वनवासी कल्याण आश्रम का 70 वां स्थापना दिवस , पारम्परिक वेशभूषा में सजे हुए लोकनृतक दलों ने दी नृत्य की प्रस्तुति
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की 70 वें स्थापना दिवस के अवसर पर शहर के जिला चिकित्सालय के समीप स्थित अंर्तराष्ट्रीय मुख्यालय प्रांगण झांझ और मांदर के थाप से गूंज उठा।
लोक कला संगम कार्यक्रम में जिले भर के लोक नतृक दलों ने अपने नृत्य कला का प्रदर्शन किया। प्रदेश के पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने बताया अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की नींव 26 दिसंबर 1952 को उस वक्त रखी गई थी,जब जशपुर जैसे सुदूर वनाचंल क्षेत्र में वनवासियों को बरगलाने के लिए विदेशी ताकतें सक्रिय थी। उन्होनें बताया कि कल्याण आश्रम ने जनजातियों की मूल रीति,रूढ़ियों और परम्पराओं को सहेजने के साथ उन्हें शिक्षित,आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और जागरूक करने के दिशा में कार्य शुरू किया। इसका परिणाम आज हम सब देख रहें हैं।
उन्होनें बताया कि स्थापना दिवस के अवसर पर सामूहिक दौड़ और लोकनृत्य का आयोजन किया गया है। इस नृत्य संगम में जिले भर से सौ से अधिक नृतक दल भाग ले रहें हैं। कला संगम में शामिल होने के लिए कड़ाके की सर्दी के बावजूद सुबह से जिले भर से नृृतक दलो के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने भारत माता,वनवासी कल्याण आश्रम के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत बाला साहेब देशपांडें,जगदेव राम और व्यवस्थापक प्रकाश काले के तैल्य चित्र पर दीप प्रज्जवलित कर किया। आयोजन के उद्देश्य के संबंध में बताते हुए प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने बताया लोक नृत्य सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है। अपितु यह जनजातियों की परम्परा,सामाजिक व धार्मिक मान्या,संस्कृति व लोकाचार का प्रतिनिधित्व करती है। वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना जनजातियों को संगठित कर,उनके मूल पहचान को संरक्षित व संवर्धित करने के लिए की गई थी। लोक कला संगम के माध्यम से जनजातिय संस्कृति की बहुरंगी आयाम को एक मंच पर प्रदर्शित करने की चेष्टा की गई है। स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित लोक नृत्य में बच्चों व युवाओं के साथ बुजुर्ग महिला व पुरूषों का उत्साह भी देखते बन रहा था। पारम्परिक वेशभूषा में सजे हुए लोकनृत्क दल करमा,सरहुल,डंडा नृत्य की प्रस्तती दे रहे थे। लोक नृत्य को देखने के लिए शहर और आसपास के ग्रामीण अंचल से भारी संख्या में कल्याण आश्रम के प्रांगण में उमड़े हुए थे।