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भारत के इतिहास में 25 जून 1975 की रात लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इसी रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसका औपचारिक अनुमोदन केंद्रीय कैबिनेट ने 26 जून को किया। यह आपातकाल 21 महीनों तक चला और इसे आज भी भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों पर सबसे बड़े हमले के रूप में देखा जाता है। आइए एक टाइमलाइन के जरिए समझते हैं कि कैसे यह आपातकाल लागू हुआ।
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1966: इंदिरा गांधी बनीं प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जनवरी में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
1969: कांग्रेस में विभाजन
कांग्रेस पार्टी ने अनुशासनहीनता के आरोप में इंदिरा गांधी को निष्कासित कर दिया। इसके बाद पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई— कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर)।
1971: चुनाव में भारी जीत और आरोप
इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। विपक्षी नेता राजनारायण ने उन पर चुनाव में गड़बड़ी के आरोप लगाकर याचिका दाखिल की।
1973-75: राजनीतिक अस्थिरता और जनविरोध
महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन ने गति पकड़ी।
12 जून 1975: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया और छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी।
24 जून 1975: सुप्रीम कोर्ट का आंशिक राहत आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दी, लेकिन संसद में मतदान का अधिकार छीन लिया।
25-26 जून 1975: आपातकाल की घोषणा
25 जून की रात राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की। 26 जून को इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी पर इसका औपचारिक ऐलान किया।
1976: जबरन नसबंदी और विरोध
संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया। इसमें लाखों पुरुषों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी की गई। तुर्कमान गेट पर विरोध कर रहे लोगों पर गोलियां चलाई गईं।
1977: आपातकाल की समाप्ति और चुनाव में हार
18 जनवरी को चुनाव की घोषणा हुई। मार्च में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस की करारी हार हुई। जनता पार्टी सत्ता में आई और 21 मार्च को आपातकाल समाप्त हो गया।
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आपातकाल के दुष्प्रभाव
- मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया।
- प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई।
- विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी हुई।
- जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय अभियान चलाए गए।
- प्रशासन और पुलिस के दमनकारी रवैये के किस्से सामने आए।
आपातकाल के 21 महीनों में
- सरकार ने कुल 48 अध्यादेश पारित किए।
- मीसा (Maintenance of Internal Security Act) में कई संशोधन किए गए।
- संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़े गए।
- न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित किया गया।
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आरके धवन के खुलासे
इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन ने बाद में खुलासा किया कि आपातकाल लगाने की सलाह सबसे पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री एसएस राय ने दी थी। उन्होंने यह भी बताया कि इंदिरा गांधी इस्तीफे के लिए तैयार थीं लेकिन उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों ने उन्हें ऐसा न करने को कहा।
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जनता सरकार और नया कोला ब्रांड
जनता पार्टी की सरकार आने के बाद देश में कोका-कोला को प्रतिबंधित कर दिया गया और ‘डबल सेवन’ नामक स्वदेशी कोला ब्रांड लॉन्च किया गया। यह आत्मनिर्भर भारत की ओर एक प्रतीकात्मक कदम था।
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र की एक ऐसी त्रासदी थी, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। इसके 49 वर्ष पूरे होने पर भाजपा ने कांग्रेस पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाते हुए इसे काला अध्याय बताया है।
आज जब लोकतंत्र की बात होती है, तब आपातकाल का जिक्र एक चेतावनी के रूप में सामने आता है कि सत्ता के लोभ में कितनी गहराई तक देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
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