ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर आधारित बैरियर-फ्री टोल कलेक्शन की शुरुआत के साथ, हाईवे पर गाड़ी चलाने वाले यूजर्स को बिना किसी असुविधा के टोल गेट से 100 किलोमीटर प्रति घंटे तक की तेज रफ्तार से जाने की अनुमति दी जाएगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है।
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाईवे यूजर फीस क्लेक्शन व्यवस्था का विकल्प चुनने वाले वाहनों के लिए शुल्क प्लाजा पर शुरुआत में एक या दो लेन उपलब्ध होंगी। उन्होंने बताया कि यह व्यवस्था जल्द ही शुरू की जाने वाली है। अधिकारी ने कहा, “सरकार को उम्मीद है कि इससे टोल कलेक्शन में लीकेज को रोकने और टोल डिफॉल्टरों की जांच करने में मदद मिलेगी। लेन अग्रिम रीडिंग, पहचान और प्रवर्तन उपकरणों से लैस होंगी ताकि सिर्फ वैध वाहन ही गेट से गुजर सकें।”
GNSS-आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम के तहत, हाईवे पर तय की गई दूरी के आधार पर टोल लिया जाता है। वहीं मौजूदा तरीके के तहत, भले ही यूजर टोल रोड के एक हिस्से की यात्रा करता है, उसे एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है। सैटेलाइट-आधारित सिस्टम वाहन की गतिविधि को ट्रैक करती है और वाहनों में लगे ऑन बोर्ड यूनिट की मदद से शुल्क की गणना करती है।
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पहले इन वाहनों पर होगा लागू
पहले चरण में, जीएनएसएस-आधारित टोलिंग को वाणिज्यिक वाहनों के लिए लागू करने का प्रस्ताव है। और बाद में निजी वाहनों को शामिल किया जाएगा। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने हाल ही में GNSS-आधारित टोल संग्रह को विकसित और कार्यान्वित करने के लिए अभिनव और योग्य कंपनियों से वैश्विक निविदा आमंत्रित की है। अधिसूचना के अनुसार, इच्छुक कंपनियां भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा प्रवर्तित एक फर्म, भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड को अवगत करा सकती हैं। जिसने निविदा आमंत्रित की है।
चुनी जाने वाली एजेंसी मौजूदा प्लाजा के भीतर डेडिकेटेड जीएनएसएस लेन के लेआउट को विकसित करेगी। जिसमें अग्रिम साइनेज, मार्किंग, लाइटिंग और उपकरणों की नियुक्ति शामिल है। ताकि जीएनएसएस से लैस वाहनों को टोल प्लाजा से गुजरने वाले धीमी रफ्तार वाले रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन-आधारित (फास्टैग) वाहनों के साथ संघर्ष किए बिना सुविधा हो सके।
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अधिकारियों ने बताया कि हाई परफॉर्मेंस वाले उपकरण ऑटोमैटिक नंबर प्लेट पहचान कैमरों के जरिए वाहन पंजीकरण संख्या पढ़ते हैं, वाहन की पहचान करते हैं। और वाहन के एक्सेल और टाइप के आधार पर वजन का अनुमान लगाते हैं, और टोल शुल्क लेते हैं।शुरुआत में, एक हाइब्रिड मॉडल, जिसमें RFID-आधारित फास्टैग और GNSS-सक्षम टोल संग्रह दोनों शामिल हैं। प्रस्तावित व्यवस्था को सुचारू रूप से अपनाए जाने तक दोनों व्यवस्था एक साथ चलेगी। अधिकारियों ने बताया कि टोल प्लाजा पर सभी लेन आखिरकार जीएनएसएस लेन में बदल दी जाएंगी।
एनएचएआई को लगभग 70,000 किलोमीटर लंबाई के नेशनल हाईवे के रखरखाव और प्रबंधन का काम सौंपा गया है। जो कुल 1,50,000 किलोमीटर नेटवर्क का हिस्सा है।
इसके अलावा, नेशनल हाईवे फीस (दरों का निर्धारण और संग्रह) नियम, 2008 के अनुसार इन हाईवे पर यूजर फीस वसूलने का दायित्व एनएचएआई को सौंपा गया है। इस समय, नेशनल हाईवे और एक्सप्रेसवे के लगभग 45,000 किलोमीटर के लिए टोल वसूला जाता है।