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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बिहार की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है। बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की है। भाजपा और जदयू का गठबंधन एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरा और महागठबंधन के दावे को ध्वस्त कर दिया। इस लेख में हम इस प्रचंड जीत के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि कैसे एनडीए ने महागठबंधन को हराया।
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महागठबंधन में घमासान: तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से कांग्रेस और राजद में दरार
चुनाव से पहले महागठबंधन में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद देखे गए। सबसे बड़ा विवाद यह था कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया, जिससे कांग्रेस और राजद के बीच तनाव बढ़ा। वहीं, एनडीए गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर कोई खास विवाद नहीं हुआ और गठबंधन की रणनीति स्पष्ट और सुसंगत रही, जो मतदाताओं में विश्वास का कारण बनी।
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तेजस्वी के वादों पर संदेह
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव में कई लोकलुभावन वादे किए, जिनमें हर घर में एक नौकरी और अन्य कल्याणकारी योजनाएं शामिल थीं। हालांकि, बिहार के युवा और महिलाएं इन वादों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें तेजस्वी के नेतृत्व में उन वादों के पूरा होने की संभावना कम दिखी। इसके विपरीत, नीतीश कुमार की सरकार के तहत महिलाओं और युवाओं के लिए कई योजनाएं लागू की गईं, जिनका प्रभाव सीधा मतदान पर पड़ा।
महिला वोटरों का समर्थन: महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये और नौकरी में आरक्षण
महिलाओं के लिए किए गए खास वादे एनडीए की जीत में अहम योगदान साबित हुए। बिहार सरकार ने चुनाव से पहले महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए, जिससे महिला वोटरों का समर्थन एनडीए की ओर बढ़ा। इसके अलावा, नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए सभी सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण का ऐलान किया, जिससे महिलाओं में सकारात्मक माहौल बना और उनका समर्थन जदयू-भा.ज.पा गठबंधन के पक्ष में गया।
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लालू परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा
लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों ने भी महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। हालांकि तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा था, लेकिन लोगों को अब भी उनके और उनके परिवार की छवि से जुड़ी समस्याएं याद थीं। इसके विपरीत, नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपने शासन की साख को मजबूत किया, जो मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहा।
5. नीतीश कुमार की योजनाओं का असर
नीतीश कुमार की शासन योजनाओं, जैसे शराबबंदी, महिलाओं के लिए आरक्षण, और सशक्त शिक्षा के फैसले ने राज्य के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में सुधार किया। इसने खासतौर पर महिलाओं और गरीब तबके में उनके प्रति विश्वास और समर्थन बढ़ाया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भी भाजपा ने विकास और शांति की छवि को आगे बढ़ाया, जिसका बिहार के मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा।
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सीटों की बढ़त और एनडीए की एकजुटता
एनडीए गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। जदयू, भाजपा, लोजपा और अन्य सहयोगियों ने मिलकर प्रचार किया और चुनावी रणनीति को मजबूती से लागू किया। दूसरी ओर, महागठबंधन में इस तरह की एकता और स्पष्टता नहीं दिखी, जिसके कारण उनके चुनावी अभियान में प्रभावशीलता की कमी रही। एनडीए ने बिहार की 243 में से 200 सीटों पर जीत दर्ज की और सत्ता में वापसी की।
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बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के पीछे कई अहम कारण हैं। महागठबंधन की अंदरूनी कलह, तेजस्वी यादव के वादों पर संदेह, और नीतीश कुमार के विकास कार्यों पर लोगों का विश्वास प्रमुख रहे। साथ ही, महिलाओं के लिए किए गए फैसले और भ्रष्टाचार के मुद्दे ने भी एनडीए को मजबूती दी। अंतत: यह चुनाव बिहार में एक बार फिर एनडीए की जीत की कहानी के रूप में सामने आया।

