रायपुर। छत्तीसगढ़ में 76 हजार से अधिक दिव्यांग छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, लेकिन उन्हें शिक्षित करने के लिए राज्य में सिर्फ 240 विशेष शिक्षक ही कार्यरत हैं। यह आंकड़ा राज्य की समावेशी शिक्षा व्यवस्था की बड़ी खामी को उजागर करता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने दिव्यांग बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 848 नवीन विशेष शिक्षक पदों की स्वीकृति दी है। हालांकि, इस फैसले से एक उम्मीद जरूर जगी है, लेकिन विशेष शिक्षकों के नियमितीकरण और संविलियन की मांग अब भी अधूरी है।
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संविदा शिक्षक ही बना रहे आधार
राज्य में कार्यरत सभी विशेष शिक्षक संविदा आधार पर नियुक्त हैं। कोई भी नियमित पदस्थ नहीं है। लंबे समय से कार्य कर रहे इन शिक्षकों को ना तो स्थायी सेवा का लाभ मिल पा रहा है और ना ही आर्थिक सुरक्षा।
इसी मुद्दे को लेकर छत्तीसगढ़ विशेष शिक्षक संघ ने हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाकात कर नियमितीकरण और संविलियन की मांग उठाई। संघ का कहना है कि जब सरकार ने नए पद स्वीकृत कर दिए हैं, तो अब यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वर्तमान में कार्यरत अनुभवी शिक्षकों को उनका हक मिले।
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सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जागी सरकार
गौरतलब है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने दिव्यांगजनों की शिक्षा को लेकर राज्य सरकारों को निर्देशित किया था कि विशेष बच्चों को समान व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए पर्याप्त विशेष शिक्षक नियुक्त किए जाएं। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसी के पालन में 848 पद स्वीकृत किए हैं।
संघ की प्रमुख मांगें
- संविदा विशेष शिक्षकों का संविलियन कर उन्हें नियमित किया जाए।
- नई नियुक्तियों से पहले वर्तमान अनुभवी शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाए।
- विशेष शिक्षा प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं को राज्य में रोजगार के अवसर दिए जाएं।
- विशेष शिक्षा के लिए अधोसंरचना और संसाधनों में सुधार किया जाए।
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दिव्यांग बच्चों के भविष्य से न हो समझौता
विशेष शिक्षक संघ का तर्क है कि अगर योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होंगे, तो दिव्यांग बच्चों की शिक्षा, विकास और आत्मनिर्भरता प्रभावित होगी। यह संविधान प्रदत्त समान अवसर के अधिकार का भी हनन होगा।
मुख्यमंत्री से उम्मीद जताई
संघ के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से सकारात्मक पहल की उम्मीद जताई है। उनका कहना है कि वर्तमान सरकार शिक्षा को लेकर गंभीर है और जल्द ही इस दिशा में ठोस निर्णय लिया जाएगा।
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छत्तीसगढ़ में दिव्यांग बच्चों की संख्या और विशेष शिक्षकों की उपलब्धता के बीच गहरी खाई है। सुप्रीम कोर्ट की पहल और सरकार की स्वीकृति स्वागत योग्य है, लेकिन जब तक संविदा में कार्यरत शिक्षकों को नियमित नहीं किया जाएगा, तब तक शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षक हित दोनों ही अधूरे रहेंगे।
अब देखना यह है कि सरकार संविलियन की दिशा में कितनी जल्दी कदम बढ़ाती है, ताकि न केवल शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो, बल्कि हजारों दिव्यांग बच्चों को योग्य मार्गदर्शक मिल सकें।