देशभर में आज महानवमी का पर्व पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। नवरात्रि के नौवें दिन देवी दुर्गा के नवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। सुबह से ही मंदिरों और घरों में भक्तों ने पूजा-पाठ कर माता से सुख, शांति और सिद्धियों की कामना की।
देश के कई हिस्सों में भव्य दुर्गा पंडालों में विशेष पूजा आयोजित की गई। दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी, लखनऊ, पटना, जयपुर, भोपाल सहित तमाम शहरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई। माता के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया।
कन्या पूजन की रही विशेष धूम
महानवमी के दिन कन्या पूजन की परंपरा भी निभाई गई। दो से दस वर्ष की आयु की कन्याओं को देवी का रूप मानकर आमंत्रित किया गया। उन्हें भोजन कराया गया, उपहार दिए गए और आशीर्वाद लिया गया। यह दृश्य हर घर और मंदिर में देखने को मिला।
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मंदिरों में विशेष आयोजन
देश के प्रमुख शक्तिपीठों जैसे वैष्णो देवी, कालीघाट, कामाख्या देवी, मां चिंतपूर्णी, ज्वाला देवी में सुबह से ही दर्शन के लिए लंबी कतारें लगी रहीं। श्रद्धालु माता का आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दूर से पहुंचे। पंडितों द्वारा संपूर्ण नवरात्रि की समाप्ति और महानवमी की पूजा विधिवत कराई गई।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा से मिलती हैं आठ सिद्धियां
महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना से आणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी आठ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने भी मां सिद्धिदात्री की कृपा से ये सिद्धियां पाईं और अर्धनारीश्वर रूप में प्रतिष्ठित हुए।
भक्तों ने किया मंत्रोच्चार और साधना
श्रद्धालुओं ने पूरे दिन मां के मंत्रों का जाप, ध्यान और पाठ कर नवदुर्गा की आराधना की। कई स्थानों पर भजन संध्या, दुर्गा सप्तशती पाठ और हवन का आयोजन भी हुआ। भक्तों का विश्वास है कि महानवमी की पूजा सभी पापों का नाश करती है और जीवन में सुख-समृद्धि लाती है।
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मां सिद्धिदात्री का पौराणिक महत्व
देवी पुराण के अनुसार मां सिद्धिदात्री आठ सिद्धियों की दात्री हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। यही कारण है कि इन्हें सिद्धियों की देवी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने भी इनकी कृपा से इन आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था और अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रतिष्ठित हुए।
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शांतिदायक है। वे सिंह पर सवार या कमलासन पर विराजमान होती हैं। उनके चार हाथों में चक्र, गदा, शंख और कमल सुशोभित होते हैं। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और उनके तेज से पूरा ब्रह्मांड आलोकित होता है। मां सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का भी रूप माना जाता है, जो ज्ञान, संगीत और वाणी की देवी हैं।
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पूजा विधि
- सबसे पहले कलश पूजन करें और देवी-देवताओं का आह्वान करें
- मां को रोली, मोली, कुमकुम, पुष्प और चुनरी अर्पित करें
- हलुआ, पूरी, चने, खीर और नारियल का भोग लगाएं
- माता के मंत्रों का जप करें
- इस दिन कन्या पूजन विशेष फलदायी माना जाता है
- दो वर्ष से दस वर्ष की आयु की नौ कन्याओं को आमंत्रित करें
- उन्हें भोजन कराएं, उपहार दें और आशीर्वाद लें
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साधना और मंत्र का महत्व
मां सिद्धिदात्री की पूजा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वर्णित यह मंत्र मां के ध्यान और जप के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है –
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
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मां सिद्धिदात्री की कृपा से प्राप्त होते हैं चमत्कारिक फल
जो भक्त श्रद्धा और विधिपूर्वक मां सिद्धिदात्री का पूजन करते हैं, उन्हें जीवन में यश, बल, ज्ञान, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। साथ ही यह पूजा साधक को आत्मबोध, मानसिक शांति और ब्रह्मज्ञान की ओर अग्रसर करती है।

