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रायपुर। प्रदेश में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके आतंक को रोकने के लिए राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद राज्य सरकार ने सात विभागों को समन्वित अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोकनिर्माण, स्कूल शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा, नगरीय प्रशासन, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र और पशुधन विकास विभाग को स्पष्ट रूप से अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गई हैं।

डीपीआई ने आदेश जारी कर स्कूलों के प्राचार्य और प्रधान पाठकों को अब आवारा कुत्तों की निगरानी और उनकी जानकारी देने की जिम्मेदारी सौंप दी है। इसके लिए एक निर्धारित फार्मेट भी जारी किया गया है। इसमें संस्था प्रमुखों को स्कूल परिसर और आसपास घूमने वाले कुत्तों का विवरण भरकर हस्ताक्षर के साथ देना होगा। फार्म में कुत्ते का प्रकार, लिंग (मेल/फीमेल), रंग, विशेष पहचान और देखने का समय दर्ज करना अनिवार्य होगा।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पशुधन विकास विभाग ने आवारा कुत्तों को पकड़ने की रणनीति बनाई है। स्कूलों के आसपास भी कई कुत्ते घूमते रहते हैं, जो कई बार बच्चों को काट देते हैं। ऐसे मामलों को रोकने के लिए प्राचार्य और प्रधान पाठकों को जिम्मेदारी दी गई है। इसके पालन की जिम्मेदारी जिलाधिकारी (JD) और जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) को सौंपी गई है।

लोक शिक्षण संचालनालय ने प्रदेशभर के सभी स्कूलों को आदेश जारी किया है, जिसमें शिक्षकों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे स्कूल परिसर या उसके आसपास घूम रहे आवारा कुत्तों की सूचना ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत या नगर निगम के डॉग कैचर को दें। इसके बाद स्थानीय प्रशासन की मदद से स्कूल में कुत्तों के प्रवेश को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

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शिक्षकों में नाराजगी

इस आदेश के बाद शिक्षकों में नाराजगी बढ़ गई है। छग प्रदेश संयुक्त शिक्षक संघ के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश बघेल ने कहा कि शिक्षकों पर पहले से ही पढ़ाई के अलावा अनेक गैर-शिक्षकीय कार्यों का बोझ है। ऐसे में कुत्तों की निगरानी का काम सौंपना अव्यावहारिक है। उनका कहना है कि इस जिम्मेदारी को स्थानीय प्रशासन को सौंपा जाना चाहिए, न कि शिक्षकों को। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शिक्षकों से गैर-शिक्षकीय कार्य कराया गया और कहीं परिणाम खराब हुए, तो दोष शिक्षकों पर न लगाया जाए।

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अभियान और विभागों की जिम्मेदारी

राज्य सरकार ने अभियान को प्रभावी बनाने के लिए सात विभागों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी हैं।

1. नगरीय प्रशासन और पंचायत विकास विभाग:

  • कुत्ता बाड़ा, पशु चिकित्सक, वाहन, पिंजरे की व्यवस्था और कुत्ता पकड़ने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति।
  • प्रत्येक वार्ड में आवारा कुत्तों के लिए समर्पित भोजन स्थान का चिन्हांकन।
  • चिन्हित परिसरों का कम से कम हर तीन महीने में नियमित निरीक्षण।
  • स्टेडियम और खेल परिसरों में कुत्तों का प्रवेश रोकने के लिए सुरक्षा या ग्राउंड कीपिंग कर्मियों की तैनाती।

2. पशुधन विकास विभाग:

  • आवारा कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण, कृत्रिम नाशक दवा।
  • आश्रय स्थल में पशु चिकित्सक की व्यवस्था।
  • राजमार्ग गश्ती दल की सूचना पर पशु इलाज की कार्रवाई।
  • समस्त संबंधित विभागों से समन्वय।

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3. लोकनिर्माण विभाग:

  • चिन्हांकित संस्थानों में बाउंड्रीवाल, गेट और अन्य अधोसंरचना के निर्माण।
  • आवारा कुत्तों के प्रवेश रोकने के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति।

4. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग:

  • सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में एंटी-रेबीज टीकों और इम्युनोग्लोबुलिन का पर्याप्त स्टॉक।

5. स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग:

  • प्रत्येक स्कूल और शैक्षणिक संस्थान में छात्रों और कर्मचारियों को जानवरों के आसपास सावधानी बरतने की शिक्षा।
  • काटने पर प्राथमिक इलाज और तत्काल सूचना देने के प्रोटोकॉल पर जागरूकता सत्र।

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6. राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र:

  • डिजिटलीकृत रिपोर्टिंग सिस्टम तैयार करना।

7. समन्वित अभियान:

  • प्रत्येक संस्था का प्रमुख यह चिन्हित करेगा कि कुत्ते परिसर में किन रास्तों से प्रवेश करते हैं।
  • छह सप्ताह के भीतर उन रास्तों को रोकने के लिए प्रभावी इंतजाम अनिवार्य होंगे।
  • जरूरत पड़ने पर विभाग एक-दूसरे की मदद भी लेंगे।

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अभियान के पहले चरण में स्कूलों, अस्पतालों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और खेल मैदान जैसे सार्वजनिक स्थलों की पहचान की जाएगी। इन जगहों पर आवारा कुत्तों की बे-रोकटोक आवाजाही को रोकने के लिए गेट, फेंसिंग और अन्य आवश्यक व्यवस्थाएं की जाएंगी। हर संस्था में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा, जो अभियान की निगरानी और रिपोर्टिंग करेंगे।

अधिकारियों का कहना है कि बहु-विभागीय समन्वय और व्यवस्थित योजना के माध्यम से न केवल कुत्तों के आतंक पर काबू पाया जा सकेगा, बल्कि सार्वजनिक स्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में सुरक्षा भी बढ़ेगी।

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