अर्चना थॉमस:
“जो सच के लिए खड़ा हो, वो भीड़ में अकेला नहीं होता,
राजेश जैसा पत्रकार हो, तो हर शब्द इंकलाब होता…”
जब पूरे सिस्टम में सन्नाटा पसरा हो,जब सवाल पूछने वाला कोई न हो,,तब एक आवाज़ उठती है —
जो न बिकती है, न झुकती है,बल्कि सत्ता की आँख में आँख डालकर कहती है — “जनता सवाल कर रही है, जवाब दो!”
राजेश पांडेय सिर्फ नाम नहीं,वो एक विचार हैं, जो पत्रकारिता को पेशे से मिशन तक ले गए।जो रिपोर्टिंग को ‘रूटीन’ से ‘क्रांति’ बना गए।जिनके कैमरे में लेंस से ज़्यादा ज़मीर है,और जिनकी कलम में स्याही नहीं, सच की चिनगारियाँ हैं।
बिहार की मिट्टी से निकले,मगध विश्वविद्यालय से ज्ञान लेकर, छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता को नया किरदार देने वाले इस बेबाक, निर्भीक, और जनजुड़े पत्रकार का नाम है –राजेश पांडेय।
आज जब हम उनका जन्मदिन मना रहे हैं,,तो यह सिर्फ एक वैयक्तिक उत्सव नहीं,बल्कि जनसरोकारों के प्रहरी को सलाम करने का दिन है।आज उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए, हम सब ये भी स्वीकारते हैं —कि जब मीडिया बिकती है,तब मुनादी की गूंज उठती है,और उस गूंज का नाम होता है —राजेश पांडेय।
जहां खामोशियां बिकती थीं सिक्कों के वजन पर,
वहां एक कलम आई — जो झुकी नहीं, जो बिकी नहीं।उस कलम का नाम है राजेश पांडेय —जो पत्रकार नहीं, एक विचारधारा हैं।जो रिपोर्टर नहीं, एक जनचेतना हैं।जो कैमरे की फ्लैश नहीं,बल्कि अंधेरे में टिमटिमाता सच का चिराग हैं।
जो सच को चुप करा दे, वो सत्ता की चाल होती है,
और जो सच को गूंजा दे, वो राजेश पांडेय की मुनादी होती है।
मगध विश्वविद्यालय, गया से शिक्षा की बुनियाद रखी।
सहारा समय जैसे मंच पर पत्रकारिता की धार तेज की।हर सवाल, हर रिपोर्ट, एक प्रतिरोध बनती चली गई।और तभी से पत्रकारिता ने प्रोफेशन से उठकर मिशन का रूप लिया। “जहाँ शब्द डरते हों, वहाँ सच बोलना ही क्रांति है,और राजेश पांडेय उस क्रांति के पहले सिपाही हैं…”
सहारा समय, देशबंधु, जनकर्म, जैसे प्रतिष्ठित अख़बार न्यूज़ चैनल में काम करने के बाद उन्होंने खुद का अख़बार निकाला, सूर्योदय अखबार के संपादक बने —जहां हर पंक्ति सूरज की पहली किरण की तरह चमकने लगी।फिर आया “मुनादी न्यूज पोर्टल” और फिर “मुनादी चौपाल” —जहां कैमरे की रोशनी और लेखनी की ताप नेतंत्र की नींव तक को हिला दिया।
कुर्सी हिलती है जब ये माइक चलता है,
अफसर कांपते हैं जब राजेश सवाल करता है।
राजेश पांडेय की कलम भ्रष्टाचार की गंध को दूर से पहचान लेती है।नागलोक के करेंत और नाग सांप भी उनकी रिपोर्ट से डरते हैं।उनका कैमरा, उनका माइक और उनकी नजर —ज़मीन के नीचे दबे सच को खींच कर बाहर लाते हैं।भ्रष्टाचार की आहट वो दूर से सुन लेते हैं उनकी रिपोर्ट बिल के भीतर छिपे झूठ को बाहर खींच लाती है बहुतों को लगता है आप एक पत्रकार नहीं बल्कि पूर्ण आंदोलन हैंसत्ता के गलियारों में जब सन्नाटा फैलता है,तब आपके सवाल गूंज उठते हैं.आपकी रिपोर्ट अफसरों की नींद उड़ा देती है सफेद और काले हाथी दोनों ही आपकी कलम से कांपते हैं
“लिखा है जिनकी कलम ने सत्य का घोष हर बार,
वो राजेश नहीं… हैं पत्रकारिता का हथियार…”सत्ता कांपती है, तंत्र बेचैन होता है,भ्रष्ट अफसरों की नींद उड़ जाती है —जब राजेश पांडेय की रिपोर्ट मुनादी करती है।सवाल जब तीर बन जाए, और कलम तलवार,
तब पैदा होते हैं राजेश जैसे पत्रकार।
जहां संवाद की शक्ति है,वहीं संवेदना की भी गहराई है।राजेश पांडेय एक ऐसे व्यक्ति हैं —
जो जितने तीखे शब्दों से व्यवस्था पर वार करते हैं,
उतनी ही गर्मजोशी से लोगों का दुख भी समझते हैं।आप मिलनसार हैं मददगार हैं जिनके इतने मित्र हों उन्हें शत्रु की आवश्यकता ही कब होती है
रायगढ़ और जशपुर आपकी कर्मभूमि बने और आपकी लेखनी ने अन्याय के खिलाफ आग उगली
> “जो दूसरों का दर्द भी महसूस कर सके,
वही सच्चा पत्रकार, वही सच्चा इंसान होता है…”
रायगढ़ और जशपुर उनकी कर्मभूमियाँ बनीं,जहां गाँव के किसान से लेकर मंत्री तक —हर कोई उनकी रिपोर्ट पढ़कर सोचने को मजबूर हुआ।राजेश पांडेय, आप महज पत्रकार नहीं,आप उस दौर की आवाज हैं,जहां सच्चाई अक्सर दम तोड़ देती है,पर आप उसे जीवन देते हैं।
> “झुकते जहां सवाल, बिकते जहां जमीर,
वहाँ राजेश पांडेय जैसे लोग खड़े होते हैं तस्वीर बनकर…”
आप जननेता नहीं, जनजागरूकता के मार्गदर्शक हैं।आपकी कलम, आपका कैमरा,और आपका साहस —हर युवा पत्रकार के लिए प्रेरणा है।
आज के दिन हमारी प्रार्थना है —कि आपकी लेखनी यूँ ही अन्याय के किले को ढहाती रहे,
और जनसरोकार की मशाल जलाती रहे।
> “कलम से जो कर दे इंकलाब की शुरुआत,
वो जन्म नहीं… होता है समय की ज़रूरत बनकर…”
राजेश पांडेय जी,
आपको जन्मदिन की अनगिनत शुभकामनाएं।
आपका उजाला और गहरा हो,आपकी मुनादी दूर-दूर तक गूंजे,और आपके शब्द जनक्रांति की आवाज बनते रहें।
जहाँ मीडिया मौन हो, वहाँ मुनादी की गूंज जरूरी है,
और उस गूंज का नाम — राजेश पांडेय जरूरी है।