गरियाबंद जिले के धनौरा गांव में एक हृदय विदारक घटना ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। झोलाछाप डॉक्टर और झाड़-फूंक पर भरोसा करने की भारी कीमत एक परिवार को तीन-तीन बच्चों की मौत से चुकानी पड़ी। 8, 7 और 4 वर्ष के तीन मासूमों ने कुछ ही दिनों में दम तोड़ दिया, जबकि ग्रामीण उन्हें अस्पताल ले जाने की सलाह देते रहे। स्वास्थ्य विभाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच दल गठित कर दिया है। यह घटना न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है बल्कि वनांचल क्षेत्र में जागरूकता की कमी पर भी बड़ा सवाल उठाती है।
झोलाछाप इलाज और झाड़-फूंक पर भरोसे ने छीनी तीन मासूमों की जान
धनौरा निवासी डमरूधर नागेश अपने तीन बच्चों के साथ ससुराल क्षेत्र में मक्का तुड़ाई करने गया था। वहीं बच्चों को अचानक तेज बुखार आया। अस्पताल ले जाने के बजाय उन्होंने झोलाछाप से दवा ली। स्थिति बिगड़ने पर भी परिवार ने इलाज के आधुनिक साधनों को छोड़कर झाड़-फूंक को तरजीह दी। नतीजा बेहद दर्दनाक रहा—पहले 8 वर्षीय अनिता की मौत हुई, फिर 7 वर्षीय बालक और उसी दिन 4 वर्षीय गोरेश्वर ने भी दम तोड़ दिया।
गांव में दहशत, ग्रामीण बोले “पहले भी झाड़-फूंक से गई हैं जानें”
ग्रामीणों में बीमारी को लेकर डर और दहशत का माहौल है। बताया जाता है कि इस गांव में पहले भी सर्पदंश के मामलों में झाड़-फूंक के कारण मौतें हो चुकी हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते लोग आज भी झोलाछाप डॉक्टरों और पारंपरिक तरीकों पर निर्भर हैं, जो बड़ा जोखिम बन चुका है।
स्वास्थ्य विभाग सक्रिय, जांच टीम गांव पहुंची, रायपुर से विशेष दल भी आएगा
जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. यूएस नवरत्न के निर्देश पर तीन सदस्यीय टीम गांव में जांच कर रही है। वहीं रायपुर से एक विशेष टीम भी जल्द गांव पहुंचेगी। स्वास्थ्य विभाग जल्द ही इस आदिवासी क्षेत्र में जागरूकता अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है ताकि लोग आधुनिक चिकित्सा पर भरोसा कर सकें और भविष्य में ऐसी त्रासदियां रोकी जा सकें।
धनौरा गांव की यह घटना बताती है कि जागरूकता की कमी और कमजोर स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी कई परिवारों का भविष्य छीन रही हैं। जरूरत है कि ऐसे क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाए और लोगों को झोलाछाप उपचार से दूर रखा जाए। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।


