छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को शर्मसार करने वाला एक मामला सामने आया है। बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के अर्जुनी स्थित स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य खूबचंद सरसींहा पर शराब पीकर स्कूल आने और छात्रों के पालकों से अवैध वसूली के संगीन आरोप साबित हुए हैं। जिला प्रशासन और बीईओ की जांच में जब सच्चाई सामने आई, तो लोक शिक्षण संचालनालय ने तुरंत प्रभाव से उन्हें निलंबित कर दिया। शिक्षा जगत में हलचल मचाने वाली इस कार्रवाई ने स्वामी आत्मानंद स्कूलों की गरिमा को बचाने की एक बड़ी पहल मानी जा रही है।

आरोप: शराब, अवैध वसूली और प्रशासनिक लापरवाही

जिला बलौदाबाजार के अर्जुनी स्थित शासकीय स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पदस्थ प्रभारी प्राचार्य खूबचंद सरसींहा पर स्थानीय अभिभावकों ने कई गंभीर आरोप लगाए थे। शिकायतों में कहा गया था कि:

  • प्राचार्य अक्सर शराब पीकर स्कूल आते थे
  • एडमिशन के नाम पर पालकों से अवैध धन वसूली करते थे
  • प्रशासनिक कार्यों में घोर लापरवाही और अनुशासनहीनता बरती जा रही थी

इन शिकायतों पर कसडोल के बीईओ (विकासखंड शिक्षा अधिकारी) ने जांच शुरू की। जांच में यह सभी आरोप सही पाए गए, जिसके बाद जिला कलेक्टर ने सरसींहा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। लेकिन उनका जवाब असंतोषजनक पाया गया।

कार्रवाई: निलंबन आदेश हुआ जारी

जांच रिपोर्ट और कलेक्टर की अनुशंसा के बाद, लोक शिक्षण संचालनालय रायपुर ने तुरंत प्रभाव से खूबचंद सरसींहा को निलंबित कर दिया है। उन्हें अब बीईओ कार्यालय, कसडोल में अटैच किया गया है।

स्वामी आत्मानंद स्कूल की साख पर असर?

स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय योजना राज्य सरकार की एक प्रमुख पहल है, जिसके तहत बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा रही है। लेकिन अर्जुनी स्कूल में हुआ यह मामला पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है:

  • क्या स्कूलों की मॉनिटरिंग में लापरवाही हो रही है?
  • ऐसे लोगों की नियुक्ति से छात्रों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है
  • शिक्षा के मंदिर में शराब और भ्रष्टाचार का प्रवेश, कहां है जवाबदेही?

इस मामले ने शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और अनुशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर समय रहते ऐसी सख्त कार्रवाई न होती, तो इसका प्रभाव छात्रों की शिक्षा पर पड़ सकता था। लोक शिक्षण संचालक और जिला प्रशासन की तत्परता ने एक बड़ा संदेश दिया है कि कोई भी शिक्षा अधिकारी कानून से ऊपर नहीं है। क्या आप इस फैसले से सहमत हैं? क्या ऐसे लोगों को दोबारा स्कूलों में नियुक्त किया जाना चाहिए? कमेंट करें, अपनी राय साझा करें और इस खबर को ज़रूर शेयर करें ताकि ऐसी लापरवाही दोबारा न हो।

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