रायपुर, 1 नवंबर 2025 — आज से ठीक पच्चीस वर्ष पहले, 1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ ने मध्यप्रदेश से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य का रूप लिया था, तब यह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि जनभावनाओं और जनसंघर्षों से जन्मी ऐतिहासिक उपलब्धि थी। आज, जब छत्तीसगढ़ अपने स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर रहा है, तब यह कहना अनुचित न होगा कि यह राज्य अब विकास, संवेदना और स्वाभिमान की मिसाल बन चुका है।
जनसंघर्षों से बना जनराज्य : छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक यात्रा
छत्तीसगढ़ राज्य की कल्पना कोई आधुनिक विचार नहीं थी, बल्कि यह शताब्दी पुराने स्वप्न का साकार रूप है।
सन् 1861 में जब मध्य प्रांत का गठन हुआ और उसकी राजधानी नागपुर बनाई गई, तब छत्तीसगढ़ केवल एक जिला था। अगले वर्ष 1862 में मध्य प्रांत को पाँच संभागों में बाँटा गया, जिनमें से एक छत्तीसगढ़ संभाग था, जिसका मुख्यालय रायपुर बना। इसी के साथ तत्कालीन छत्तीसगढ़ में रायपुर, बिलासपुर और संबलपुर तीन जिले बने।
सन् 1918 में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने अपनी पांडुलिपि में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की स्पष्ट परिकल्पना प्रस्तुत की। उन्हें ही छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा और संकल्पनाकार कहा जाता है।
1924 में रायपुर जिला परिषद ने पृथक छत्तीसगढ़ के लिए औपचारिक संकल्प पारित किया।
1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में फिर एक बार इस मांग को पंडित सुंदरलाल शर्मा ने जोरदार ढंग से उठाया।
स्वतंत्रता से पहले ही यह विचार जनचेतना में रच-बस गया था।
1946 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच की स्थापना की — यही छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का पहला संगठित स्वर था।
संघर्षों की श्रृंखला : संगठनों से संसद तक
1953 में फजल अली आयोग के समक्ष भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन की मांग रखी गई।
1955 में रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रदेश विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की आवाज उठाई — यह पहला विधायी प्रयास था।
1956 में डॉ. खूबचंद बघेल ने राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन किया, जो आंदोलन का सशक्त माध्यम बनी।
आगे चलकर 1967 में डॉ. बघेल और बैरिस्टर छेदीलाल ने छत्तीसगढ़ भ्रातृत्व संघ बनाया।
1976 में मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसने आंदोलन को नई दिशा दी।
1983 में छत्तीसगढ़ संग्राम मंच बना और बाद में पवन दीवान ने पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया।
लगातार जनदबाव और वर्षों की मांगों ने अंततः सरकार को झुकने पर मजबूर किया।
1 मई 1998 को मध्यप्रदेश विधानसभा ने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए शासकीय संकल्प पारित किया।
25 जुलाई 2000 को लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण विधेयक प्रस्तुत किया।
31 जुलाई 2000 को लोकसभा और 9 अगस्त 2000 को राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ।
25 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने इसे अपनी स्वीकृति दी।
और आखिरकार 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ भारत का 26वां राज्य बन गया।
विकास की नई उड़ान : 25 वर्षों का सफर
राज्य गठन के समय छत्तीसगढ़ के सामने अनेक चुनौतियाँ थीं — गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल, बिजली और उद्योग की कमी। लेकिन 25 वर्षों में राज्य ने जो उपलब्धियाँ हासिल कीं, वे किसी स्वर्णिम अध्याय से कम नहीं हैं।
| विवरण | सन् 2000 | सन् 2025 |
|---|---|---|
| राज्य का वार्षिक बजट | ₹5,471 करोड़ | ₹1,65,000 करोड़ |
| प्रतिव्यक्ति आय | ₹25,496 | ₹5,67,880 |
| राजस्व संग्रह | ₹10,744 करोड़ | ₹1,62,870 करोड़ |
| पक्की सड़कें | 33,564 किमी | 52,377 किमी |
| स्कूलों की संख्या | 38,050 | 60,726 |
| कॉलेजों की संख्या | 100 | 1,100 |
| एमबीबीएस सीटें | 55 | 994 |
| ड्रॉपआउट दर | 11% | 1% |
| धान खरीदी | 5.67 लाख मी.टन | 150 लाख मी.टन |
| सिंचाई क्षमता | 13.28 लाख हेक्टेयर | 21.76 लाख हेक्टेयर |
प्रशासनिक विकेंद्रीकरण : जनता के करीब सरकार
राज्य गठन के समय जहां 16 जिले थे, वहीं अब छत्तीसगढ़ में 33 जिले हैं।
इस विस्तार ने प्रशासन को आम जनता के करीब लाया है।
11 मई 2007 को दंतेवाड़ा से बीजापुर और नारायणपुर जिले बने।
2012 में सुकमा, कोंडागांव, बालोद, बेमेतरा, बलौदा बाजार, गरियाबंद, मुंगेली, सूरजपुर और बलरामपुर नए जिले बने।
2020 में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, 2021 में चार नए जिले और 2022 में खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला अस्तित्व में आया।
कभी सबसे बड़ा जिला रहा रायपुर, अब विभाजन के बाद सबसे छोटा प्रशासनिक इकाई बन चुका है — यह विकास और सुशासन की दिशा में एक बड़ा कदम है।
छत्तीसगढ़ की पहचान : श्रम, श्रद्धा और समर्पण
छत्तीसगढ़ अब केवल खनिज संपदा का प्रदेश नहीं, बल्कि संस्कृति, आत्मगौरव और नवाचार का प्रतीक बन गया है।यहाँ की मिट्टी में श्रम का संस्कार है और यहाँ के लोगों में विकास का संकल्प।राज्य के 25 वर्षों का यह सफर न केवल राजनीतिक उपलब्धि है बल्कि यह उस जनता के विश्वास की कहानी है जिसने “अपना राज्य – अपनी पहचान” के मंत्र को साकार किया।
छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2025 केवल उत्सव नहीं, बल्कि उस संघर्ष, समर्पण और स्वाभिमान की याद है जिसने इस धरती को एक नया नाम और नई दिशा दी।

