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गुवाहाटी। असम की राजधानी गुवाहाटी के पास स्थित नीलाचल पर्वत पर मां कामाख्या धाम में अंबुवासी महायोग-2025 की भव्य तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। 22 जून से 26 जून तक चलने वाले इस दिव्य उत्सव में देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है। प्रशासन और मंदिर प्रबंधन ने सभी व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे दिया है।

गुवाहाटी पुलिस आयुक्त पार्थ सारथी महंत ने बताया कि भीड़ नियंत्रण, सुरक्षा, स्वच्छता और दर्शन व्यवस्था को लेकर हर स्तर पर तैयारियां की गई हैं। इस बार वीआईपी पास की व्यवस्था नहीं होगी, ताकि आम श्रद्धालुओं को भी सहज दर्शन का अवसर मिले।

तीन दिन देवी रजस्वला, बंद रहेंगे कपाट

मंदिर प्रशासन के अनुसार, 22 जून दोपहर 2:56 बजे 27 सेकंड से मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद 26 जून सुबह देवी स्नान और दैनिक अनुष्ठानों के बाद कपाट खोले जाएंगे। अंबुवासी योग वह काल है जब मां कामाख्या तीन दिनों तक रजस्वला मानी जाती हैं। इन दिनों में देवी के गर्भगृह में किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं होती। श्रद्धालु देवी की सृजन शक्ति को नमन करते हुए प्रतीक्षा करते हैं।

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अंबुवासी मेला – रजस्वला देवी के कपड़े का प्रसाद

इस विशेष पर्व का नाम ‘अंबुवासी’ इस कारण पड़ा क्योंकि देवी को समर्पित एक विशेष लाल वस्त्र (अंबुवासी वस्त्र) श्रद्धालुओं को प्रसाद रूप में दिया जाता है। मान्यता है कि यह वस्त्र देवी के मासिक धर्म के दौरान गर्भगृह में बिछाए गए सफेद कपड़े का ही रूप होता है, जो बाद में लाल हो जाता है। कहा जाता है कि इसे धारण करने वाला व्यक्ति जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्त हो जाता है।

नहीं होंगे खेत जोतने से लेकर पूजा-पाठ तक कोई कर्मकांड

इन चार दिनों तक मां के रजस्वला होने के कारण समस्त धार्मिक क्रियाएं स्थगित रहती हैं। खेत नहीं जोते जाते, हल नहीं चलाया जाता, फल-सब्ज़ियाँ नहीं तोड़ी जातीं। पूजा-पाठ बंद रहता है। केवल तप और साधना की अनुमति होती है। यह स्त्री के शरीर और उसकी रचना शक्ति के सम्मान का पर्व है।

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तंत्र साधकों का तीर्थ – नीलांचल पर्वत की गुफाओं में होती है साधना की पूर्णाहुति

यह समय तांत्रिक साधकों के लिए विशेष होता है। भारत के कोने-कोने से तंत्र-मंत्र साधक इस पर्व में भाग लेने आते हैं। नीलांचल की कई गुफाएं तंत्र साधना की पूर्णाहुति का केंद्र बनती हैं। मान्यता है कि अंबुवासी योग के दौरान ही तंत्र की अंतिम क्रिया की सिद्धि प्राप्त की जाती है।

कामाख्या – योनी शक्ति का प्रतीक शक्तिपीठ

देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक, कामाख्या मंदिर को तंत्र साधना का मुख्य केंद्र माना जाता है। मान्यता है कि सती का योनि भाग यहां गिरा था, जिससे यह स्थान स्त्रीत्व, उर्वरता और रचना का पवित्र प्रतीक बना। इसे ‘कामरूप’ और ‘कामक्षेत्र’ भी कहा जाता है।

उमानंद भैरव के दर्शन अनिवार्य माने जाते हैं

कामाख्या देवी के दर्शन तब तक अधूरे माने जाते हैं, जब तक श्रद्धालु ब्रह्मपुत्र के बीच स्थित उमानंद भैरव मंदिर में दर्शन नहीं कर लेते। यह मंदिर अपने अद्वितीय स्थापत्य और गूढ़ मान्यताओं के कारण विशेष महत्व रखता है।

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सुरक्षा और व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम

इस पर्व के दौरान संगीत, साउंड सिस्टम और जुलूसों पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा। श्रद्धालुओं को पांडू पोर्ट वाला मार्ग नहीं, बल्कि ऐतिहासिक मेखला उजुआ रोड से मंदिर तक पहुंचने की सलाह दी गई है।

सुरक्षा व्यवस्था में कोई चूक न हो, इसके लिए 120 स्थायी सुरक्षाकर्मियों के साथ 400 स्काउट-गाइड, 150 स्वयंसेवक और 250 अस्थायी सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। मंदिर परिसर में 500 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। सफाई व्यवस्था के लिए 200 स्थायी व 110 अस्थायी सफाई कर्मचारी नियुक्त किए गए हैं।

अंबुवासी महायोग केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह स्त्रीत्व की शक्ति, सृजन की गरिमा और प्रकृति की पवित्रता का पर्व है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन की हर रचना और उत्पत्ति स्त्री से ही संभव है।

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