सारंगढ़, 31 अक्टूबर 2025/ छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ जिले में आयोजित विराट हिन्दू सम्मेलन में एक ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला, जब 140 धर्मांतरित बंधुओं ने सनातन धर्म में पुनः वापसी की। यह घर वापसी अजय उपाध्याय महाराज के सानिध्य में संपन्न हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने स्वयं धर्मांतरित बंधुओं के चरण पखारकर उन्हें विधिवत सनातन परंपरा में स्वागत किया।
प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने कहा — “माँ समलेशवरी की इस पावन भूमि पर आज धर्म की पुनर्स्थापना का पावन अवसर है। सनातन धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक ऐसी व्यवस्था है जो सत्य, करुणा और समरसता का मार्ग दिखाती है।”
उन्होंने आगे कहा — “यह घर वापसी किसी धर्म परिवर्तन का प्रतिकार नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और संस्कृति की पुनः स्थापना है। यह कार्यक्रम पूज्य कार्तिक उरांव जी को समर्पित है, जिन्होंने जनजातीय समाज के अधिकार और अस्मिता के लिए अपना जीवन समर्पित किया।”
उन्होंने अपने पूज्य पिताश्री कुमार दिलीप सिंह जूदेव को स्मरण करते हुए कहा — “घर वापसी अभियान हमारे परिवार की नहीं, राष्ट्र की भावना है। इसे हम केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का आंदोलन मानते हैं। जब तक एक भी व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ना चाहेगा, यह यात्रा जारी रहेगी।”
धार्मिक एकता और जनजागरण का संदेश
कार्यक्रम में घर वापसी छत्तीसगढ़ प्रांत की संयोजिका अंजू गबेल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज के युवाओं को धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति जागरूक होकर एकजुटता के साथ कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब युवा अपनी पहचान और परंपरा को समझेंगे, तभी समाज सशक्त होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला पंचायत अध्यक्ष संजय भूषण पांडेय ने की। इस अवसर पर राजकुमार चौधरी (प्रांत प्रमुख, धर्मजागरण), मेहर बाई नायक (स्वाध्याय प्रमुख), केराबाई मनहर (पूर्व विधायक), ज्योति पटेल (भाजपा जिलाध्यक्ष), मुक्ता वर्मा, रेखा बाई रामनामी, गुलाराम रामनामी और आचार्य श्रीराम भगत रामनामी सहित अनेक धर्मप्रेमी उपस्थित रहे।
युवा शक्ति की सक्रिय भूमिका
कार्यक्रम की सफलता में युवा टीम का विशेष योगदान रहा। रवि तिवारी, किशन गुप्ता, इशांत शर्मा, धीरज सिंह और उनके साथियों ने आयोजन को व्यवस्थित ढंग से संपन्न कराया। संचालन अमित गोगले ने किया।
अंत में सभी वक्ताओं ने समाज, धर्म और राष्ट्र की एकता के लिए सामूहिक समर्पण और सतत प्रयास का संकल्प लिया। सारंगढ़ की यह घटना न केवल घर वापसी का पर्व बनी, बल्कि यह संदेश भी दे गई कि सनातन संस्कृति आज भी जनमानस की आत्मा में जीवित है।

