दीपावली 2025: रोशनी का त्यौहार और इसका धार्मिक महत्व
दीवाली, जिसे दीपावली भी कहते हैं, ‘दीप’ यानी दीपक और ‘आवली’ यानी पंक्ति से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘दीपकों की पंक्ति’। यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। केवल एक दिन का पर्व नहीं, यह उत्सव वास्तव में 5 दिनों तक चलता है, जो धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त होता है। यह अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की जीत का प्रतीक है।
क्यों मनाई जाती है दीपावली?
दीपावली मनाने का सबसे बड़ा कारण है भगवान राम का 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटना। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर पूरी नगरी को जगमग कर दिया था। तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा, समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी का प्राकट्य भी इसी दिन हुआ था, इसलिए उन्हें धन और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है। दीपावली की रात ही जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी निर्वाण प्राप्त किया था।

दीपावली में लक्ष्मी–गणेश पूजा का कारण
दीपावली की रात, घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा अनिवार्य मानी जाती है। लक्ष्मी जी धन-धान्य की देवी हैं, जबकि भगवान गणेश बुद्धि और शुभता के देवता हैं। मान्यता है कि जहां बुद्धि होती है, वहीं धन का सदुपयोग होता है, इसलिए दोनों की पूजा एक साथ की जाती है, ताकि घर में न केवल पैसा आए, बल्कि सही बुद्धि से वह पैसा टिके और बढ़े भी।
दीप जलाने का अर्थ
दीपक जलाना केवल सजावट नहीं है, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखता है। यह हमारी आत्मा के भीतर के अंधकार (ईर्ष्या, द्वेष, लोभ) को मिटाकर, ज्ञान के प्रकाश को जगाने का प्रतीक है। हर जलता हुआ दीया हमें याद दिलाता है कि जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न हों, आशा की एक किरण हमेशा मौजूद रहती है।

छत्तीसगढ़ में दीपावली का तरीका
छत्तीसगढ़, जिसे ‘धान का कटोरा’ भी कहा जाता है, यहाँ की दीपावली में एक विशेष ग्रामीण और पारंपरिक रंग देखने को मिलता है। यहाँ की दीपावली केवल रोशनी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोक कला, लोक गीतों और विशेष व्यंजनों का उत्सव है।
छत्तीसगढ़ यहाँ की परंपराएँ और लोक रीति
दीपावली के दौरान छत्तीसगढ़ में ‘गौरा-गौरी’ पूजा का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव और पार्वती के विवाह का प्रतीक है। किसान धान की कटाई के बाद समृद्धि के लिए यह पूजा करते हैं। इसके अलावा, ‘सुआ नृत्य’ (तोता नृत्य) महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो उनकी संस्कृति और लोक जीवन को दर्शाता है। गाँव-गाँव में यह लोकगीत और नृत्य इस त्यौहार को एक अनूठी पहचान देते हैं। लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर बधाई देते हैं और इस प्रेम को छत्तीसगढ़ी में ‘भेंट-मुलाकात’ कहा जाता है।

दीपावली की मिठाइयाँ का स्वाद जो दिल को छू जाए
पारंपरिक मिठाइयों के बिना छत्तीसगढ़ की दीपावली अधूरी है। यहाँ बाज़ार की मिठाई से ज़्यादा घर पर बने पकवानों को महत्व दिया जाता है:

- अनरसा: चावल के आटे और गुड़ से बना यह मीठा पकवान, यहाँ का सिग्नेचर दीवाली व्यंजन है।
- ठेठरी: यह बेसन से बना एक नमकीन और कुरकुरा व्यंजन है, जो चाय के साथ खाने में बहुत स्वादिष्ट लगता है।
- खुरमी: गेहूँ के आटे, सूजी और गुड़ से बनी यह मीठी और क्रिस्पी डिश हर घर में बनती है।
ये व्यंजन न सिर्फ़ स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति की महक भी फैलाते हैं।
दीपावली 2025 का शुभ मुहूर्त और पूजा का समय
दिवाली वाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय और मां लक्ष्मी के स्वागत का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर मनाई जाने वाली यह दीपावली 2025 में 20 अक्तूबर, सोमवार को है। इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी-गणेश पूजा का महत्व है, जो घर में सुख, समृद्धि और सौभाग्य लाने का कार्य करती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या इस वर्ष 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे शुरू होकर 21 अक्टूबर शाम 5:55 बजे तक रहेगी। ज्योतिषाचारियों का मानना है कि प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने के कारण 20 अक्टूबर का दिन विशेष रूप से शुभ है।
लक्ष्मी-गणेश पूजन का मुख्य मुहूर्त
दीपावली पर पूजा का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। 2025 में गणेश-लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
- शुरुआत: शाम 07:08 बजे
- समाप्ति: रात 08:18 बजे
- कुल अवधि: 1 घंटा 11 मिनट
इस समय पर पूजा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और समृद्धि बढ़ती है।
दीपावली 2025 के चौघड़िया मुहूर्त
दिवाली पर चार प्रमुख चौघड़िया मुहूर्त भी पूजा के लिए बहुत लाभकारी माने जाते हैं:

- अपराह्न मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत): दोपहर 03:44 बजे से शाम 05:46 बजे
- सायाह्न मुहूर्त (चर): शाम 05:46 बजे से रात 07:21 बजे
- रात्रि मुहूर्त (लाभ): रात 10:31 बजे से देर रात 12:06 बजे
- उषाकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर): 21 अक्टूबर को देर रात 01:41 बजे से सुबह 06:26 बजे
इन समयों में पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है और परिवार पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
सुरक्षित और पर्यावरण-हितैषी दीवाली कैसे मनाएँ
दीपावली खुशियों, रोशनी और प्रेम का पर्व है, लेकिन हर साल पटाखों और शोर-प्रदूषण के कारण यह त्योहार पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए चुनौती बन जाता है। एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में हमें इस बार “ग्रीन दीवाली” मनाने का संकल्प लेना चाहिए ताकि खुशियाँ भी बरकरार रहें और प्रकृति भी सुरक्षित रहे।
पटाखों से होने वाले नुकसान
- पटाखों से निकलने वाला धुआँ (CO₂, SO₂ और नाइट्रेट्स) हवा की गुणवत्ता को बहुत खराब करता है।
- इससे अस्थमा, खाँसी और साँस की बीमारियाँ बढ़ जाती हैं, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में।

- शोर प्रदूषण जानवरों, नवजात बच्चों और बुजुर्गों के लिए हानिकारक होता है।
- प्रदूषण के कारण कई शहरों में AQI (Air Quality Index) खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है।
- पटाखों से लगने वाली आग और जलने की घटनाएँ हर साल सैकड़ों लोगों को नुकसान पहुँचाती हैं।
ग्रीन दीपावली के आसान उपाय
- चीनी या इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स के बजाय स्थानीय कुम्हारों से खरीदे गए दीये इस्तेमाल करें। इससे स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिलेगा और बिजली की बचत भी होगी।

- प्राकृतिक सजावट अपनाएँ, प्लास्टिक की सजावट छोड़कर फूलों, पत्तियों और प्राकृतिक रंगों से बनी रंगोली बनाइए।
- घर को खुशबूदार बनाने के लिए अगरबत्ती या देसी दीपक में घी का उपयोग करें।
- सामुदायिक आतिशबाजी करें, अगर आतिशबाजी करनी ही है, तो मोहल्ले या सोसाइटी में मिलकर एक तय स्थान पर सीमित मात्रा में करें। इससे प्रदूषण और आवाज़ दोनों पर नियंत्रण रहेगा।
- स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करें, दीवाली पर पूजा सामग्री, मिठाइयाँ और उपहार स्थानीय दुकानों से खरीदें। इससे ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान को बढ़ावा मिलेगा।
बच्चों के लिए सुरक्षा टिप्स
- पटाखे हमेशा बड़ों की निगरानी में जलाएँ।
- खुले मैदान या खाली जगह पर ही आतिशबाजी करें, घर या गली में नहीं।

- बच्चों को सूती और फिटिंग वाले कपड़े पहनाएँ — सिंथेटिक कपड़े आग पकड़ सकते हैं।
- पास में पानी की बाल्टी या अग्निशामक यंत्र रखें ताकि कोई दुर्घटना हो तो तुरंत नियंत्रण पाया जा सके।
- बच्चों को पटाखों के नुकसान और पर्यावरण की अहमियत समझाएँ — ताकि वे खुद भी जिम्मेदार बनें।
बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए सावधानियाँ
- बुजुर्गों को पटाखों के धुएँ और तेज आवाज़ से दूर रखें।
- यदि किसी को दम या हृदय रोग है, तो वे दीपावली की रात मास्क पहनकर घर के अंदर रहें।

- घर में एयर प्यूरीफायर या पौधे (जैसे स्नेक प्लांट, मनी प्लांट) रखें जो हवा को साफ करने में मदद करते हैं।
- दवाइयाँ और इनहेलर हमेशा पास में रखें।
दीपावली का त्यौहार हमें प्रेम, भाईचारा और समृद्धि का संदेश देता है। छत्तीसगढ़ की परंपरा हमें याद दिलाती है कि हमारे त्यौहार आधुनिकता की चकाचौंध में भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें। 2025 की दीपावली को शुभ मुहूर्त और स्थानीय पकवानों के साथ मनाकर, इसे न केवल यादगार बनाएँ, बल्कि पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाएँ। इस दीपावली पर, आइए हम सब मिलकर एक ऐसी दीपावली मनाएँ जो प्रकृति को भी खुश करे और हमारे घर में सुख-समृद्धि लेकर आए। आपको और आपके परिवार को दीपावली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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