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रायपुर।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नया साल मुहर्रम से शुरू होता है और वर्तमान में अंतिम महीना जिलहिज्ज चल रहा है। जैसे-जैसे इस्लामिक नववर्ष नजदीक आ रहा है, मुहर्रम की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति भी बनी हुई है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, मुहर्रम न केवल साल का पहला महीना है, बल्कि चार पवित्र महीनों में से एक भी है। इस दौरान रोजा, नमाज और इबादतों का विशेष महत्व माना जाता है।
चांद के दिखने पर निर्भर है इस्लामी कैलेंडर
इस्लामी या हिजरी कैलेंडर 12 चंद्र महीनों पर आधारित होता है। हर नया महीना चांद के दीदार के बाद शुरू होता है। इसी कारण मुहर्रम की शुरुआत की सटीक तारीख चांद के दिखने पर निर्भर करती है। इस साल 27 जून को चांद दिखने की संभावना जताई जा रही है। अगर चांद 26 जून को ही दिख गया, तो मुहर्रम एक दिन पहले, यानी 27 जून से शुरू हो सकता है।
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7 जुलाई को आशूरा की संभावना
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम की 10वीं तारीख को आशूरा मनाया जाता है। यही दिन हजरत इमाम हुसैन की करबला में शहादत का प्रतीक माना जाता है। इस साल चंद्रमा की स्थिति को देखते हुए 7 जुलाई को आशूरा मनाए जाने की संभावना है। हालांकि अंतिम फैसला चांद दिखाई देने के बाद ही होगा।
मुहर्रम: इबादत और कुर्बानी का महीना
इमाम मुफ्ती मोहम्मद शाहकार आलम कासमी ने जानकारी दी कि मुहर्रम महीना इस्लाम में बेहद पवित्र माना गया है। यह महीना बड़ी शहादतों और कुर्बानियों की याद दिलाता है। इस महीने की पहली तारीख को इस्लामी हुकूमत के दूसरे खलीफा हजरत उमर फारूक की शहादत हुई थी। वहीं, हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की करबला के मैदान में दी गई शहादत, इस्लामी इतिहास का सबसे बड़ा बलिदान मानी जाती है। यह घटना मुहर्रम की 10 तारीख को हुई थी।
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मुहर्रम को क्यों कहा जाता है खास?
मुहर्रम को ‘शहरुल्लाह’ यानी अल्लाह का महीना कहा गया है। इस दौरान जुलूस, मातम, मजलिस और ताजिए की परंपरा निभाई जाती है। शिया समुदाय के लोग हुसैन की याद में मातम करते हैं, वहीं सुन्नी समुदाय के लोग रोजे रखकर अल्लाह की बंदगी में समय बिताते हैं।
अब सबकी नजरें चांद के दीदार पर टिकी हैं, जिसके बाद इस्लामी नया साल आधिकारिक तौर पर शुरू होगा और मुहर्रम की रस्मों का आगाज हो जाएगा।
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