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मयूरभंज (ओडिशा) — ओडिशा में स्थित मयूरभंज जिले में पहली मेलानिस्टिक (ब्लैक) टाइगर सफारी को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। यह फैसला वन्यजीव पर्यटन (वाइल्ड लाइफ टूरिज्म) के विकास में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, और इस क्षेत्र को एक आकर्षक हॉटस्पॉट बनाने की दिशा में अग्रसर करेगा।

यह सफारी मयूरभंज के एक ऐसे भू-भाग पर विकसित की जाएगी जो पूरी तरह “नॉन-फॉरेस्ट” या “डिग्रेडेड फॉरेस्ट” भूमि है, ताकि बाघों के प्राकृतिक आवागमन मार्ग (कॉरिडोर) को बाधित न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस सफारी में रात के समय पर्यटन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा, जिससे बाघों को शांति मिल सके और उनके आवास पर मानव हस्तक्षेप न्यूनतम हो।

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योजना के मुताबिक़, सफारी लगभग 200 हेक्टेयर जमीन पर बनेगी। इसमें करीब 100 हेक्टेयर हिस्सा सीधे बाघों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में होगा, जबकि बाकी हिस्से में आवश्यक संरचनात्मक सुविधा विकसित की जाएंगी, जैसे रिस्क्यू सेंटर, पशु चिकित्सा इकाई, स्टाफ आवास और पार्किंग।प्रारंभ में पाँच मेलानिस्टिक बाघों को इसमें शामिल करने की योजना है — तीन बाघ नंदनकानन चिड़ियाघर से और दो अन्य रांची चिड़ियाघर से लाए जाएंगे। यह कदम सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नहीं है, बल्कि संरक्षण के उद्देश्य से बाघों की सुरक्षा तथा पुनर्स्थापन प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में भी है।

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सफारी के साथ ही वहाँ एक रेस्क्यू और पुनर्स्थापन (रिहैबिलिटेशन) केंद्र भी स्थापित किया जाएगा। यह केंद्र घायल, संघर्ष-ग्रस्त या प्रवासी बाघों के लिए देखभाल की व्यवस्था करेगा, जिससे उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ाने में मदद मिलेगी।वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल ओडिशा को वाइल्ड लाइफ टूरिज्म में एक महत्वपूर्ण केंद्र बना सकती है। इससे न सिर्फ़ स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि संरक्षण-प्रयासों को भी बल मिलेगा। पर्यटक, शोधकर्ता और प्रकृति प्रेमी इस ब्लैक टाइगर सफारी को देखने के लिए आकर्षित होंगे।

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हालाँकि, यह मंजूरी चुनौतियों के बिना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के नियम सख्त हैं ताकि पर्यटन और विकास वन्यजीवों के हितों के खिलाफ न जाएं। स्थानीय समुदायों की भागीदारी, पर्यावरण संतुलन और वन्यजीवों की भलाई को सुनिश्चित करना इस परियोजना की सफलता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाएगा।इस तरह की सफारी न सिर्फ़ ओडिशा को दुनिया के नक्शे पर एक अनोखा पर्यटन स्थल बनाएगी, बल्कि मेलानिस्टिक बाघों की पहचान और संरक्षण में भी एक नया दौर शुरू कर सकती है।

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