्रासंगिकता और उपादेयता के साथ अपने सामाजिक मूल्यों-मान्यताओं के अनुरुप पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए रखना होगा।

भावी शिक्षक को इस दिशा में भी सचेत रहना होगा कि सूचना-संचार प्रौद्योगिकी में नई खोजें नयी पीढ़ी को आकर्षित कर रही हैं। इन नवाचारों से उत्पन्न नवोत्साह में कितनी सफलता और प्रवीणता के साथ नवोन्मेष बनानें में एक शिक्षक अग्रणी भूमिका निभा पाता हैं।भविष्य की शिक्षा शिक्षक और शिक्षार्थी से लोकतांत्रिक व्यवहार, तकनीकीय दक्षता और विश्व-दृष्टि के साथ अंतक्रियात्मक विचार-विमर्श वाली ‘‘द्विपक्षीय-शिक्षण’’ पद्धति की शुभाकांक्षी है। यही सहभागी शिक्षण का वास्तविक स्वरुप होगा। एक अच्छे-सच्चे शिक्षक को विवेकपूर्ण कौशल पर नियंत्रण हासिल करना होता है।आधुनिक विज्ञान और तकनीकी के गरिमापूर्ण युग में मानवीय जीवन-मूल्यों को विश्व कल्याण के विवेक की कला एवं कौशल के साथ समाज में समाहित करना ही आज के शिक्षक का परम् प्राथमिक दायित्व है।

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शिक्षा की सर्वव्यापकता का विस्तार समाज और राष्टृ के साथ-साथ विश्व को हमारे योगदानों से लाभान्वित करने वाला कैसे बने। हिंसा, आतंकवाद, बढ़ती गैर-बराबरी और पर्यावरणीय सरोकारों से जुड़े यक्ष प्रश्नों को शिक्षा और शिक्षक अपनी कार्यवाहियों में कैसे समोए। भारत ने अपनी नई राष्टृीय शिक्षा नीति में जिस तरह से मानविकी़, कला और विज्ञान का समन्वय कर नए ढंग के संयुग्मन बनाने का विजन सामने रखा है। वह नई सदी की नयी दुनियां के लिए इन्हीं तैयारियों का एक मुक्कमल विचार हैं।
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लिबरल आर्टस का पैटर्न शिक्षा में समानता के विचार को अधिक मजबूती के साथ व्यवहारिक घरातल पर उतारने का काम करेगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रतिबद्धता हमें दुनियां के साथ कंधंे से कंधा मिलाकर चलने के अवसर मुहैया करायेगी। शिक्षा के जरिए पर्यावरण सरोकारों और कला के विभिन्न आयामों सहित खेल के अनेक क्षेत्रों को विशेष तरजीह के साथ जोड़ने की प्राथमिकता, मौजूदा वैश्विक जरुरतों से जूझने का एक कारगर तरीका है।
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शिक्षक की यह नई भूमिका ही भारत को नए समाज और नयी संस्कृति के निर्माण की दिशा में ले जाएगी। नई नीति का नया नियोजन भारतीय ज्ञान परम्परा का आधुनिक शिक्षा से संवाद विश्व कल्याण के लिए एक अहिंसक आहवाहन है। जिसमें स्थानीयता को विशेष तरजीह देना भारतीय समाज और संस्कृति के उन सनातन मूल्यों-मान्यताओं के संरक्षण व संवर्द्धन के नियोजन को बताता है जो भारत और भारतीयता की पहचान को अक्षुण्य बनाए रखने में महती भूमिका निभाते रहे है।

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नई सदी के नए भारत में नए शिक्षक को ससमय अपनी ईमादार प्रतिबद्धताओं के साथ विश्व नागरिक निर्माण के पुनीत दायित्व के साथ अपनी नयी भूमिका में आना है। यह निश्चित ही एक नए और सशक्त भारत के साथ-साथ सभ्य, समरस और शांतिपूर्ण अहिंसक विश्व समाज के निर्माण में शिक्षक की महान भूमिका होगी।

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