सुकमा

संभाग स्तरीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में सुकमा का नर्तक दल रहा प्रथम

गुणडाधुर लोक कला मंच ने प्रस्तुत किया मंडई लोक नृत्य

जगदलपुर के बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एण्ड लिटरेचर (बादल) आसना में 25 सितम्बर को संभाग स्तरीय आदिवासी नृत्य महोत्सव वर्ष 2022 का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में अन्य जिलों के साथ ही सुकमा जिले से विकासखण्ड किन्दरवाड़ा का गुण्डाधुर लोक कलामंच के द्वारा भाग लेकर मंडई लोक नृत्य की प्रस्तुति की गई। प्रतियोगिता में सुकमा का नर्तक दल संभाग में प्रथम स्थान पर रहा।  गुण्डाधुर लोक कला मंच ने इस प्रतियोगिता में विजय हासिल कर रायपुर में 1 नवम्बर से प्रारम्भ होने वाली राज्योत्सव सह राष्ट्रीय आदिवासी 2022 के लिए अवसर प्राप्त किया है। कलेक्टर श्री हरिस एस. और आयुक्त आदिवासी विकास सुकमा श्री गणेश शोरी ने चयनित नृतक दल को शुभकामनाएं एवं बधाई दी है। सुकमा जिले से संभाग स्तर में प्रथम स्थान हासिल करना जिले के लिए अत्यन्त ही गौरव की बात है।
मंडई लोक नृत्य- धुरुवा जनजाति का लोक नृत्य
उल्लेखनीय है कि बस्तर एवं सुकमा जिले के वनांचल में निवासरत धुरवा जनजाति के लोगों द्वारा मेला, मण्डई एवं गांव के जात्रा के अवसरों पर ढोल के ताल पर एवं बांसूरी के धुन में मंण्डई लोक नृत्य बड़े ही हर्षोंल्लास के साथ किया जाता है। इस नृत्य में बांसूरी की धुन से ही नृत्य की शैली का प्रदर्शन किया जाता है। धुरवा मण्डई लोक नृत्य उत्साह एवं वीरता से परिपूर्ण होने के कारण इसे इस क्षेत्रान्तर्गत सैनिक नृत्य भी कहा जाता है। यह लोक नृत्य मेला मण्डई में क्षेत्र के आस-पास के आमंत्रित देवी देवताओं एवं ग्राम्य देवी देवताओं की परघाव (स्वागत) करते समय तथा मण्डई मेला का भ्रमण करते समय कासन ढोल के नेतृत्व में देवलाट, छत्तर, सिरहा-गुनिया, पेरमा पुजारी के सम्मुख देवी देवताओं की अगुवाई में की जाती है। नर्तक दल -बन्दीपाटा, बेलूर, साका की वेशभूषा व पारम्परिक अस्त्र टंगिया (कुल्हाड़ी) फरसा, तीर धनुष,कमर में बुरका (सुखी लौकी का विशेष पात्र जिसमें पेय पद्वार्थ रखा जाता है) श्रृंगार विशेष (तोडी-बजाने का विशेष यंत्र) लेके.घुरवा ढोल व टमक, तुड़बुड़ी व बान्सूरी की धुन में नृत्य किया जाता है। जिसमें कई प्रकार के वादन धुन होते है इन धुनों को ताल बनाकर नृत्य किया जाता है।
यह नृत्य विशेषकर मण्डई लोकनृत्य राज्य के सुकमा एवं बस्तर जिले के कुछ विकासखण्ड के मेला मण्डईयों में देखने को मिलता है। जहाँ पर धुरवा जनजाति के लोग निवास करते है। इस नृत्य में आराध्य देवी देवताओं के साथ एक डोली देवी भी होता है। जिन्हें ये मण्डई लोक नृत्य एवं ढोल की ताल तथा बान्सूरी का धुन बहुत ही पसंद किया जाता है।

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