रायपुर, 24 नवंबर 2025 — छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने धान खरीदी को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि डिजिटल कॉर्प सर्वे और गिरदावली की ग़लत व अपूर्ण प्रक्रियाओं के कारण किसानों के रकबे में भारी कटौती की जा रही है, जिससे वे अपना पूरा धान बेचने से वंचित हो रहे हैं। उनके अनुसार, किसानों को 21 क्विंटल प्रति एकड़ धान बेचने का अधिकार है, लेकिन उन्हें केवल 15 से 17 क्विंटल प्रति एकड़ तक ही सीमित कर दिया गया है, जिससे किसान अत्यंत व्यथित और परेशान हैं।

वर्मा ने कहा कि सरकार के मौखिक आदेशों पर प्रदेशभर में अलग-अलग तरह की व्यवस्थाएँ लागू कर दी गई हैं। कहीं डिजिटल सर्वे के आधार पर रकबा निर्धारित किया जा रहा है, तो कहीं खटिया गिरदावली पर, और कई जगह बिना मौका मुआयना किए फर्जी अनावरी रिपोर्ट तैयार कर दी गई है। इस गड़बड़ व्यवस्था ने पूरे सिस्टम को अव्यवस्थित कर दिया है। गिरदावली का काम राजस्व विभाग का है, लेकिन किसान जब शिकायत लेकर वहाँ पहुंचते हैं, तो उन्हें खाद्य विभाग भेज दिया जाता है। खाद्य विभाग के अधिकारी शिकायतों को कृषि और सहकारिता विभाग के पास भेज रहे हैं। इस तरह किसान त्रुटि सुधार के लिए चार-चार विभागों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एकीकृत किसान पोर्टल और एग्री स्टेक पोर्टल के मिलान में हजारों किसान गायब पाए जा रहे हैं। धान फसल के पाँच लाख हेक्टेयर रकबे का पंजीयन कम हो गया है और डिजिटल कॉर्प सर्वे में कई किसानों के खेतों में उगे फसल को “निरंक” दर्ज कर दिया गया है। इससे वास्तविक धान बोने वाले किसान भी बिक्री प्रक्रिया से बाहर हो रहे हैं। वर्मा ने कहा कि रकबा कटौती अब प्रदेश के किसानों की सबसे बड़ी सामान्य समस्या बन चुकी है।

प्रवक्ता ने बताया कि किसानों का धान पूरी तरह तैयार है, लेकिन रिकॉर्ड में जमीन कम दिखाए जाने से वे अपना धान मंडी में बेच नहीं पा रहे। किसान तहसील, राजस्व कार्यालय, जिला कलेक्टर, यहाँ तक कि मंत्री और विधायकों तक गुहार लगा रहे हैं, लेकिन समाधान कहीं नहीं मिल रहा। सरकार ने त्रुटियों को दुरुस्त करने के लिए कोई समय-सीमा भी तय नहीं की है, जिससे किसानों की पीड़ा और बढ़ गई है।

सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि त्रुटिपूर्ण गिरदावली न केवल प्रशासनिक कमजोरी है बल्कि किसानों के अधिकारों से सीधा खिलवाड़ भी है। गिरदावली जैसे महत्वपूर्ण कार्य में पारदर्शिता और जवाबदेही अत्यावश्यक है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में यह कहीं नजर नहीं आ रही। उन्होंने कहा कि प्रशासन के रवैये से स्पष्ट है कि सरकार किसानों का पूरा धान खरीदने की इच्छुक ही नहीं है।


 

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