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पिछले 15 वर्षों में भारत ने एचआईवी के खिलाफ लड़ाई में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। विश्व एड्स दिवस के मौके पर जारी की जाने वाली केंद्र सरकार की रिपोर्ट बताती है कि इस अवधि में देश में एचआईवी के नए मामलों में 48.7% की कमी आई है, जो वैश्विक औसत 40% से कहीं बेहतर है। इसी तरह एड्स से होने वाली मौतों में 81.4% की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि विश्व स्तर की तुलना में (54%) काफी अधिक प्रभावशाली है।
विज्ञान भवन में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करेंगे। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि देश में एचआईवी जांच की पहुँच बहुत तेजी से बढ़ी है। जहाँ 2020–21 में 4.13 करोड़ लोग एचआईवी टेस्ट करा रहे थे, वहीं 2024–25 तक यह संख्या बढ़कर 6.62 करोड़ से अधिक हो गई।
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इलाज की उपलब्धता में भी उल्लेखनीय सुधार दिखा है। एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) पर रहने वाले मरीजों की संख्या 14.94 लाख से बढ़कर 19.15 लाख तक पहुँच गई है। वहीं वायरल लोड टेस्टिंग की संख्या भी 8.90 लाख से बढ़कर 15.98 लाख तक हो गई है, जिससे मरीजों के इलाज की प्रभावशीलता की बेहतर निगरानी संभव हो रही है।
एचआईवी नियंत्रण में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है मां से बच्चे में संक्रमण रोकने में आई भारी गिरावट। 2010–24 के बीच यह संक्रमण 74.6% कम हुआ है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह कमी 57% है। आज भारत का वयस्क एचआईवी दर 0.20% है, जो विश्व औसत 0.70% से काफी कम है। नए संक्रमणों का स्तर भी 0.05 प्रति 1,000 आबादी है, जो अंतरराष्ट्रीय औसत (0.16) की तुलना में बेहतर है।
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स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि यह सफलता मजबूत राजनीतिक नेतृत्व, घरेलू निवेश, समुदाय आधारित कार्यक्रमों और साक्ष्य-आधारित रणनीतियों का परिणाम है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम ने देश की एड्स-रोकथाम रणनीति को मज़बूत करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। भारत अब एड्स को जन स्वास्थ्य जोखिम के रूप में समाप्त करने की दिशा में और तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
आज एचआईवी एक ऐसी बीमारी बन चुकी है जिसे समय पर उपचार और आधुनिक दवाओं की मदद से नियंत्रित रखा जा सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि माँ से बच्चे में संक्रमण का खतरा अब लगभग शून्य हो गया है। बेहतर दवाओं के चलते वायरल लोड इतना कम हो जाता है कि बच्चा नकारात्मक जन्म ले सकता है। आरएमएल अस्पताल के एआरटी क्लीनिक में इस समय लगभग 5,000 मरीज मुफ्त उपचार का लाभ ले रहे हैं।
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इलाज भी अब पहले के मुकाबले जल्दी शुरू किया जाता है। पहले मरीज का CD4 काउंट 350–500 आने पर उपचार शुरू होता था, लेकिन अब एचआईवी की पुष्टि होते ही थेरेपी शुरू कर दी जाती है, जिससे टीबी, फंगल संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा काफी कम हो गया है।
एचआईवी फैलने के प्रमुख कारणों में असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुई का उपयोग, संक्रमित उपकरण, माँ से बच्चे में संक्रमण और संक्रमित अंगों का प्रत्यारोपण शामिल हैं। मरीजों को स्वस्थ जीवन के लिए सुरक्षित यौन संबंध, संतुलित आहार, शराब-धूम्रपान से परहेज, और दवाओं का समय पर सेवन करना जरूरी है।
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एचआईवी और एड्स (पीएंडसी) अधिनियम 2017, जो 10 सितंबर 2018 से लागू हुआ, ने एचआईवी पीड़ितों को भेदभाव से कानूनी सुरक्षा, मुफ्त इलाज और शिकायत निवारण व्यवस्था के अधिकारों से सशक्त बनाया है।
भारत की ये उपलब्धियाँ यह साबित करती हैं कि सही नीतियों, आधुनिक इलाज और सामुदायिक भागीदारी के साथ एड्स को नियंत्रित करना पूरी तरह संभव है — और भारत इस लक्ष्य की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

