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भारत और अमेरिका के संयुक्त अंतरिक्ष मिशन निसार ने अंतरिक्ष में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। जीएसएलवी–एफ16 के जरिए 30 जुलाई को लॉन्च किए गए इस उपग्रह ने मात्र 100 दिनों में अपना 12 मीटर व्यास वाला एंटीना रिफ्लेक्टर सफलतापूर्वक तैनात कर विज्ञान चरण में प्रवेश कर लिया है। इसरो द्वारा जारी जानकारी के अनुसार, नासा और इसरो की साझेदारी में विकसित यह मिशन पृथ्वी अवलोकन की तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला है।
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मिशन की उपलब्धियों में सबसे उल्लेखनीय है 19 अगस्त 2025 को प्राप्त हुई निसार की पहली वैज्ञानिक छवि, जिसे एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार से कैप्चर किया गया। यह तस्वीर गोदावरी डेल्टा क्षेत्र की भौगोलिक विविधता को अत्यंत स्पष्ट रूप में दर्शाती है, जिसमें मैंग्रोव वन, कृषि भूमि, सुपारी बागान और मत्स्य पालन क्षेत्र जैसी कई भू-आकृतियाँ बेहद साफ दिखाई देती हैं। इन छवियों से यह सिद्ध हो गया है कि निसार जटिल डेल्टा क्षेत्रों और कृषि परिदृश्यों को भी उच्च सटीकता से मैप करने की क्षमता रखता है। उपग्रह द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा के आधार पर वैज्ञानिकों को यह भरोसा मिला है कि निसार पृथ्वी विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नई जानकारियाँ प्रदान करेगा।
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100 दिन पूरे होने पर इसरो प्रमुख ने निसार की पहली सार्वजनिक SAR छवियों को जारी करते हुए मिशन के विज्ञान चरण की औपचारिक शुरुआत की घोषणा की। यह उपग्रह की परिचालन क्षमता का वह चरण है जिसमें विश्वभर के वैज्ञानिक समुदाय के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा उपलब्ध होने लगेगा।
रिफ्लेक्टर तैनाती की प्रक्रिया अत्यंत जटिल थी। नासा द्वारा विकसित नौ मीटर लंबा बूम प्रारंभ में तह किए हुए रूप में उपग्रह से सटा हुआ था। 9 अगस्त से इसकी तैनाती शुरू हुई और पाँच दिनों में धीरे-धीरे इसके हॉरिस्ट, शोल्डर, एल्बो और रूट सेक्शन खोले गए। 15 अगस्त को रिफ्लेक्टर पूरी तरह फैल गया और इसके बाद सभी परीक्षणों में प्रणालियों का प्रदर्शन संतोषजनक पाया गया। इस पूरी प्रक्रिया का संचालन इसरो के ISTRAC केंद्र में किया गया, जहाँ नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के विशेषज्ञ लगातार सहयोग में शामिल रहे।
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इमेज की गुणवत्ता और प्वाइंटिंग सटीकता की जांच के लिए अहमदाबाद सहित कई स्थानों पर कॉर्नर रिफ्लेक्टर स्थापित किए गए। साथ ही अमेज़न वर्षावनों की इमेजिंग का उपयोग भी कैलिब्रेशन के लिए किया गया। इन विश्लेषणों के आधार पर पेलोड के अधिग्रहण मानकों को फाइन-ट्यून किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अब और अधिक उच्च-गुणवत्ता वाली SAR छवियाँ प्राप्त हो रही हैं।
प्रारंभिक वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि निसार का एस-बैंड SAR डेटा कृषि, वन प्रबंधन, भू-विज्ञान, जल विज्ञान, हिमालयी बर्फ–हिम अध्ययन और समुद्री विज्ञान जैसे क्षेत्रों में बड़ी उपयोगिता रखता है। निसार मिशन न केवल पृथ्वी अवलोकन की क्षमता को नई ऊँचाई देगा, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में भारत और अमेरिका के सहयोग को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा।
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