रायपुर
शासकीय स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था को मजबूत करने के नाम पर राज्य सरकार द्वारा किए गए युक्तियुक्तकरण के बीच एक नए आदेश ने शिक्षक समुदाय को गंभीर रूप से आहत किया है। सरकार ने स्कूलों के शिक्षकों को आवारा कुत्तों की जानकारी संकलित कर ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और नगर निगम को भेजने का निर्देश दिया है, जिसे लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन ने कड़ी आपत्ति जताई है।
फेडरेशन के प्रांताध्यक्ष राजेश चटर्जी ने सवाल किया है कि जब स्कूलों में बच्चों को विषय ज्ञान देना अत्यावश्यक सेवा है, तो आखिर शिक्षकों को कुत्ता गणना जैसे असंगत कार्यों में क्यों लगाया जा रहा है। उन्होंने पूछा कि क्या यह कार्य सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश में शिक्षकों को सौंपा गया है।
फेडरेशन का कहना है कि अधिकांश स्कूल बिना बाउंड्रीवाल के हैं, और जहां हैं, वे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। ऐसे में शिक्षक आवारा कुत्तों के प्रवेश को कैसे रोक सकेंगे। आवारा कुत्तों से स्वयं शिक्षकों की सुरक्षा भी खतरे में रहती है। स्कूलों में रात के समय असामाजिक तत्वों का जमावड़ा होता है, जिससे वातावरण दूषित होता है और बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई शाला भवन खस्ताहाल हैं, लेकिन अधिकारियों को जानकारी होने के बावजूद मरम्मत नहीं होती— दुर्घटना होने पर जिम्मेदारी सीधे शिक्षक पर डाल दी जाती है।
चटर्जी ने बताया कि बड़ी संख्या में शिक्षकों की ड्यूटी SIR और बीएलओ के रूप में लगी है। बोर्ड परीक्षाओं में अब केवल दो-तीन महीने बचे हैं, वहीं पदोन्नति के बाद कई स्कूल विषय-शिक्षक विहीन होने की कगार पर हैं। जनगणना 2021 कोविड-19 के कारण स्थगित है और किसी भी समय शुरू हो सकती है, ऐसे में शिक्षकों पर अतिरिक्त दायित्वों का बोझ और बढ़ जाएगा।
फेडरेशन का कहना है कि शिक्षक लगातार गैर-शैक्षिक गतिविधियों में उलझे रहते हैं, जिसके कारण वे अपने मुख्य कार्य— पढ़ाई— को पूरा समय नहीं दे पाते, लेकिन नतीजों में गिरावट के लिए जिम्मेदारी उन्हीं पर तय कर दी जाती है।
फेडरेशन का सवाल है — जब हर गैर-जरूरी काम शिक्षकों से ही कराया जा रहा है, तो क्या शिक्षक संवर्ग का पदनाम बदलकर ‘मल्टी-टास्किंग स्टाफ (MTS)’ रख देना चाहिए?
आखिर दोषी कौन है— व्यवस्था या शिक्षक?

