ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को 64 करोड़ रुपए की रिश्वत लेने के मामले में दिल्ली की एक ट्रिब्यूनल ने दोषी करार दिया है। उन पर आरोप था कि उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपए का लोन मंजूर करवाने के बदले निजी फायदा उठाया। ट्रिब्यूनल के अनुसार, उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया और बैंक के डिसक्लोजर नियमों का उल्लंघन किया। यह घोटाला केवल चंदा तक सीमित नहीं था—इसमें उनके पति दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत (वीडियोकॉन के पूर्व चेयरमैन) की भी अहम भूमिका थी। आइए समझते हैं ये रिश्वत घोटाला क्या था और इसमें कौन-कौन फंसा है।

क्या है ICICI-वीडियोकॉन लोन घोटाला?

मामला 2012 से जुड़ा है जब ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3250 करोड़ रुपए का लोन मंजूर किया। इस लोन में 300 करोड़ रुपए का हिस्सा एक ऐसी यूनिट को मिला, जिसके बाद बहुत जल्द वीडियोकॉन की एक अन्य कंपनी SEPL से 64 करोड़ रुपए की राशि चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) को ट्रांसफर की गई।

ट्रिब्यूनल की जांच में यह साबित हुआ कि यह लेनदेन रिश्वत के तौर पर किया गया था। दस्तावेजों में दिखाया गया कि NRPL के मालिक वेणुगोपाल धूत थे, लेकिन उसका असली नियंत्रण दीपक कोचर के पास ही था। दीपक NRPL के मैनेजिंग डायरेक्टर भी थे।

जांच, गिरफ्तारी और संपत्ति जब्ती की पूरी कहानी

  • 2016: मामले की शुरुआत हुई जब निवेशक अरविंद गुप्ता ने RBI और PMO को शिकायत भेजी।
  • 2019: CBI ने चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत के खिलाफ FIR दर्ज की।
  • 2020: ED ने दीपक कोचर को गिरफ्तार किया, बाद में उन्हें ज़मानत मिली।
  • 2022: चंदा और दीपक दोनों गिरफ्तार हुए, पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी को अवैध बताया और जमानत दी।
  • 2024-25: ट्रिब्यूनल ने ED की कार्रवाई को सही ठहराया और 78 करोड़ रुपए की संपत्ति की जब्ती को वैध माना।

इन एजेंसियों ने की जांच:

  • CBI (Central Bureau of Investigation)
  • ED (Enforcement Directorate)
  • SFIO (Serious Fraud Investigation Office)
  • Income Tax Department

चंदा कोचर की भूमिका पर सवाल

चंदा कोचर उस लोन अप्रूवल कमेटी का हिस्सा थीं, जिसने वीडियोकॉन को यह लोन पास किया। ट्रिब्यूनल का कहना है कि उन्होंने बैंक की आचार संहिता का उल्लंघन किया और अपना निजी हित छुपाया। उन्होंने ना तो इस संबंध को बैंक के सामने स्पष्ट किया, ना ही उससे खुद को अलग किया। जब मामला खुला तो अक्टूबर 2018 में चंदा कोचर ने ICICI बैंक से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन बैंक ने 2019 में बयान दिया कि उन्हें चंदा पर भरोसा है। अब ट्रिब्यूनल के फैसले ने मामले को नया मोड़ दे दिया है।

चंदा कोचर जैसे बैंकिंग सेक्टर के बड़े नाम पर रिश्वत और पद के दुरुपयोग का यह मामला पूरे सिस्टम में जवाबदेही की जरूरत को उजागर करता है। ट्रिब्यूनल का यह फैसला अब आगे की कानूनी कार्रवाइयों को भी दिशा देगा। यह घटना साबित करती है कि बड़े ओहदे पर बैठा व्यक्ति भी नियमों से ऊपर नहीं है। क्या इस तरह के मामलों में सख्त सजा होनी चाहिए? नीचे कमेंट करें और इस न्यूज़ को शेयर करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हो सकें।

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