रायपुर
हिंदू धर्म में शिल्प, निर्माण और तकनीक के देवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा का विशेष महत्व है। हर साल यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस बार विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।
इस दिन देशभर के कारखानों, वर्कशॉप्स, दफ्तरों और निर्माण स्थलों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और तकनीकी कौशल का जनक माना गया है। उनके आशीर्वाद से कार्यों में कुशलता, समृद्धि और उन्नति मानी जाती है।
ज्योतिष के अनुसार, इस दिन सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे कन्या संक्रांति भी कहा जाता है। यह दिन औद्योगिक, तकनीकी और कारीगर समुदाय के लिए अत्यंत पावन माना जाता है।
पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और सबसे पहले अपने कार्यस्थल, मशीनों, औजारों और उपकरणों की सफाई करें।
इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
पूजन सामग्री में चंदन, रोली, अक्षत, फूल, धूप, दीपक, फल, मिठाई और पंचामृत शामिल करें।
भगवान को विधिपूर्वक तिलक कर, फूल और अक्षत अर्पित करें।
इसके बाद अपने औजारों और मशीनों पर भी तिलक लगाएं और उन्हें फूल अर्पित करें।
भगवान की आरती करें और “ॐ श्री विश्वकर्मणे नमः” मंत्र का जाप करें।
पूजा के उपरांत प्रसाद सबमें बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।
पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुकार और विश्व के पहले अभियंता के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने ही स्वर्गलोक, इंद्रपुरी, द्वारका नगरी, पुष्पक विमान, शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और इंद्र का वज्र अस्त्र जैसे दिव्य निर्माण किए।
विश्वकर्मा पूजा का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि व्यावसायिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन औजारों और मशीनों की पूजा कर कार्य में कुशलता, निरंतरता और सफलता की कामना की जाती है।
लोग मानते हैं कि भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से उनके उद्योग-धंधे, रोजगार और व्यवसाय में वृद्धि होती है और कार्यस्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।