मध्यप्रदेश के सागर में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व अब देश के चीता प्रोजेक्ट का अगला बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। अफ्रीका से आने वाले चीतों को बसाने की तैयारी तेज हो गई है और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने इसके लिए बजट भी जारी कर दिया है। नौरादेही रेंज में क्वारंटाइन बाड़ा, सॉफ्ट रिलीज एरिया और करीब 20 किलोमीटर लंबी फेंसिंग बनाई जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह इलाका चीतों के अनुकूल है और यहां मानव-चीता टकराव को कम करने के लिए कई स्तरों पर काम शुरू हो चुका है।
सागर–दमोह सीमा चीतों के लिए सबसे अनुकूल
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के विशेषज्ञों ने अप्रैल–मई में क्षेत्र का सर्वे किया था। इसके आधार पर सागर की मोहली–सिंगपुर रेंज और दमोह की झापन रेंज को लगभग 600 वर्ग किलोमीटर का आदर्श चीता आवास माना गया है। यहां घना जंगल, कम मानव हस्तक्षेप और प्राकृतिक शिकार उपलब्ध है। इसी क्षेत्र में 20 किमी लंबी फेंसिंग तैयार की जा रही है ताकि चीतों और इंसानों के बीच संभावित संघर्ष को रोका जा सके।
क्वारंटाइन और सॉफ्ट रिलीज बाड़ों का निर्माण जारी
टाइगर रिजर्व प्रबंधन को करीब 5 करोड़ रुपये का बजट मिल चुका है। डिप्टी डायरेक्टर डॉ. ए.ए. अंसारी के अनुसार, क्वारंटाइन बाड़ा और चार सॉफ्ट रिलीज बाड़े तैयार किए जाएंगे। चीतों को पहले क्वारंटाइन बाड़े में रखा जाएगा, फिर सॉफ्ट रिलीज के माध्यम से प्राकृतिक परिवेश में छोड़ा जाएगा ताकि वे धीरे-धीरे नए आवास के अनुकूल हो सकें। 20 किमी बाउंड्री फेंसिंग का काम भी इसी चरण में चल रहा है।
जल स्रोत, घास भूमि और शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ाई जा रही
विशेषज्ञ दल ने चीतों के लिए वॉटर सोर्स, ग्रासलैंड और शाकाहारी प्रजातियों की उपलब्धता बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। नौरादेही क्षेत्र में जहां विस्थापन हुआ है, वहां ग्रासलैंड विकसित किए जा रहे हैं। तीनों प्रस्तावित रेंज में जल स्रोतों की संख्या बढ़ाई जा रही है ताकि चीतों को प्राकृतिक रहने का माहौल मिले और शिकार चक्र मजबूत रहे।
साल 2026 में पहुंच सकते हैं अफ्रीकी चीते
रिपोर्ट्स के अनुसार, फेंसिंग और बाड़ों का निर्माण पूरा होने के बाद साल 2026 की गर्मियों में चीतों का पहला बैच यहां लाया जा सकता है। यह कदम मध्यप्रदेश के बाद एक और बड़े संरक्षण केंद्र की शुरुआत करेगा, जो भारत में चीता पुनर्वास का नया अध्याय रचेगा।
रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में अफ्रीकी चीतों को बसाने की यह परियोजना न सिर्फ जंगलों की जैव विविधता बढ़ाएगी, बल्कि भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक नया मील का पत्थर भी साबित हो सकती है। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।

