नई दिल्ली।
केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय जल्द ही ‘आदि वाणी’ नाम से देश का पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित ट्रांसलेटर लॉन्च करने जा रहा है। इस अनूठी पहल का उद्देश्य आदिवासी भाषाओं को संरक्षित करना और जनजातीय समुदायों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाना है।
‘आदि वाणी’ में अत्याधुनिक एआई मॉडल एनएलएलबी और इंडिक ट्रांस-2 का इस्तेमाल किया गया है। इसके जरिए हिंदी, अंग्रेज़ी और आदिवासी भाषाओं के बीच रियल-टाइम अनुवाद संभव होगा। यही नहीं, इस ट्रांसलेटर में टेक्स्ट-टू-स्पीच, स्पीच-टू-टेक्स्ट और ओसीआर जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी, जिससे प्राचीन पांडुलिपियों और मौखिक परंपराओं को डिजिटल स्वरूप दिया जा सकेगा।
यह परियोजना आईआईटी दिल्ली, आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी रायपुर और बिट्स पिलानी ने देशभर के जनजातीय शोध संस्थानों (टीआरआई) के साथ मिलकर तैयार की है। शुरुआत में इस ट्रांसलेटर में संथाली (ओडिशा), भीली (मध्य प्रदेश), मुंडारी (झारखंड) और गोंडी (छत्तीसगढ़) भाषाओं का अनुवाद उपलब्ध होगा। आगामी चरण में कुई और गारो जैसी अन्य भाषाओं को भी जोड़ा जाएगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों के बीच कुल 461 भाषाएं और 71 मातृ भाषाएं प्रचलित हैं। इनमें से 81 भाषाएं असुरक्षित और 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं। दस्तावेजीकरण और पीढ़ीगत परंपराओं के अभाव में कई भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं।
‘आदि वाणी’ को इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जो न सिर्फ भाषाओं के संरक्षण में मदद करेगा बल्कि जनजातीय समाज को तकनीकी युग से जोड़कर उनके ज्ञान, संस्कृति और परंपरा को भी नई पहचान दिलाएगा।

