पुरी (ओडिशा)। आस्था, परंपरा और भक्ति का अद्भुत संगम—ऐसी ही एक छवि लेकर हर वर्ष पुरी की पावन भूमि पर निकलती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलने वाली यह यात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि भारत की जीवंत सांस्कृतिक विरासत का भव्य उत्सव भी है। इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई 2025 को निकलेगी, और उसके साथ ही जुड़ी होगी एक अद्वितीय परंपरा—सोने की झाड़ू से मार्ग की सफाई।
क्या है यह विशेष अनुष्ठान?
रथ यात्रा शुरू होने से ठीक पहले, भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विशाल रथों के मार्ग को सोने की मूठ वाली झाड़ू से साफ किया जाता है। यह कार्य सामान्य जन नहीं, बल्कि पुरी के गजपति महाराज (राजघराने के वंशज) अपने हाथों से करते हैं। इस रस्म को “छेरा पहरा” कहा जाता है, और यह इस बात का प्रतीक है कि भगवान के समक्ष सभी समान हैं—राजा भी और रंक भी।
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धार्मिक मान्यता और आध्यात्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सोना शुभता, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक है। जब गजपति महाराज झाड़ू लगाते हैं, तो वह न केवल मार्ग को साफ करते हैं, बल्कि अपने अहंकार का त्याग कर प्रभु के चरणों में समर्पण भी प्रदर्शित करते हैं। झाड़ू लगाने के बाद वैदिक मंत्रों का उच्चारण होता है, जो पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
यह परंपरा यह भी दर्शाती है कि भक्त अपने आराध्य को हमेशा सर्वश्रेष्ठ देना चाहते हैं—चाहे वह मार्ग हो, रथ हो या पूजा की विधि। भगवान के मार्ग की सफाई केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता का भी प्रतीक है।
सांस्कृतिक और राजसी महत्व
इस रस्म का सांस्कृतिक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह परंपरा जगन्नाथ रथ यात्रा को एक राजसी और ऐतिहासिक आयाम देती है। गजपति महाराज द्वारा सफाई करना यह दर्शाता है कि राजा स्वयं को भगवान का सेवक मानता है। यह दृश्य न केवल श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत भावुक करने वाला होता है, बल्कि रथ यात्रा की गरिमा को भी और अधिक बढ़ा देता है।
सोने की झाड़ू से आती है सकारात्मक ऊर्जा
मान्यता है कि सोने की झाड़ू से सफाई करने से उस स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह प्रक्रिया उस मार्ग को पवित्र बनाती है, जिस पर स्वयं भगवान यात्रा करते हैं। इसी कारण से इसे केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक ऊर्जा जागरण का माध्यम माना जाता है।
एक परंपरा जो सदियों से जीवंत है
छोटे-बड़े, राजा-रंक, सभी जब एक ही रथ को खींचते हैं, और भगवान के मार्ग की सफाई स्वयं गजपति महाराज करते हैं, तो यह दृश्य भारत की समानता, समर्पण और संस्कृति की जीती-जागती मिसाल बन जाता है। यही परंपराएं जगन्नाथ रथ यात्रा को न केवल एक त्योहार, बल्कि एक जीवंत आध्यात्मिक अनुभव बनाती हैं।
इस वर्ष की रथ यात्रा में, जब सोने की झाड़ू से मार्ग पवित्र किया जाएगा, तब एक बार फिर समर्पण, श्रद्धा और संस्कृति का संगम पुरी की पवित्र धरती पर साक्षात होगा। यह परंपरा सिर्फ एक झाड़ू लगाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि भगवान के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की गूढ़ अभिव्यक्ति है।