झारखंड में इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट समेत विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई अब अधिक सस्ती और पारदर्शी हो सकती है। राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने मंगलवार को निजी व्यावसायिक संस्थानों की फीस नियंत्रित करने से जुड़े ‘झारखंड व्यावसायिक शिक्षण संस्थान (शुल्क विनियमन) विधेयक, 2025’ को मंजूरी दे दी है। गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा।
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यह बिल 25 अगस्त को विधानसभा के पूरक मानसून सत्र में ध्वनिमत से पारित किया गया था। इसके लागू होने के बाद राज्य के निजी कॉलेज अब अपनी मनमर्जी से फीस नहीं बढ़ा सकेंगे।
फीस तय करेगी ‘शुल्क विनियमन समिति’
नई व्यवस्था के तहत हर कोर्स की फीस तय करने का अधिकार एक शुल्क विनियमन समिति को मिलेगा। यह समिति जांच करेगी कि किसी कॉलेज को किस कोर्स के लिए कितनी फीस लेने की अनुमति दी जा सकती है।
सदन में बिल पेश करते हुए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुदिव्य कुमार ने कहा था कि यह कानून छात्रों और अभिभावकों के हित में है। इससे फीस निर्धारण में पारदर्शिता आएगी और संस्थानों द्वारा की जाने वाली मनमानी पर रोक लगेगी।
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समिति में होंगे विशेषज्ञ सदस्य
समिति की संरचना भी काफी मजबूत रखी गई है—
- अध्यक्ष की नियुक्ति झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अनुशंसा पर होगी।
- किसी विश्वविद्यालय के कुलपति को सदस्य बनाया जाएगा।
- एक चार्टर्ड अकाउंटेंट शामिल होगा।
- विभिन्न व्यावसायिक कोर्स के विशेषज्ञ भी सदस्य होंगे।
फीस तय करने से पहले समिति संबंधित संस्थानों से उनके खर्च, सुविधाओं और संरचना का विस्तृत विवरण मांगेगी और उसके आधार पर अंतिम निर्णय लेगी।
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पहले भी सुप्रीम कोर्ट दे चुका है निर्देश
सुप्रीम कोर्ट पहले ही राज्यों को निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों की फीस नियंत्रण के लिए कानून बनाने का निर्देश दे चुका है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह व्यवस्था पहले से लागू है, और अब झारखंड भी उसी राह पर आगे बढ़ गया है।राज्य सरकार का दावा है कि इस कानून से “शिक्षा के नाम पर लूट” पर रोक लगेगी और छात्रों को वास्तविक राहत मिलेगी।
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