पश्चिम सिंहभूम, झारखंड से अनोखी शुरुआत – हाथियों को अब ट्रेनों की टक्कर से मिलेगी राहत
पश्चिम सिंहभूम (झारखंड) के जंगलों से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक पर अब हाथियों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ी पहल की गई है। चक्रधरपुर रेलवे मंडल ने ‘एलीसेंस लाइव’ नामक एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित सिस्टम लागू किया है, जो ट्रैक के पास हाथियों की मौजूदगी का तुरंत पता लगाकर रेलवे और वन विभाग को अलर्ट करता है।
इस तकनीक के जरिए अब ट्रेनों और हाथियों के बीच होने वाले हादसों को रोका जा सकेगा। रेलवे और वन विभाग के बीच बेहतर तालमेल और जानवरों की सुरक्षा के लिहाज से यह एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।
कैसे काम करता है ‘एलीसेंस लाइव’ AI सिस्टम?
यह सिस्टम रेलवे ट्रैक पर लगे कैमरों और सेंसरों के जरिए हाथियों या किसी बड़े जानवर की मौजूदगी को वीडियो और फोटो के जरिए तुरंत पहचानता है और संबंधित अधिकारियों को रियल टाइम अलर्ट भेजता है।
यह न केवल जानवर की संख्या और दिशा की जानकारी देता है, बल्कि उनकी गतिविधियों और मूवमेंट को भी लगातार ट्रैक करता है।
प्रशिक्षित हाथियों से मिल रही मदद
इस सिस्टम को और अधिक सटीक और व्यवहारिक बनाने के लिए, गुजरात के जामनगर स्थित ‘वनतारा चिड़ियाघर’ से दो प्रशिक्षित हाथियों को लाकर रेलवे ट्रैक के पास चलाया जा रहा है। इनकी मदद से सिस्टम को हाथियों के हावभाव और मूवमेंट पैटर्न को समझने और पहचानने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
संवेदनशील ट्रैक पर सबसे पहले लागू
यह तकनीक फिलहाल हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग के सबसे ज्यादा संवेदनशील सेक्शन जैसे जराईकेला–महादेवशाल, धुतरा–बागडीह, मानीकुई–चांडिल और कुनकी–चांडिल में लागू की गई है। इन इलाकों में अक्सर हाथियों और ट्रेनों के बीच टकराव की घटनाएं होती रही हैं।
दुखद हादसे ने दी प्रेरणा
इस पूरे प्रोजेक्ट की प्रेरणा एक दर्दनाक हादसे से मिली थी। पिछले साल चक्रधरपुर मंडल के बंडामुंडा ए केबिन के पास एक हाथी के बच्चे की ट्रेन से टकराकर मौत हो गई थी। इस घटना ने रेलवे को झकझोर दिया और AI आधारित समाधान खोजने की दिशा में कदम बढ़ाया गया।
20 करोड़ की लागत से चल रही परियोजना
करीब 20 करोड़ रुपये की लागत से यह परियोजना शुरू की गई है, जिससे न केवल हाथियों की जान बचाई जा सकेगी, बल्कि रेल संचालन भी सुरक्षित और संवेदनशील बनेगा।
इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह तकनीक देश के अन्य वन क्षेत्रों में भी लागू की जाएगी, जहां रेलवे ट्रैक वन्यजीवों के आवागमन क्षेत्र से गुजरते हैं।