छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों में एक अनमोल प्राकृतिक खजाना फिर से धरती की कोख से बाहर झांकने लगा है भीषण उमस और हल्की बारिश के मेल ने पहाड़ी क्षेत्रों की मिट्टी में पूटु नामक कीमती मशरूम को जन्म दिया है जिसकी बाजार में कीमत दो हजार से लेकर तीन हजार रुपये प्रति किलो तक पहुंच रही है यह सब्जी न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है बल्कि इसकी खुशबू और जायका ऐसा होता है कि लोग इसे शाकाहारी नॉनवेज तक कह देते हैं

कहां मिलता है पूटु
पूटु जिसे कई क्षेत्रों में रुगड़ा या बोड़ा भी कहा जाता है छत्तीसगढ़ के बस्तर जशपुर सरगुजा गरियाबंद गौरेला पेंड्रा मरवाही और झारखंड के गुमला लातेहार रांची सिमडेगा जैसे जिलों के साल और सरई के जंगलों में मिलता है यह एक विशुद्ध रूप से प्राकृतिक खाद्य है जो बिना बीज या किसी मानवीय प्रयास के सिर्फ मौसम और मिट्टी के सहारे उगता है

क्या है पूटु
पूटु एक गोलाकार भूरे रंग का जंगली मशरूम है जो दिखने में मटमैला और मिट्टी से सना हुआ होता है लेकिन इसका स्वाद इतना लाजवाब है कि इसे छत्तीसगढ़ झारखंड की सबसे महंगी सब्जी कहा जाता है इसमें न दाने होते हैं न कोई बीज यह जंगल में गिरे हुए साल पत्तों के सड़ने से उत्पन्न जैविक कवक से प्राकृतिक रूप से बनता है

बारिश और उमस का कमाल
इस साल बारिश ने समय से पहले दस्तक दी और इसके साथ ही पूटु का भी प्राकट्य तय हो गया सरई के जंगलों की भुरभुरी मिट्टी में जब नमी और उमस का संतुलन बनता है तभी यह मशरूम धरती से बाहर निकलता है जून के अंत में आमतौर पर मिलने वाली यह सब्जी इस बार मौसम की वजह से लगभग पंद्रह से बीस दिन पहले निकल आई है

कैसे होता है संग्रह
सुबह होते ही गांव की महिलाएं और बच्चे लकड़ियों से जंगल की मिट्टी को टटोलते हुए पूटु खोजने निकलते हैं पूरा जंगल एक जीवंत मंडी में तब्दील हो जाता है जहां हर कोने में सब्जी की खोज चल रही होती है ये लोग इन्हें सावधानी से मिट्टी से बाहर निकालते हैं और पत्तों के दोने में सजा कर बाजार की ओर ले जाते हैं

कीमत जानकर चौंक जाएंगे
हालांकि यह सब्जी पहली नजर में बेहद साधारण लगती है लेकिन इसकी बाजार कीमत किसी भी फलों सब्जियों को मात देती है शुरूआती दौर में इसकी मांग अधिक होने के कारण यह दो हजार से तीन हजार रुपये प्रति किलो तक बिकती है कई स्थानों पर यह पत्तों के दोने में डेढ़ सौ से दो सौ रुपये में बेची जाती है जिसमें मुश्किल से चालीस से पचास ग्राम ही होता है

कमाई का मजबूत जरिया
फिलहाल ग्रामीण इस मशरूम को अपने उपयोग के लिए एकत्र कर रहे हैं लेकिन कुछ ही दिनों में जैसे जैसे यह बाजार में पहुंचेगा यह ग्रामीणों की आय का एक मजबूत जरिया बनेगा जंगल की यह देन आदिवासी समुदाय के लिए एक सीजनल इनकम का बड़ा स्रोत है जो उन्हें स्वावलंबन और सम्मान देता है

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