पुरी, ओडिशा
आज देव स्नान पूर्णिमा पर जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धा और परंपरा की अद्भुत छटा देखने को मिली। तड़के पाँच बजकर पैंतालीस मिनट पर श्री सुदर्शन, बलभद्र, सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ को क्रमवार गर्भगृह से बाहर लाया गया। गर्भगृह से स्नान मंडप तक ले जाने की इस विधि को पाहंडी परंपरा कहा जाता है। सेवकों के कंधों पर रखे विशाल लकड़ी के काठ, झांझ मृदंग और जयघोष के साथ यह यात्रा एक नृत्यात्मक रूप ले लेती है, जिसे पाहंडी विजय भी कहा जाता है।
मंदिर परिसर के उत्तर द्वार के पास स्थित सुनाकुआ से दोपहर बारह बजकर बीस मिनट पर जल निकाला गया। सुनाकुआ, अर्थात स्वर्ण कुआँ, से निकले इस पवित्र जल को चंदन, औषधीय जड़ी-बूटियों और सुगंधित पुष्पों के साथ एक सौ आठ कलशों में भरा गया। इन्हीं कलशों के जल से तीनों देव विग्रहों का महाभिषेक किया गया। मुख्यमंत्री मोहन माझी और गजपति महाराज दिव्यसिंह देव इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित रहे।
जलाभिषेक के बाद विग्रहों को गजवेश धारण कराया गया। गजवेश शब्द गज और वेश से मिलकर बना है, जिसका अर्थ देवताओं को हाथी के स्वरूप में सजाना है। किंवदंती है कि स्नान के तुरंत बाद देव विग्रह मानवीय रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं, इसलिए उन्हें हाथी के स्वरूप में अलंकृत कर शीतल जड़ी-बूटियों से उपचारित किया जाता है।
स्नान पूर्णिमा के बाद देवताओं को अनसारा गृह में विश्राम के लिए ले जाया गया है। चौदह दिन तक वे आम दर्शन से दूर रहेंगे। इस अवधि में मंदिर के वैद्य आयुर्वेदिक काढ़े और लेप के माध्यम से उनका उपचार करते हैं। भक्तों के लिए यह विरह का समय होता है। छब्बीस जून को नवयौवन दर्शन के दिन भगवान स्वस्थ, युवा और तेजस्वी रूप में पुनः प्रकट होंगे। अगले ही दिन, सत्ताइस जून को महाप्रभु की विश्वविख्यात रथयात्रा निकलेगी, जिसका इंतजार देश-दुनिया के श्रद्धालु करते हैं।
रथयात्रा और नवयौवन दर्शन के लिए सुरक्षा प्रबंध भी चाक-चौबंद किए गए हैं। मंदिर और ग्रांड रोड पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और सत्तर प्लाटून पुलिस बल तैनात रहेगा, ताकि लाखों भक्त शांतिपूर्ण वातावरण में दर्शन और उत्सव का आनंद ले सकें।
पाहंडी की लय, सुनाकुआ के जल का वैदिक महत्व, गजवेश की अनुपम छवि और अनसारा के विरह के बीच पुरी धाम फिर एक बार देवों के休 काल और रथयात्रा के उत्सव का सेतु बन गया है। श्रद्धालु अब छब्बीस जून के नवयौवन दर्शन और सत्ताइस जून की रथयात्रा की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा फिर से भक्तों के बीच आएंगे और भक्तिभाव का महासागर उमड़ेगा।