भारत के संगीत इतिहास में 31 जुलाई एक भावनात्मक तारीख है। इसी दिन, साल 1980 में देश ने वो आवाज खो दी थी, जिसे सुनकर ना सिर्फ दिल पिघलते थे, बल्कि ज़िंदगी के हर जज्बे को आवाज़ मिलती थी। मोहम्मद रफी सिर्फ एक गायक नहीं थे, वो एक युग थे, एक एहसास थे, जो आज भी हर उम्र के लोगों की प्लेलिस्ट में ज़िंदा हैं।
आज रफी साहब की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना, भारतीय सिनेमा के उस स्वर्णिम दौर को याद करना है, जब गीतों में नज़ाकत, मोहब्बत और मासूमियत एक साथ बहती थी। उन्होंने करीब 35 वर्षों के अपने करियर में 5000 से अधिक गानों को अपनी आवाज़ दी, जिनमें रोमांस, भक्ति, देशभक्ति, दर्द, हास्य, सूफियाना – हर रंग मौजूद था।
सदाबहार नग़मे जिन्होंने रफी को अमर बना दिया
‘गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं’ – फिल्म: द ट्रेन (1970)
आनंद बख्शी की कलम, आर. डी. बर्मन का संगीत और रफी साहब की मस्ती से भरी आवाज़। राजेश खन्ना और नंदा पर फिल्माया गया यह गीत आज भी क्लब्स और पार्टियों में गूंजता है। खास बात यह कि इसे एक ही टेक में रिकॉर्ड किया गया था, जिसमें रफी को महारत हासिल थी।
‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई’ – फिल्म: आ गले लग जा (1973)
शैलेन्द्र के शब्दों और शंकर-जयकिशन के संगीत से सजा यह गीत एक सूफियाना अनुभव है। रफी की आवाज़ इसमें आत्मा से निकलती है। यह गाना आज भी शादियों, मेलों और सांस्कृतिक आयोजनों में खास जगह रखता है।
‘लिखे जो खत तुझे’ – फिल्म: कस्मे वादे (1967)
शशि कपूर और आशा पारेख पर फिल्माए इस गीत में मोहब्बत को एक प्रेम पत्र की तरह पेश किया गया। हसरत जयपुरी की शायरी और शंकर-जयकिशन के संगीत में रफी की भावनाओं से लबरेज़ आवाज़ ने इस गाने को अमर बना दिया। कहते हैं, रिकॉर्डिंग के समय हर कोई भावुक हो गया था।
‘क्या हुआ तेरा वादा’ – फिल्म: हम किसी से कम नहीं (1977)
इस दर्द भरे गीत के लिए मोहम्मद रफी को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया। इस गाने में दर्द, वफा और तन्हाई की जो तस्वीर रफी साहब ने खींची, वह आज भी लोगों के ज़ेहन में बसी है।
‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ – फिल्म: दुश्मन (1971)
एक सच्चे और निस्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति रफी की आवाज़ में इतनी सादगी और गहराई से की गई कि यह गीत प्रेम का पर्याय बन गया।
रफी साहब: एक स्वर, जो अब भी गूंजता है
मोहम्मद रफी की खासियत थी कि वे सिर्फ गायक नहीं थे, बल्कि हर शब्द को जीते थे। जब वो गाते थे, तो लगता था जैसे कोई किरदार बोल रहा हो। उनकी आवाज़ में न केवल सुर था, बल्कि आत्मा भी थी। वे जितने सरल इंसान थे, उतने ही संजीदा कलाकार।
उनके गानों ने मोहब्बत करना सिखाया, वतन से प्यार करना सिखाया, ईश्वर से रिश्ता जोड़ना सिखाया, और अकेलेपन में दिल को सहलाया। चाहे वह मंच हो या स्टूडियो, रफी साहब ने कभी अपनी मुस्कान और विनम्रता नहीं छोड़ी।
पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि
आज उनकी पुण्यतिथि पर संगीत प्रेमी, कलाकार, फिल्म जगत और उनके करोड़ों चाहने वाले उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके गानों के वीडियो, यादें और भावनाएं साझा की जा रही हैं। रेडियो चैनलों से लेकर संगीत मंचों तक, हर जगह रफी के गीत आज फिर से गूंज रहे हैं।
मोहम्मद रफी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी हमारे साथ चलती है — दिल से दिल तक।
एक युग की आवाज़, जो कभी खामोश नहीं होगी।
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