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भारत के सर्वोच्च न्यायालय को जल्द ही नया नेतृत्व मिलने वाला है। जस्टिस सूर्यकांत देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे। उनकी नियुक्ति न केवल न्यायपालिका के लिए एक अहम बदलाव है, बल्कि यह एक ऐसी प्रेरक कहानी भी है जो बताती है कि साधारण पृष्ठभूमि से उठकर भी इंसान मेहनत और लगन के दम पर सर्वोच्च शिखर तक पहुंच सकता है।

हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में 10 फरवरी 1962 को जन्मे जस्टिस सूर्यकांत का बचपन बेहद सरल और संघर्षों से भरा रहा। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, और आर्थिक स्थिति साधारण होने के कारण बचपन में ही उन्हें पढ़ाई के साथ खेतों में काम करना पड़ता था। गांव के जिस स्कूल में वे पढ़ते थे, वहां बेंच तक नहीं थीं—बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते थे। बिजली की कमी के बीच टिमटिमाती रोशनी में पढ़ाई करने वाले सूर्यकांत ने तभी ठान लिया था कि जीवन में कुछ बड़ा करना है।

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अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गांव में पूरी करने के बाद उन्होंने हिसार के सरकारी कॉलेज से स्नातक और फिर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की पढ़ाई पूरी की। आगे चलकर उन्होंने वकालत के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से LLM भी किया और वह भी प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान हासिल कर।

वकालत की शुरुआत उन्होंने 1984 में हिसार जिला अदालत से की, लेकिन उनकी प्रतिभा जल्द ही उन्हें चंडीगढ़ ले आई, जहाँ उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपनी पकड़ मजबूत की। केवल 38 वर्ष की उम्र में वे हरियाणा के महाधिवक्ता (Advocate General) बने—यह उस समय की सबसे कम उम्र थी। उनकी तेज सोच, गहरी कानूनी समझ और न्याय के प्रति समर्पण ने उन्हें 2004 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का स्थायी जज बना दिया।

साल 2018 में वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनका सफर नई ऊंचाइयों तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए उन्होंने कई बड़े संवैधानिक मामलों—जैसे अनुच्छेद 370, पेगासस और सार्वजनिक हित से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों—में अहम भूमिका निभाई।

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उनकी विनम्रता और सरल स्वभाव के कारण गांव के लोग आज भी उन्हें “मास्टर जी का बेटा” कहकर याद करते हैं। एक किसान परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुंचना उनके जीवन को एक प्रेरणादायक कहानी बनाता है।

जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर 2025 को मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे। माना जा रहा है कि उनका कार्यकाल संवैधानिक दायरे, पारदर्शिता और न्याय की सुलभता को और मजबूत दिशा देगा। उनकी नियुक्ति न केवल हरियाणा के लिए गौरव की बात है, बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए यह संदेश भी कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी हों, दृढ़ इच्छाशक्ति रास्ता खुद बना लेती है।

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