Chhattisgarh में ड्राइवर महासंघ ने अपनी 11 सूत्रीय मांगों को लेकर “स्टेयरिंग छोड़ो, चक्का जाम आंदोलन” की घोषणा कर दी है। महासंघ ने चेतावनी दी है कि जब तक सरकार उनकी मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक प्रदेशभर में कोई भी मालवाहक या यात्री वाहन सड़क पर नहीं उतरेंगे। इस आंदोलन का असर राजधानी रायपुर से लेकर दूर-दराज के जिलों तक देखने को मिल सकता है। ड्राइवरों का कहना है कि अब “स्टीयरिंग छोड़कर” सरकार को जगाने का समय आ गया है।
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Chhattisgarh में ड्राइवर महासंघ ने रखी 11 सूत्रीय मुख्य मांगे
ड्राइवर महासंघ ने सरकार के सामने अपनी 11 सूत्रीय प्रमुख मांगें रखी हैं, जिनमें शामिल हैं:
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प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की जाए।
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ड्राइवर आयोग और ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाए।
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कमर्शियल लाइसेंस धारकों के लिए बीमा सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
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सड़क हादसे में मृत्यु पर 10 लाख रुपये और अपंगता की स्थिति में 5 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाए।
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सभी चालकों को हेल्थ कार्ड जारी किए जाएं।
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55 वर्ष की आयु पूरी होने पर पेंशन योजना लागू की जाए।
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ड्राइवरों के बच्चों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दिया जाए।
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राज्य के हर जिले में ड्राइवर स्मारक बनाया जाए।
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ड्राइवरों के साथ लूट या मारपीट करने वालों के खिलाफ कठोर दंड (5 साल तक की सजा) का प्रावधान किया जाए।
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ड्राइवर वेलफेयर फंड की स्थापना कर आपातकालीन सहायता दी जाए।
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मांगों पर जल्द ठोस कार्रवाई की जाए, वरना आंदोलन जारी रहेगा।
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धरना-प्रदर्शन में जुटे हजारों ड्राइवर, पुलिस रही अलर्ट पर
शनिवार सुबह से ही कई जिलों में ड्राइवर संगठन के सदस्य प्रदर्शन करते नजर आए। शुरू में उन्होंने चक्काजाम की कोशिश की, लेकिन पुलिस की समझाइश के बाद सड़क किनारे धरना देने लगे। ड्राइवर नेताओं ने बताया कि वे शांतिपूर्ण आंदोलन के पक्ष में हैं, लेकिन अगर सरकार ने अब भी चुप्पी साधी रही तो आंदोलन उग्र भी हो सकता है। प्रदेशभर में लगभग 50 से 60 हजार ड्राइवरों ने इस हड़ताल को समर्थन दिया है, जिससे बस, ट्रक और टैक्सी सेवाओं पर भारी असर पड़ने की संभावना है।
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परिवहन और आपूर्ति व्यवस्था पर संकट के बादल
ड्राइवर महासंघ की इस हड़ताल से राजधानी रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई, राजनांदगांव समेत कई जिलों में परिवहन व्यवस्था चरमराने की आशंका है। मालवाहक ट्रक और यात्री बसों के न चलने से ईंधन, खाद्य सामग्री और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। ड्राइवरों का कहना है कि उन्होंने बार-बार सरकार को पत्र भेजे, लेकिन किसी स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए अब सड़कों पर उतरना उनकी मजबूरी बन गई। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।

