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संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ स्कूल फीडिंग वर्ल्डवाइड’ के मुताबिक भारत ने स्कूल आधारित पोषण कार्यक्रमों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। रिपोर्ट बताती है कि 2020 से 2024 के दौरान भारत में स्कूलों में पोषक आहार प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या 30% बढ़कर 11.8 करोड़ हो गई है।
वैश्विक स्तर पर 8 करोड़ नए बच्चे जुड़े
रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के बाद बीते चार वर्षों में दुनिया भर में 8 करोड़ अतिरिक्त बच्चे सरकारी स्कूल पोषण योजनाओं से जुड़े हैं। अब कुल 46.6 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन्हें स्कूलों में भोजन मिलता है। यह संख्या 2020 की तुलना में 20% अधिक है।
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भारत में संख्या 9.04 करोड़ से बढ़कर 11.8 करोड़
2020 में भारत में 9.04 करोड़ बच्चों को स्कूलों में भोजन उपलब्ध कराया जाता था। 2024 में यह संख्या बढ़कर 11.8 करोड़ पर पहुंच गई। विशेषज्ञों के अनुसार, यह वृद्धि स्कूल पोषण योजनाओं की प्रभावशीलता और व्यापक पहुँच को दर्शाती है।
मिड-डे मील कार्यक्रम बना वैश्विक मॉडल
भारत का मिड-डे मील कार्यक्रम आज वैश्विक स्तर पर एक सफल उदाहरण माना जाता है। अध्ययनों से पता चला है कि यह कार्यक्रम सूखे जैसे संकट के दौरान बच्चों को कुपोषण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे स्पष्ट है कि स्कूलों में मिलने वाला भोजन न सिर्फ बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करता है बल्कि संकट की घड़ी में खाद्य असुरक्षा के खिलाफ एक मजबूत कवच भी बनता है।
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कमजोर देशों में 60% वृद्धि
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के कमजोर और गरीब देशों में पोषण प्राप्त करने वाले स्कूली बच्चों की संख्या में पिछले दो वर्षों में 60% की वृद्धि दर्ज की गई है। यह दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर सरकारें और संस्थाएँ बच्चों के पोषण पर अब पहले से ज्यादा ध्यान दे रही हैं।
अफ्रीका में सबसे तेज प्रगति
अफ्रीकी महाद्वीप इस बदलाव में सबसे आगे रहा है। केन्या, मेडागास्कर, इथियोपिया और रवांडा जैसे देशों में करीब 2 करोड़ नए बच्चे राष्ट्रीय स्कूल आहार योजनाओं से जुड़े हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि ये कार्यक्रम बच्चों के पोषण के साथ-साथ छोटे किसानों की आय बढ़ाने और स्थानीय रोजगार सृजित करने में भी अहम योगदान देते हैं।
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‘स्कूल का भोजन सिर्फ थाली नहीं, गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता’
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की कार्यकारी निदेशक सिंडी मैककेन ने कहा—
“स्कूलों में मिलने वाला भोजन सिर्फ एक पौष्टिक थाली नहीं है, बल्कि जरूरतमंद बच्चों के लिए गरीबी से बाहर निकलने का एक मार्ग भी है।”

