लखनऊ, 2 नवंबर 2025:
नवाबों के शहर लखनऊ ने एक बार फिर अपनी नफासत, तहजीब और लजीज़ जायके से दुनिया का दिल जीत लिया है।
यूनेस्को (UNESCO) ने लखनऊ को “क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी” (Creative City of Gastronomy) घोषित किया है। यह सम्मान शहर की पाक कला विरासत और खानपान संस्कृति को समर्पित है, जिसने सदियों से देश-विदेश के मेहमानों के स्वाद पर अपनी छाप छोड़ी है।
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यूनेस्को की घोषणा, भारत के लिए गर्व का क्षण
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित 43वें महासम्मेलन के दौरान इस सूची की घोषणा की।इस बार 58 नए शहरों को शामिल किया गया है, जिससे अब यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (UCCN) में 100 देशों के 408 शहर हो गए हैं।लखनऊ को ‘गैस्ट्रोनॉमी कैटेगरी’ में यह सम्मान दिया गया है — यानी वह श्रेणी जो किसी शहर की खानपान परंपरा, सांस्कृतिक विविधता और पाक विरासत को सम्मानित करती है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के लिए बड़ी उपलब्धि बताया और दुनियाभर के लोगों से लखनऊ आने, यहां के जायके और मेहमाननवाजी का अनुभव लेने का निमंत्रण दिया।
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लखनवी स्वाद: नवाबों की रसोई से दुनिया की थाली तक
लखनऊ का नाम आते ही ज़ुबान पर कवाब, बिरयानी, निहारी, चाट, कुल्फी, कचौड़ी, रेवड़ी और मक्खन मलाई का स्वाद ताजा हो उठता है।यहां आने वाला कोई भी मेहमान टुंडे के कबाब चखे बिना नहीं लौटता।1905 में हाजी मुराद अली द्वारा शुरू हुई यह दुकान आज भी लखनवी स्वाद की पहचान है।चौक और अमीनाबाद की गलियों में रूमाली रोटी, रहीम की कुलचा-निहारी (1925 से), इदरीस और वाहिद की बिरयानी, शीरमाल, रत्ती लाल के खस्ते और प्रकाश की कुल्फी आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं।हजरतगंज की बास्केट चाट, शर्मा की चाय, सेवक राम की पूड़ी और राजा की ठंडाई जैसे स्वाद पीढ़ियों से अपनी परंपरा निभा रहे हैं।इतिहास कहता है — “लखनऊ में खाना सिर्फ पेट नहीं भरता, बल्कि तहजीब सिखाता है।”
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मुगलई, ईरानी और अवधी खानपान का अद्भुत संगम
इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि लखनऊ की रसोई मुगलई, ईरानी और अवधी खानपान का अनोखा मिश्रण है।
1708 में ईरान से आए सआदत खां हुरानुल मुल्क ने यहां के व्यंजनों में ईरानी मसालों का रंग घोल दिया।
बाद में नवाबों ने कला, साहित्य और पाक-कला को नई ऊंचाई दी।
रवि भट्ट कहते हैं —“नवाबों के दांत कमजोर थे, इसलिए उनके लिए गलौटी कबाब जैसे मुलायम व्यंजन बनाए गए।सैनिकों के लिए जहां तीखे मसाले का मुगलई खाना तैयार होता था, वहीं आम लोगों के लिए हल्के और सुगंधित मसालों का प्रयोग किया जाता था।यही परंपरा आज भी जिंदा है।”
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इदरीस बिरयानी की खुशबू — दूध-मलाई का जादू
इदरीस बिरयानी के मालिक अबु बकर बताते हैं —“मेरे वालिद इदरीस साहब ने 1968 में यह दुकान खोली थी।हम पुलाव में दूध और मलाई का इस्तेमाल करते हैं, जिससे चावल मुलायम और सुगंधित बनते हैं।मटन कोरमा, शीरमाल और ड्राई फ्रूट्स इस्टू हमारे यहां की पहचान हैं।”उन्होंने बताया कि हाल ही में फिल्मकार अनुराग कश्यप अपनी फिल्म निशानची की शूटिंग के दौरान यहां आए थे।
इससे पहले अमेरिकी राजदूत, बॉलीवुड स्टार्स और कई विदेशी मेहमान भी यहां के स्वाद का आनंद ले चुके हैं।
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लखनऊ की विरासत — तहजीब से लेकर तंदूरी तक
लखनऊ न केवल अवधी खानपान का केंद्र है, बल्कि यह सांस्कृतिक सभ्यता और मेहमाननवाजी की मिसाल भी है।
यह शहर दिखाता है कि कैसे खाना सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और लोगों की आत्मा का हिस्सा होता है।यूनेस्को का यह सम्मान लखनऊ के लिए गर्व की बात है —एक ऐसा शहर, जिसने ‘अदब और अद्भुत जायके’ के संगम से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया है।अब दुनिया कह रही है — अगर खाना कला है, तो लखनऊ उसका ताज है।
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