लाखों Law Students के लिए महा-राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने लॉ छात्रों के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि अब कम अटेंडेंस के कारण उन्हें परीक्षा (Law Exam) देने से रोका नहीं जा सकेगा। यह फैसला सुशील रोहिला आत्महत्या केस के 9 साल बाद आया है। कोर्ट ने माना कि अटेंडेंस के सख्त नियम छात्रों पर मानसिक दबाव डालते हैं और BCI (Bar Council of India) को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए अटेंडेंस नियमों में स्थायी सुधारों का आदेश दिया है।
अटेंडेंस की कमी पर अब परीक्षा से वंचित करना ‘अवैध’
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा की बेंच ने अपने विस्तृत आदेश में साफ कहा कि किसी भी लॉ कॉलेज में छात्रों को न्यूनतम अटेंडेंस की कमी के आधार पर परीक्षा या करियर की प्रगति से वंचित करना अवैध है। कोर्ट ने यह भी तय किया कि संस्थान BCI द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक अटेंडेंस नियम नहीं बना सकते। यह फैसला कानूनी शिक्षा में छात्रों के अधिकार और कल्याण को सुनिश्चित करता है।
मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता: BCI और कॉलेजों के लिए नए निर्देश
दिल्ली हाई कोर्ट ने केवल परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी है, बल्कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कई दीर्घकालिक सुधारों (Long-term Reforms) का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने सभी BCI-मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को कई महत्वपूर्ण उपाय लागू करने का निर्देश दिया है। इनमें शामिल हैं:
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अटेंडेंस की साप्ताहिक सूचना: छात्रों की अटेंडेंस की जानकारी ऑनलाइन पोर्टल या मोबाइल ऐप पर हर सप्ताह प्रकाशित करना अनिवार्य होगा।
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अभिभावकों को मासिक सूचना: अटेंडेंस की कमी के बारे में अभिभावकों को हर महीने सूचित करना होगा।
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अतिरिक्त कक्षाएं (Remedial Classes): न्यूनतम अटेंडेंस मानदंडों को पूरा न करने वाले छात्रों के लिए अतिरिक्त शारीरिक या ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि यदि कोई छात्र सेमेस्टर के अंत में भी निर्धारित अटेंडेंस मानदंडों को पूरा नहीं करता है, तो भी कॉलेज या विश्वविद्यालय उसे परीक्षा देने से नहीं रोक सकता है। बल्कि, अटेंडेंस की कमी को अंतिम परिणाम में ग्रेड कम करके दंडित किया जा सकता है। कोर्ट ने जोर दिया कि भले ही अटेंडेंस रोहिला की मौत का एकमात्र कारण न हो, लेकिन एक युवा लड़के की जान ऐसे नियमों के कारण नहीं जानी चाहिए थी।
छात्रों के अधिकार और भविष्य की सुरक्षा
यह ऐतिहासिक फैसला इस बात पर जोर देता है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास होना चाहिए, न कि उन्हें अनावश्यक दबाव में डालना। इस आदेश से कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव आएगा और छात्रों के अधिकार (Students’ Rights) को प्राथमिकता मिलेगी। लॉ कॉलेजों को अब BCI के नियमों का पालन करना होगा और छात्रों को परीक्षा से वंचित करने के बजाय अन्य रचनात्मक तरीकों से अटेंडेंस की कमी को पूरा करने का अवसर देना होगा। यह कदम छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करने और उनके मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करने की दिशा में एक बहुत बड़ा और सकारात्मक बदलाव है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह ब्रेकिंग न्यूज़ फैसला एक छात्र की दर्दनाक कुर्बानी के बाद आया है, जो बताता है कि सख्त नियम हमेशा समाधान नहीं होते। यह आदेश भारतीय कानूनी शिक्षा के लिए एक नया अध्याय खोलता है, जहां मानवीय पहलू (Human Aspect) और छात्र कल्याण (Student Welfare) को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।

