भारत की शान “वंदे भारत एक्सप्रेस” पर सिर्फ मज़े के लिए आरोपियों ने खिड़कियों के शीशे को पत्थर मारकर तोड़े……
बापू ने जब पूरे देश की यात्रा करने का मन बनाया तो उन्होंने साधन के तौर पर रेल को चुना था। इतिहास में कई ऐसे किस्से आते हैं जब पता चलता है कि महात्मा गांधी ट्रेन के तीसरे दर्जे में यात्रा किया करते थे। वह भारतीयों के करीब पहुंचना चाहते थे, उन्हें समझना चाहते थे। धीरे-धीरे भारतीय रेल देशवासियों के लिए लाइफलाइन बन गई। अमीरों के लिए तो स्पेशल प्लेन खड़े हैं लेकिन गरीब और मिडिल क्लास के लिए आज भी रेलवे परिवहन का सबसे सस्ता और सुरक्षित माध्यम है। भारत में रेलवे का इतिहास 170 साल पुराना है।
छुक-छुक करती रेल ने भारत की गुलामी और आजादी की पहली सुबह देखी है। एक दिन में ढाई करोड़ लोगों को ढोने वाली रेलवे ने कोरोना महामारी का वो दौर भी देखा जब देशभर में उसके पहिए थम गए थे। अपने गांव, शहर से गुजरने वाली ट्रेनों से लोगों की यादें जुड़ी हैं। फिल्मों में ट्रेनों के दृश्य देख भारतीयों का मन ‘छैंया-छैंया’ करने लगता है।
लेकिन क्यों हम अपनी रेल पर हम पत्थर मारते हैं? क्या बनते जा रहे हैं हम? क्या विरोध, गुस्सा या नाराजगी जताने के लिए हम सरकारी संपत्ति को बर्बाद करेंगे और हां, ये ‘सरकारी’ शब्द किसी दूसरे देश या किसी गैर के लिए नहीं होता है ये तो हमारे ही पैसों से खड़ी की गई संपत्ति और सुविधा होती है जिसे सरकारी कहा जाता है। वो पत्थरबाज शायद नहीं समझते।
लखनऊ से गोरखपुर के बीच चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस पर चार महीने में पत्थरबाजी की चार घटनाएं
जब से वन्दे भारत ट्रैन का चलना चालू हुआ है तबसे वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन पर पथराव की घटना होनी बंद नहीं हो रही है।अभी उत्तर प्रदेश के जुलाई महीने में हुई कुछ पत्थरबाज़ी वाली घटना का जब छानबिन किया तो जाँच करने में अजीब सी बात पता चली है।कुछ लोगों ने सिर्फ मजे लेने के लिए वन्दे भारत एक्सप्रेस में पत्थर चलाते थे। लखनऊ से गोरखपुर के बीच चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस पर चार महीने में पत्थरबाजी की चार घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि एक घटना को छोड़ दें तो बाकि तीन घटनाओं पें आरोपियों ने सिर्फ मजे के लिए पत्थर चलाना कबूला है।ऐसे अराजक तत्वों से रेलवे सख्ती से निपटने का दावा किया है। लगातार लोगों को जागरूक करने के साथ ही चेतावनी भी दी जा रही है कि ऐसा न करें।
पूछताछ में बताते हैं कि मौज-मस्ती करने के लिए पत्थर फेंका….
लखनऊ से वापसी में वंदेभारत पर 17 जुलाई को डोमिनगढ़ में पत्थरबाजी हुई। इसमें कोच का शीशा चटक गया था। आरपीएफ ने सीसीटीवी फुटेज और स्थानीय लोगों की मदद से पत्थरबाजों को दबोच लिया। आरोपियों ने पूछताछ के दौरान बताया कि मौज लेने के लिए पत्थरबाजी की थी।
इसके बाद बीते तीन अगस्त को गोरखपुर में धर्मशाला ओवरब्रिज के पास कुली हेमराज प्रजापति ने पत्थरबाजी की जिससे सी-2 कोच का शीशा चटक गया था। सीसीटीवी से पहचान कर राजस्थान के रहने वाले कुली को दबोचा गया तो उसने भी पूछताछ मजे के लिए पत्थर चलाए जाने की बात कबूल की।
इसी तरह बीते 15 सिंतबर को गोरखपुर से लखनऊ जाते समय मल्हौर के पास पत्थरबाजी में सी-4 कोच का एक शीशा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। आरपीएफ ने आरोपी को गिरफ्तार किया तो उन्होंने भी मजा लेने के लिए पत्थर चलाने की बात स्वीकार की।
एक्सप्रेस से बकरी कट जाने के कारण, बदला हेतु पत्थर चलाये….
11 जुलाई को गोरखपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन पर पत्थर फेंके गए हैं, जिसमें कई खिड़कियों के शीशे टूट गए थे,राहत की बात रही कि इस दौरान किसी यात्री को कोई चोट नहीं आई थी।लखनऊ जा रही वंदे भारत पर अयोध्या से आगे सोहावल और देवराकोट स्टेशन के बीच पत्थर चलाए गए थे। स्थानीय पुलिस जांच के लिए मौके पर गई और पता चला कि ट्रेन ने मुन्नू पासवान की छह बकरियों को कुचल दिया था, इसलिए, गुस्से में आकर मुन्नू और उसके दो बेटों अजय और विजय ने आज ट्रेन पर पथराव कर दिया। उन तीनों को पकड़ लिया गया है “इसमें पकड़े गए आरोपितों ने बताया था कि उनकी बकरी वंदेभारत से कट गई थी। उसका बदला लेने के लिए पत्थर चलाए थे।
वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त चंद्रमोहन मिश्रा ने बताया कि वंदे भारत पर पत्थर फेंकने वालों को आरपीएफ ने पकड़ कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। रेलवे एक्ट 153 के तहत सभी मामलों में चालान कर उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। फिलहाल सभी जमानत पर बाहर हैं। इस एक्ट में दोषी साबित होने पर पांच साल की सजा का प्रावधान है।