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धर्म डेस्क।

आज लोक आस्था का महान पर्व छठ पूजा अपने चरम पर है। दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला यह चार दिवसीय पर्व सूर्य उपासना और मातृ शक्ति की आराधना का अनूठा प्रतीक है। आज 27 अक्टूबर 2025 को पर्व का तीसरा दिन है, जिसे षष्ठी तिथि कहा जाता है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु संध्या के समय घाटों पर एकत्र होकर सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं और छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि और संतान के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।

Chhath Puja 2025: 36 घंटे का निर्जला व्रत, जानें पूजा विधि और धार्मिक महत्व

चार दिवसीय पर्व का महत्व

छठ पूजा 25 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 28 अक्टूबर तक चलेगी।

पहला दिन – नहाय खाय: शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक

दूसरा दिन – खरना: उपवास की शुरुआत, शाम को गुड़-चावल का प्रसाद

तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य

चौथा दिन – उषा अर्घ्य: उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन

यह व्रत अपने कठोर नियमों और 36 घंटे के निर्जल उपवास के लिए प्रसिद्ध है। इसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।

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संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार –

षष्ठी तिथि प्रारंभ: 27 अक्टूबर सुबह 6:04 बजे

षष्ठी तिथि समाप्त: 28 अक्टूबर सुबह 7:59 बजे

सूर्योदय: प्रातः 6:30 बजे

सूर्यास्त: सायं 5:40 बजे

इसी समय व्रती और श्रद्धालु पवित्र नदियों, तालाबों या घाटों में कमर तक जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे।

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पूजा विधि और सामग्री

छठ पूजा के लिए श्रद्धालु बांस की टोकरी (पथिया या सूप) में पूजा सामग्री सजाते हैं।
टोकरी में रखा जाता है —

ठेकुआ, मखाना, सुपारी, अक्षत, गन्ना, अंकुरी, भुसवा

पांच प्रकार के फल – केला, नारियल, शरीफा, नाशपाती, डाभ (बड़ा नींबू)

पंचमेवा और पांच रंग की मिठाइयाँ

कलश, डगरी, पोनिया, ढाकन, सरवा, और पुखार भी साथ रखे जाते हैं

टोकरी पर सिंदूर और पिठार का लेप किया जाता है, जो पवित्रता का प्रतीक है। पूजा के दौरान सूर्यदेव को बांस या पीतल की सूप में जल अर्पित किया जाता है।

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उगते सूर्य को अर्घ्य

पर्व का समापन 28 अक्टूबर की सुबह सप्तमी तिथि पर होगा। उस दिन व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगी। इसके बाद 36 घंटे का निर्जल व्रत समाप्त होता है और श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करते हैं।

आस्था और आध्यात्मिकता का पर्व

छठ महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, सूर्य, जल और मातृत्व शक्ति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व अनुशासन, तपस्या, और संयम के माध्यम से आत्मशुद्धि का संदेश देता है। घाटों पर लोकगीत, आराधना और भक्ति का अद्भुत वातावरण इस पर्व की विशेष पहचान है।

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