हाल के सालों में कंप्यूटर साइंस कॉलेज में सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले कोर्सेज में से एक रहा है. बहुत से स्टूडेंट इसे इसलिए चुनते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें नौकरी के अच्छे मौके मिलेंगे और सैलरी भी अच्छी होगी. हालांकि, अमेरिका के हाल के आंकड़ों से कुछ और ही पता चलता है: कंप्यूटर साइंस के कई ग्रेजुएट्स को नौकरी ढूंढने में मुश्किल हो रही है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जो न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक के डेटा पर आधारित है, कंप्यूटर साइंस में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत है. यह अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में सातवें नंबर पर है जिनकी बेरोजगारी दर सबसे ज़्यादा है. इससे ऊपर फिजिक्स (7.8 प्रतिशत) और एंथ्रोपोलॉजी (9.4 प्रतिशत) जैसे सब्जेक्ट हैं.
कंप्यूटर इंजीनियरिंग जैसे इससे जुड़े दूसरे फील्ड्स में भी दिक्कतें आ रही हैं. इसमें बेरोजगारी दर 7.5 प्रतिशत है, जिससे यह सवाल उठता है कि आज के जॉब मार्केट में टेक ग्रेजुएट्स की असल में कितनी मांग है.
इसके उलट, न्यूट्रिशन साइंसेज, कंस्ट्रक्शन सर्विसेज और सिविल इंजीनियरिंग जैसे कोर्सेज में बेरोजगारी दर सबसे कम है, जो 1 प्रतिशत से लेकर 0.4 प्रतिशत तक है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के ग्रेजुएट्स में बेरोजगारी बढ़ रही है. फरवरी तक, जेन Z (Gen Z) के ऐसे घरों की संख्या 32 प्रतिशत बढ़ गई है जिन्हें बेरोजगारी भत्ता मिल रहा है.
HR कंसल्टेंट ब्रायन ड्रिस्कॉल ने मीडिया को बताया कि कई स्टूडेंट्स को कंप्यूटर साइंस की डिग्री से मिलने वाले फायदों के बारे में गलत उम्मीदें दे दी जाती हैं. उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत करने और “टॉप” कोर्स चुनने के बावजूद, कई ग्रेजुएट्स को कड़े कंपटीशन, कम मौके और बढ़ता स्टूडेंट लोन जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने यह भी कहा कि आज के मार्केट में, किसी उम्मीदवार का बैकग्राउंड या यूनिवर्सिटी का नाम अक्सर उसकी असली स्किल्स से ज्यादा मायने रखता है.
यह ट्रेंड दिखाता है कि कुछ डिग्रियों की सोची गई और असल वैल्यू में बड़ा अंतर आ गया है. यह स्टूडेंट्स और टीचर्स को आज के बदलते जॉब मार्केट में करियर गाइडेंस और उम्मीदों पर फिर से विचार करने के लिए कहता है.
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